हमने दरियादिली नहीं देखी
खूब सुनते हैं उसके अफ़साने
अंजुमन में सभी हैं अपने वहाँ
घर से बेदर हमीं हैं अनजाने
घर से बेदर हमीं हैं अनजाने
कुछ जला न धुआँ ही उट्ठा है
न वो शम्मा न हम हैं परवाने
न वो शम्मा न हम हैं परवाने
कुछ तो है खास मैं नहीं जानूँ
यूँ नहीं सब हुए हैं दीवाने
यूँ नहीं सब हुए हैं दीवाने
जाने क्या कह दिया है शर्मा ने
हमसे अब वे लगे हैं शर्माने
हमसे अब वे लगे हैं शर्माने
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-11-2020) को "आवाज़ मन की" (चर्चा अंक- 3882) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
-- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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धन्यवाद!
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11
ReplyDeleteनवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद!
Deleteवाह ! ऐसी दोस्ती की गुहार कोई कब तक अनसुना कर सकता है
ReplyDeleteआभार
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसभी एक से एक सार्थक,सुंदर !
ReplyDeleteblogging kaise kare
ReplyDeletenice post sir ji blogging kaise kare ke bare me bhi kuch bataye
ReplyDeleteउम्दा
ReplyDeleteवाह आज यह पढ़ कर मन तृप्त हो उठा
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