चलो अब डायरी में लिख लेंगे
मन को कहके यही भरमाते हैं।
बीती बातों को याद कर-कर के
दिल के घावों को वे सहलाते हैं।
दिल के घावों को वे सहलाते हैं।
सबकी मजबूरियों को समझा है
अपनी बारी पे चुप हो जाते हैं।
अपनी बारी पे चुप हो जाते हैं।
अपनी तनहाइयों को झटका दे
गीत उत्सव के गुनगुनाते हैं॥
***
गीत उत्सव के गुनगुनाते हैं॥
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लाजवाब
ReplyDeleteहकीकत से जब रूबरू हो जाते हैं
ReplyDeleteखुद को समझाते हुए पाते हैं
हमारा अवचेतन हमसे वही करवाता है जिसमें कोई लाभ हो, आनन्द हो. बहुत कम वृद्ध ऐसा कुछ कहते हैं जिसमें किसी की रूचि हो. आज तो किसी की बात सुनने का समय नहीं किसी को. छोटे बच्चे की बात सुन लें तो वह ही बहुत है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सार्थक, वृद्ध होना प्राकृतिक है ग्रेसफ़ुल वृद्ध होना एक कला !
ReplyDeleteअति सुन्दर ।
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