आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-04-2021) को चर्चा मंच "ककड़ी खाने को करता मन" (चर्चा अंक-4040) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
तोड़ता भी, जोड़ता भी, मोड़ता भी प्रेम है, मेल को है आतुर और छोड़ता भी प्रेम है॥ एक नदी के दो किनारे लोग ना खुश , हर कोई उस पार जाना चाहता है। दुश्मनों का प्यार पाना चाहता है , हाथ पे सरसों उगाना चाहता है। कौन जाने फिर मनाने आ ही जाओ , दिल हमारा रूठ जाना चाहता है। पूरा ग़ज़ल कुञ्ज है यह एकल रचना ,चर्चा मंच की ग़ज़लों का तेवर देखते ही बनता है।
मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-04-2021) को चर्चा मंच "ककड़ी खाने को करता मन" (चर्चा अंक-4040) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभार!
Deleteवाह ! एक से बढ़कर एक पंक्तियाँ, हर कोई उस पार जाना चाहता है !
ReplyDeleteआभार!
Deleteveerujan.blogspot.com
ReplyDeleteप्रेम के हैं रूप कितने (अनुराग शर्मा)
तोड़ता भी, जोड़ता भी, मोड़ता भी प्रेम है,
मेल को है आतुर और छोड़ता भी प्रेम है॥
एक नदी के दो किनारे लोग ना खुश ,
हर कोई उस पार जाना चाहता है।
दुश्मनों का प्यार पाना चाहता है ,
हाथ पे सरसों उगाना चाहता है।
कौन जाने फिर मनाने आ ही जाओ ,
दिल हमारा रूठ जाना चाहता है।
पूरा ग़ज़ल कुञ्ज है यह एकल रचना ,चर्चा मंच की ग़ज़लों का तेवर देखते ही बनता है।
धन्यवाद!
Deleteबहोत सुंदर
ReplyDeleteवाह इतनी सुन्दर पोस्ट कैसे छूट गयी?
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