Sunday, October 4, 2020

हिंदी ग़ज़ल

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

पछताना क्या क्या यूँ रोना
हुआ नहीं यदि था जो होना

कल न था कल होना है जो 
जीवन है बस पाना-खोना

चना अकेला भाड़ बड़ा है
मन में यह दुविधा न ढोना

टूटी छत बिखरी दीवारें
तन मिट्टी पर मन है सोना

याद खिली मन के कोने में
हुआ सुवासित कोना कोना


9 comments:

  1. जीवन है बस पाना-खोना तो क्यों पछताना क्यों रोना ... सुवासित हो रहा है ।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति.

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  3. वाह ! याद खिली मन के कोने में
    हुआ सुवासित कोना कोना, जीवन में जब याद की सुवास भर जाती है तो हर हाल में मुस्कुराने की कला भी आ जाती है

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-10-2020) को   "जीवन है बस पाना-खोना "    (चर्चा अंक - 3847)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  5. याद खिली मन के कोने में
    हुआ सुवासित कोना कोना !
    बहुत सुंदर !

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