एक शेर
थी पीठ भी हमारी, और शस्त्र भी हमारा
कि मुझमें इत्मीनान ज़रा सा भी नहीं है
कागज़ में दबी रह गयीं बदलाव की बातें
बदला मैं मगर आपकी हर बात वहीं है
क्यों भूलते हैं मैं सदा से था नहीं ऐसा
मैंने भी ज़ुल्म-ज़्यादती सदियों सही है
सहते हुए मैं समझा था आप सुधरेंगे कभी
खुशफहमी में ऐसी यकीं अब तो नहीं है।
कुचला गया पर आह भी निकली नहीं कभी
अब सह नहीं सकता हूँ कमी इतनी रही है
चलो गलत फहमी दूर हो गयी. अच्छी रचना.
ReplyDeleteसहते हुए मैं समझा था वे सुधरेंगे कभी
ReplyDeleteखुशफहमी में ऐसी यकीं अब तो नहीं है।
बेहद सलीके से कही गई बात. बहुत गहराई से महसूस होती है. शुभकामनाएं.
रामराम.
सहते हुए मैं समझा था वे सुधरेंगे कभी
ReplyDeleteखुशफहमी में ऐसी यकीं अब तो नहीं है।
बहुत खूब..बढि़या रहा।
क्यूँ भूलते हैं मैं नहीं था सदा ऐसा
ReplyDeleteमैंने भी ज़ुल्म-ज़ोर कई सदियों सही है
" halat hi hote hain jo sub kuch badal daite hain.....sarthak panktiyan..."
Regards
वाह मेरे भाई वाह ....बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ
ReplyDeleteसहते हुए मैं समझा था वे सुधरेंगे कभी
खुशफहमी में ऐसी यकीं अब तो नहीं है।
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बरसों सहा पर आह भी निकली नहीं कभी
ReplyDeleteअब सह नहीं सकता हूँ कमी इतनी रही है
वाह...खूब कहा ...
नीरज
अच्छी है
ReplyDeleteभई वाह्!अनुराग जी, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति....आभार
ReplyDeleteआपकी भावनाओं को रेखांकित करते हुए एक शेर प्रस्तुत है -
ReplyDeleteआशियां मैंने बनाया आसमतां से जूझकर
हो न हो अब आशियां में सांप पालेंगे रकीब
Hi, it is nice to go through ur blog...well written..by the way which typing tool are you suing for typing in Hindi..?
ReplyDeletei understand that, now a days typing in an Indian language is not a big task... recently, i was searching for the user friendly Indian language typing tool and found.. " quillpad". do u use the same..?
Heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration...!?
expressing our views in our own mother tongue is a great feeling...and it is our duty too...so, save,protect,popularize and communicate in our own mother tongue...
try this, www.quillpad.in
Jai..Ho...
जिंदगी के करीब से गुजरती एक खूबसूरत गजल।
ReplyDeleteisi khushfahmi me jee rahe hain bharatwasi.
ReplyDeleteदेर आए दुरस्त आए यह अच्छा किया
ReplyDeleteबस कीजिए और शान्ति अच्छी नहीं है।
सहते हुए मैं समझा था वे सुधरेंगे कभी
ReplyDeleteखुशफहमी में ऐसी यकीं अब तो नहीं है।
--------
आशा क्यों खोते हैं मित्र! सहते हैं तो आशा भी रखिये! समय बदलता जरूर है।
सीमित शब्दों लिख दी हैं, बड़ी चुटीली बातें।
ReplyDeleteजितनी बार पढ़ो उतनी ही मिलती हैं सौगातें।
क्यूँ भूलते हैं मैं नहीं था सदा ऐसा
ReplyDeleteमैंने भी ज़ुल्म-ज़ोर कई सदियों सही है
बहुत ही अच्छी लगी आपकी यह रचना
वाह बहुत ही सुन्दर.
ReplyDeleteअनुराग जी
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल, बेहतरीन शेर..........नया पन लिये, अलग अंदाज़ के शेर
क्यूँ भूलते हैं मैं नहीं था सदा ऐसा
मैंने भी ज़ुल्म-ज़ोर कई सदियों सही है
हमेशा की तरह बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteक्यूँ भूलते हैं मैं नहीं था सदा ऐसा
मैंने भी ज़ुल्म-ज़ोर कई सदियों सही है
गजब।
खूब सूरत कविता। आप ने सच्ची बात कह दी। यह बिंदु ही आगे आने वाले बदलाव का आरंभ बिन्दु भी है।
ReplyDeleteसहते हुए मैं समझा था वे सुधरेंगे कभी
ReplyDeleteखुशफहमी में ऐसी यकीं अब तो नहीं है।
क्या बात कही है ...बहुत खूब !!!!!!!!!!!!!!!
सहते हुए मैं समझा था वे सुधरेंगे कभी
ReplyDeleteखुशफहमी में ऐसी यकीं अब तो नहीं है।
जबाब नह जनाब ,बहुत ही खुब सुरत कविता लिखी आप ने.
आप का धन्यवाद
बेहद खूबसूरत रचना, हर-एक पंक्ति में भाव प्रभावशाली हैं।
ReplyDeleteवाह !!! क्या बात कही !!!
ReplyDeleteदिल की बातों को बहुत सुन्दर ढंग से आपने अभिव्यक्त किया...सुन्दर रचना.
बहुत खूब
ReplyDeleteशानदार !
ReplyDeleteअनुराग जी
ReplyDelete"सहते हुए मैं समझा था वे सुधरेंगे कभी
खुशफहमी में ऐसी यकीं अब तो नहीं है।'
बहुत सुन्दर अभिव्यक्त
बरसों सहा पर आह भी निकली नहीं कभी
ReplyDeleteअब सह नहीं सकता हूँ कमी इतनी रही है
वाह...खूब कहा ...
कहें यह आगे आने वाले बदलाव का आरंभ बिन्दु तो नहीं ???????????
चन्द्र नोहन गुप्त
क्या बात है अनुराग जी....भई क्या बात है
ReplyDeleteअनुराग भाई,बहुत खूब
ReplyDeleteसिटी बैंक के स्टॉक के डबल होने का असर यहाँ देख रहा हूँ
हैं सभी ब्लोगर हम से अच्छे यही सोच रहा हूँ।
Badia hai.
ReplyDeleteSeems like it is written in the behalf of all the Indians .
क्यूँ भूलते हैं मैं नहीं था सदा ऐसा
ReplyDeleteमैंने भी ज़ुल्म-ज़ोर कई सदियों सही है
बहुत अच्छा लिखा है आपने।
'सहते हुए मैं समझा था वे सुधरेंगे कभी
ReplyDeleteखुशफहमी में ऐसी यकीं अब तो नहीं है।'
-जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब आदमी निराश हो जाता है, लेकिन आशा और विश्वास उनको सुधार कर ही रहेगा.
वाह अच्छी रचना है भई इस के लिये बधाई स्वीकारिये..
ReplyDeleteअच्छी रचना है अनुराग भाई
ReplyDeleteदेर आयद दुरुस्त आयद.
ReplyDeleteवैसे खुशफ़हमीयां कई बार मन को उन पीडाओं से बचा देती है, जहां ये कहना उचित होगा कि-
मन चंगा तो कठौती में गंगा...
या
When Ignorance is bliss,
It is folly to be wise...
Sahi hai sir. Ek achchi kavita.
ReplyDelete