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Sunday, August 24, 2008

क्या होगा? - काव्य

मेरे ख़त सबको पढ़ाने से भला क्या होगा?
दिल को अब और जलाने से भला क्या होगा?

आज महफ़िल में तेरी इतने जवाँ चेहरे हैं
इस बदशक्ल पुराने से भला क्या होगा?

जिनके हाथों ने पहाड़ों से गलाया दरया
उनका कमज़ोर ज़माने से भला क्या होगा?

जिनके आंगन में बहा करता है अमृत दिन-रात
उनको कुछ और पिलाने से भला क्या होगा?

राहे बर्बादी को तो खुद ही चुना था मैंने
उसपे अब अश्क बहाने से भला क्या होगा

चाक तन्हाई करे है मेरे दिल को जब भी
उसी नाशुक्र को लाने से भला क्या होगा

दुनियादारी में तो वह अब भी हमसे आगे है
उसको कुछ और सिखाने से भला क्या होगा?

(अनुराग शर्मा)