जब मैं भारत में एक राष्ट्रीयकृत बैंक के शाखा स्वचालन विभाग में काम करता था तब काम के सिलसिले में अक्सर बहुत सी शाखाओं में आना जाना लगा रहता था। उसी सिलसिले में एक ऐसी शाखा में गया जिसके प्रबंध-प्रमुख का नाम था एन एस बोस।
मेरे साथी को शाखा प्रबंधकों और उच्च-अधिकारियों से नज़दीकी बनाने का काफी शौक था। होता अक्सर यूँ था कि मैं शाखा में जाकर सम्बंधित लोगों से वार्ता और कुछ काम-धाम करता था जबकि यह साथी शाखा-प्रमुख के दफ्तर में बैठकर उनसे बातचीत करके यह दिलासा दिलाता था कि उसके साथी लोग (यानी की मैं) भी ठीक-ठाक हैं और यदि कुछ काम बिगाड़ भी देंगे तो वे ख़ुद तो हैं ही न।
हमारे साथी के नाम में क्या रखा है मगर हमेशा की तरह इस बार भी सुविधा के लिए हम एक नाम ढूंढ लेते हैं। हम उन्हें रावण कहकर पुकारेंगे। तो रावण जी एन एस बोस के केबिन में घुस गए. अभी तक के सभी उच्चाधिकारी तो रावण के अपने राज्य या पड़ोसी राज्यों के होते थे सो उनको बात करने में काफी आसानी होती थी. अब एन एस बोस से वो क्या बात करें? मगर आप रावण को कम न समझें दस सर का मतलब दस जुबानें! उन्हें बांगला में भी कई वाक्य आते थे सो जाते ही उन्होंने टूटी-फूटी बँगला में बोस को एक मीठा सा मक्खन लगा वाक्य फेंककर मारा। मगर यह क्या, बोस जी तो पहली बाल में ही क्लीन बोल्ड। बोले, "सॉरी, मेरे को पंजाबी समझता नहीं।"
अब रावण जी को गुस्सा आ गया, "कैसे बोस हैं, बँगला को पंजाबी बोलते हैं?"
"ओह, अब समझा!"
अब बोस जी ने जो समझाया उससे पता लगा कि वे प्रभु की अपनी धरती केरल से हैं. राष्ट्रीय नायकों के नाम पर अपने बच्चों के नाम रखने की परम्परा को उदात करते हुए केरलवासियों ने अपने बच्चों के नाम स्वाधीनता सेनानियों और अन्य प्रसिद्द नायकों पर भी रखे हैं. वहाँ आपको, राम, गोविन्द, लक्षमण तो मिलेंगे ही इंदिरा गांधी भी मिलेंगी. इन एन एस बोस का पूरा नाम था - नेताजी सुभाषचन्द्र बोस.
बाद में तो हमें राम मनोहर लोहिया, बाल गंगाधर तिलक और जयप्रकाश नारायण भी मिले. आज नेताजी के जन्मदिन पर उनकी याद के साथ ही एक अरसे बाद यह घटना भी याद आयी तो आपके साथ बांटने को दिल किया.
इसी के साथ याद आया कि पराधीनता के उन दिनों में भी नेताजी जैसे नायकों ने देश की प्रगति में नारी के योगदान को बराबरी का महत्त्व दिया था. आज़ाद हिंद फौज में एक महिला रेजिमेंट भी थी जिसका नाम झांसी की वीरांगना के नाम पर "झांसी की रानी" रखा गया था. और उसकी प्रमुख थीं कर्नल डॉ. लक्ष्मी स्वामिनाथन.
उन सब वीरों को नमन जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया और हमें भी घर बैठकर शिकायतें करते रहने के बजाय मैदान में उतरकर कुछ सकारात्मक करने की प्रेरणा दी.