Wednesday, August 27, 2014

अपना अपना राग - कविता

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

हर नगरी का अपना भूप
अपनी छाया अपनी धूप

नक्कारा और तूती बोले
चटके छन्नी फटके सूप

फूट डाल ताकतवर बनते
राजनीति के अद्भुत रूप

कोस कोस पर पानी बदले
हर मेंढक का अपना कूप

ग्राम नगर भटका बंजारा
दिखा नहीं सौन्दर्य अनूप

16 comments:

  1. सुंदर चित्र और सुंदर कविता
    बहुत खूब जी बहुत ही खूब ।

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  2. फूट डाल ताकतवर बनते
    राजनीति के अद्भुत रूप

    गज्ज़ब !! पूरी कविता ही शानदार है चचा !!

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  3. "कोस कोस पर पानी बदले
    हर मेंढक का अपना कूप"
    सटीक पंक्तियाँ …
    अपनी अपनी खिड़कियाँ है
    सबकी,अपना अपना आकाश :)

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  4. और सब तो बहुत अच्छे लगे, पर सूप ?अब लोग जानते ही नहीं होंगे कि सूप क्या है और कैसे फटकता है- कहीं पीनेवाला सूप न समझ लें !

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  5. हर मेंढक का अपना कूप !
    एक कूप से दूसरे कूप में छलांग लगते बाहर की ताजा हवा को महसूसते ही नहीं जैसे !
    लय में सुंदर कविता !

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  6. सारगर्भित रचना ......!!

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  7. क्या कहते ...

    मार डाला.
    कसम से.

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  8. क्या बात है शर्मा जी ! बहुत बढिया लिखा है ...

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  9. हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
    कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....

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  10. फूट डाल ताकतवर बनते
    राजनीति के अद्भुत रूप ...
    वाह ... बहुत ही लाजवाब हैं सब शेर ... मज़ा आ गया ...

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  11. बहुत बढिया लिखा है ...

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  12. बहुत व्यस्त था ! बहुत मिस किया ब्लोगिंग को ! बहुत जल्द सक्रिय हो जाऊंगा !

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