अपना अपना राग - कविता
(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)
हर नगरी का अपना भूप
अपनी छाया अपनी धूप
नक्कारा और तूती बोले
चटके छन्नी फटके सूप
फूट डाल ताकतवर बनते
राजनीति के अद्भुत रूप
कोस कोस पर पानी बदले
हर मेंढक का अपना कूप
ग्राम नगर भटका बंजारा
दिखा नहीं सौन्दर्य अनूप
सुंदर चित्र और सुंदर कविता
ReplyDeleteबहुत खूब जी बहुत ही खूब ।
फूट डाल ताकतवर बनते
ReplyDeleteराजनीति के अद्भुत रूप
गज्ज़ब !! पूरी कविता ही शानदार है चचा !!
"कोस कोस पर पानी बदले
ReplyDeleteहर मेंढक का अपना कूप"
सटीक पंक्तियाँ …
अपनी अपनी खिड़कियाँ है
सबकी,अपना अपना आकाश :)
और सब तो बहुत अच्छे लगे, पर सूप ?अब लोग जानते ही नहीं होंगे कि सूप क्या है और कैसे फटकता है- कहीं पीनेवाला सूप न समझ लें !
ReplyDeleteहर मेंढक का अपना कूप !
ReplyDeleteएक कूप से दूसरे कूप में छलांग लगते बाहर की ताजा हवा को महसूसते ही नहीं जैसे !
लय में सुंदर कविता !
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसारगर्भित रचना ......!!
ReplyDeleteक्या कहते ...
ReplyDeleteमार डाला.
कसम से.
आनंदम आनंदन!!
ReplyDeleteक्या बात है शर्मा जी ! बहुत बढिया लिखा है ...
ReplyDeleteसरल शब्दों में गहरी बात
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteहमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
ReplyDeleteकुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....
फूट डाल ताकतवर बनते
ReplyDeleteराजनीति के अद्भुत रूप ...
वाह ... बहुत ही लाजवाब हैं सब शेर ... मज़ा आ गया ...
बहुत बढिया लिखा है ...
ReplyDeleteबहुत व्यस्त था ! बहुत मिस किया ब्लोगिंग को ! बहुत जल्द सक्रिय हो जाऊंगा !
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