(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)
अंधकार से प्रकट हुए हैं
अंधकार में खो जायेंगे
बिखरे मोती रंग-बिरंगे
इक माला में पो जायेंगे
इतने दिन से जगे हुए हम
थक कर यूँ ही सो जायेंगे
देख हमें जो हँसते हैं वे
हमें न पाकर रो जायेंगे
रहे अधूरे-आधे अब तक
इक दिन पूरे हो जायेंगे॥
सुन्दर गीतिका।
ReplyDeleteअंधकार से प्रकट हुए हैं
ReplyDeleteअंधकार में खो जायेंगे
बिखरे मोती रंग-बिरंगे
इक माला में पो जायेंगे
आध्यात्मिक रंग से सराबोर बेहतरीन कविता.... साधुवाद 🙏
सही है, जीवन का आरम्भ अंधकार से होता है और अंत भी, 'पूरे हो जाने' का सुंदर प्रयोग ! कविता और चित्र का आपसी संबन्ध कुछ स्पष्ट नहीं हुआ, वैसे चित्र अच्छा है
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-02-2021) को "बढ़ो प्रणय की राह" (चर्चा अंक- 3973) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभार!
Deleteमृत्यु ही वह पूर्णता है, जिसको पाने के लिए अधूरा जीवन जीना पड़ता है ❤️
Deleteसुन्दर...
ReplyDeleteशाश्वत दर्शन।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteअति सुन्दर जीवन-सार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है। लेकिन साथ में दिए इस चित्र की क्या कहानी है? :)
ReplyDeletebahut hi achi kavita likhi ha aapne. hindi pradesh
ReplyDeleteधन और मान का गरब न कीजो
ReplyDeleteएक दिन यह सब खो जाएँगे!
फिर कोंपल बनकर निकलेंगे
इस मिट्टी में बो जाएँगे!!
अति सुन्दर जीवन-सार । रहीम के दोहे अर्थ सहित
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