Saturday, June 11, 2016

बिस्मिल का पत्र अशफ़ाक़ के नाम - इतिहास के भूले पन्ने

सताये तुझ को जो कोई बेवफ़ा बिस्मिल।
तो मुँह से कुछ न कहना आह कर लेना।।
हम शहीदाने-वफा का दीनो ईमां और है।
सिजदा करते हैं हमेशा पांव पर जल्लाद।।


मैंने इस अभियोग में जो भाग लिया अथवा जिनको जिन्दगी की जिम्मेदारी मेरे सिर पर थी, उन में से सब से ज्यादा हिस्सा श्रीयुत अशफाकउल्ला खां वारसी का है। मैं अपनी कलम से उन के लिये भी अन्तिम समय में दो शब्द लिख देना अपना कर्तव्य समझता हूं।

अशफ़ाक,

मुझे भली भांति याद है कि मैं बादशाही एलान के बाद शाहजहाँपुर आया था, तो तुम से स्कूल में भेंट हुई थी। तुम्हारी मुझसे मिलने की बड़ी हार्दिक इच्छा थी। तुम ने मुझ से मैनपुरी षडयन्त्र के सम्बन्ध में कुछ बातचीत करना चाही थी। मैंने यह समझा कि एक स्कूल का मुसलमान विद्यार्थी मुझ से इस प्रकार की बातचीत क्यों करता है, तुम्हारी बातों का उत्तर उपेक्षा की दृष्टि से दिया था। तुम्हें उस समय बड़ा खेद हुआ था। तुम्हारे मुख से हार्दिक भावों का प्रकाश हो रहा था।

तुम ने अपने इरादे को यों ही नहीं छोड़ दिया, अपने इरादे पर डटे रहे। जिस प्रकार हो सका कांग्रेस में बातचीत की। अपने इष्ट मित्रों द्वारा इस बात का वि्श्वास दिलाने की कोशिश की कि तुम बनावटी आदमी नही, तुम्हारे दिल में मुल्क की खिदमत करने की ख्वाहि्श थी। अन्त में तुम्हारी विजय हुई। तुम्हारी कोशिशों ने मेरे दिल में जगह पैदा कर ली। तुम्हारे बड़े भाई मेरे उर्दू मिडिल के सहपाठी तथा मित्र थे। यह जान कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। थोड़े दिनों में ही तुम मेरे छोटे भाई के समान हो गये थे, किन्तु छोटे भाई बन कर तुम्हें संतोष न हुआ।

तुम समानता के अधिकार चाहते थे, तुम मित्र की श्रेणी में अपनी गणना चाहते थे। वही हुआ? तुम मेरे सच्चे मित्र थे। सब को आश्चर्य था कि एक कटटर आर्य समाजी और मुसलमान का मेल कैसा? मैं मुसलमानों की शुद्धि करता था। आर्यसमाज मन्दिर में मेरा निवास था, किन्तु तुम इन बातों की किंचितमात्र चिन्ता न करते थे। मेरे कुछ साथी तुम्हें मुसलमान होने के कारण कुछ घृणा की दृष्टि से देखते थे, किन्तु तुम अपने निश्चय में दृढ़ थे। मेरे पास आर्यसमाज मन्दिर में आते-जाते थे। हिंदू-मुसलिम झगड़ा होने पर तुम्हारे मुहल्ले के सब कोई तुम्हें खुल्लम खुल्ला गालियां देते थे, काफिर के नाम से पुकारते थे, पर तुम कभी भी उन के विचारों से सहमत न हुये।

सदैव हिन्दू मुसलिम ऐक्य के पक्षपाती रहे। तुम एक सच्चे मुसलमान तथा सच्चे स्वदेश भक्त थे। तुम्हें यदि जीवन में कोई विचार था, तो यही था कि मुसलमानों को खुदा अकल देता कि वे हिन्दुओं के साथ मेल कर के हिन्दोस्तान की भलाई करते। जब मैं हिन्दी में कोई लेख या पुस्तक लिखता तो तुम सदैव यही अनुरोध करते कि उर्दू में क्यों नहीं लिखते, जो मुसलमान भी पढ़ सकें ?

तुमने स्वदेश भक्ति के भावों को भी भली भांति समझाने के लिये ही हिन्दी का अच्छा अध्ययन किया। अपने घर पर जब माता जी तथा भ्राता जी से बातचीत करते थे, तो तुम्हारे मुँह से हिन्दी शब्द निकल जाते थे, जिससे सबको बड़ा आश्चर्य होता था। तुम्हारी इस प्रकार की प्रकृति देख कर बहुतों को संदेह होता था, कि कहीं इस्लाम-धर्म त्याग कर शुद्धि न करा ले। पर तुम्हारा हृदय तो किसी प्रकार से अशुद्ध न था, फिर तुम शुद्धि किस वस्तु की कराते ? तुम्हारी इस प्रकार की प्रगति ने मेरे हृदय पर पूर्ण विजय पा ली। बहुधा मित्र मण्डली में बात छिड़ती कि कहीं मुसलमान पर विश्वास करके धोखा न खाना।

तुम्हारी जीत हुई, मुझ में तुम में कोई भेद न था। बहुधा मैंने तुमने एक थाली में भोजन किये। मेरे हृदय से यह विचार ही जाता रहा कि हिन्दू मुसलमान में कोई भेद है। तुम मुझ पर अटल विश्वास तथा अगाध प्रीति रखते थे, हां ! तुम मेरा नाम लेकर नहीं पुकार सकते थे। तुम तो सदैव राम कहा करते थे। एक समय जब तुम्हें हृदय-कम्प का दौरा हुआ, तुम अचेत थे, तुम्हारे मुँह से बारम्बार राम, हाय राम! के शब्द निकल रहे थे। पास खड़े हुए भाई बान्धवों को आश्चर्य था कि राम, राम कहता है।

कहते थे कि अल्लाह, अल्लाह कहो, पर तुम्हारी राम-राम की रट थी। उसी समय किसी मित्र का आगमन हुआ, जो राम के भेद को जानते थे। तुरन्त मैं बुलाया गया। मुझसे मिलने पर तुम्हें शान्ति हुई,  तब सब लोग राम-राम के भेद को समझे। अन्त में इस प्रेम, प्रीति तथा मित्रता का परिणाम क्या हुआ ? मेरे विचारों के रंग में तुम भी रंग गये। तुम भी एक कट्टर क्रान्तिकारी बन गये।  अब तो तुम्हारा दिन-रात प्रयत्न यही था, कि जिस प्रकार हो सके मुसलमान नवयुवकों मंस भी क्रान्तिकारी भावों का प्रवेष हो सके। वे भी क्रान्तिकारी आन्दोलन में योग दे।

जितने तुम्हारे बन्धु तथा मित्र थे, सब पर तुमने अपने विचारों का प्रभाव डालने का प्रयत्न किया। बहुधा क्रान्तिकारी सदस्यों को भी बड़ा आश्चर्य होता कि मैने कैसे एक मुसलमान को क्रान्तिकारी दल का प्रतिष्ठित सदस्य बना लिया। मेरे साथ तुमने जो कार्य किये, वे सराहनीय हैं! तुम ने कभी भी मेरी आज्ञा की अवहेलना न की। एक आज्ञाकारी भक्त के समान मेरी आज्ञा पालन में तत्पर रहते थे। तुम्हारा हृदय बड़ा विशाल था। तुम्हारे भाव बड़े उच्च थे।

मुझे यदि शान्ति है तो यही कि तुमने संसार में मेरा मुँह उज्जवल कर दिया। भारत के इतिहास में यह घटना भी उल्लेखनीय हो गई, कि अशफाकउल्ला ख़ाँ ने क्रान्तिकारी आन्दोलन में योग दिया। अपने भाई बन्धु तथा सम्बन्धियों के समझाने पर कुछ भी ध्यान न दिया। गिरफतार हो जाने पर भी अपने विचारों में दृढ़ रहा ! जैसे तुम शारीरिक बलशाली थे, वैसे ही मानसिक वीर तथा आत्मा से उच्च सिद्ध हुए। इन सबके परिणाम स्वरूप अदालत में तुमको मेरा सहकारी ठहराया गया, और जज ने हमारे मुकदमें का फैसला लिखते समय तुम्हारे गले में भी जयमाल फांसी की रस्सी पहना दी।

प्यारे भाई तुम्हे यह समझ कर सन्तोष होगा कि जिसने अपने माता-पिता की धन-सम्पत्ति को देश-सेवा में अर्पण करके उन्हें भिखारी बना दिया, जिसने अपने सहोदर के भावी भाग्य को भी देश सेवा की भेंट कर दिया, जिसने अपना तन मन धन सर्वस्व मातृसेवा में अर्पण करके अपना अन्तिम बलिदान भी दे दिया, उसने अपने प्रिय सखा अशफाक को भी उसी मातृभूमि की भेंट चढ़ा दिया।

असगर हरीम इश्क में हस्ती ही जुर्म है।
रखना कभी न पांव, यहां सर लिये हुये।।

सहायक काकोरी शडयन्त्र का भी फैसला जज साहब की अदालत से हो गया। श्री अशफाकउल्ला खां वारसी को तीन फांसी और दो काले पानी की आज्ञायें हुईं। श्रीयुत शचीन्द्रनाथ बख़्शी को पांच काले पानी की आज्ञायें हुई।

- राम

[Content courtesy: Dr. Amar Kumar; इस प्रामाणिक पत्र के लिये स्वर्गीय डॉ. अमर कुमार का आभार]

10 comments:

  1. इतिहास के इस पन्ने को फिर से याद दिलाने के लिये आभार ।

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  2. Ab kya likhe iske liye.. bas hridaya hi jaanata hai bhavanayen.

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  3. अमर राष्ट्रभक्त अशफाकउल्ला खां वारसी को शत शत नमन. मुझे पीड़ा होती है कि कान्तिकारी वीर सावरकर और उनके अनुयायी हिंदुत्ववादियों की दृष्टि में, प्राणों की बलि अर्पित करने के बाद भी, अशफाकउल्ला की राष्ट्रभक्ति संदिग्ध मानी जाएगी, क्योंकि वे एक मुस्लमान थे.

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  4. ऱामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्ला खाँ को शतशः प्रणाम। देशभक्त की कोई जात नही होती बस देश ही जात, धर्म सब होता है उसके लिये। आप का अनेक आभार यह पत्र पढवाने के लिये।

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  5. हृदय को छू लेनेवाला पत्र..रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक़उल्ला खां जैसे शहीदों के बलिदान के कारण ही हम भारतवासी आजाद भारत में साँस ले रहे हैं, उन शहीदों को शत शत नमन..आभार !

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  6. इतिहास के ये गुम पन्ने कितना कुछ कहते हैं ... और कोई इनपर विहंगम दृष्टि डाले तो आसानी से समझा जा सकता है की कितना कुछ बदल गया है आज ... कितना आगे, शायद समय से बहुत आगे निकल गए हैं हम ...

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  7. देशभक्तों की कोई जात नहीं होती. जिसको आजादी का नशा चढ़ा वह फिर जात-पात, ऊँच-नीच सबसे ऊपर उठकर पहाड़ (अंग्रेज) से भी टकडाने में नहीं डरा. 'मोरा रंग दे वसंती चोला..'.

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  8. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  9. यह ब्लॉग बहुत ही काम का हैं आप ऐसे ही लिखते रहे। कृपया एक बार मेरे ब्लॉग मे जरूर पधारे Gk in hindi

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  10. अशफ़ाक जैसे सामने आयेंगे तो कौम का भी भला होगा।

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