यह वक़्त है बदलते रहना इसकी फितरत है कहीं दिल मिलते हैं कहीं सपने टूटते हैं मनचाहा होता भी है और नहीं भी होता है मनचाहा हो भी जाए तो भी बहुत सा मनचाहा नहीं होता है क्योंकि यह वक़्त है बदलते रहना इसकी फितरत है। (अनुराग शर्मा)
वस्तुत:, परिवर्तन ही समय है। समय का तो प्रत्येक पल नयापन लेकर आता है। वक्त ही गतिवान और गतिशील है। वक्त की हर शै गुलाम, वक्त का हर शै पर राज। बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी अनुरागजी।
वाह! अनुरागजी. खुशदीप भाई के ब्लॉग से इस पोस्ट का लिंक मिला. बदलते वक़्त और मन की चाहत को आपने सुन्दर ढंग से उकेरा है.जरूरी नहीं हर चाहत की पूर्ति से आनंद भी मिल जाये.लेकिन ऐसा वक़्त भी आ सकता है जब हमे ऐसी चाहत के भी दर्शन हो जाये जिससे स्थाई आनंद (परमात्मा) की प्राप्ति भी हो सके.आईये ऐसी चाहत की ही खोज की जावे.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.जो चाहत के विषय पर ही है.
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वक्त की सुंदरतम परिभाषा. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
क्योंकि
ReplyDeleteयह वक़्त है
बदलते रहना इसकी फितरत है।
" जो न बदले वो वक़्त नहीं होता.....
जो अपना है उसे मनुष्य
कभी नहीं खोता....."
सुंदर
Regards
यही तो वक्त की खासियत भी है. सुन्दर. आभार.
ReplyDeleteवक़्त यूँ ही अपनी बात करता है ..बहुत सुन्दर लगी आपकी यह कविता
ReplyDeleteवस्तुत:, परिवर्तन ही समय है। समय का तो प्रत्येक पल नयापन लेकर आता है। वक्त ही गतिवान और गतिशील है। वक्त की हर शै गुलाम, वक्त का हर शै पर राज।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी अनुरागजी।
बहुत गहरी और भाव पूर्ण कविता...
ReplyDeleteनीरज
वक्त पर एक रचना पढकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteबहुत सा मनचाहा
ReplyDeleteनहीं होता है
क्योंकि
यह वक़्त है
बदलते रहना इसकी फितरत है।
सही बात को इतने आसान रूप में कविता में कह देना बडी बात है।
sundar abhivyakti, vaqt ki sahi pahchaan
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुराग जी....बहुत सुंदर
ReplyDeleteमनचाहा हो भी जाए
तो भी
बहुत सा मनचाहा
नहीं होता है
बढ़िया
वाह्! अति उत्तम.....सचमुच सब वक्त की ही माया है.
ReplyDeleteअच्छी कविता अनुराग जी !
ReplyDeleteसुन्दर। कहते हैं जो जितना बदलता है वह उतना ही वही रहता है!
ReplyDeleteसीधी-सच्ची बात यही है,
ReplyDeleteसमय बदलता रहता है।
जल जम जाता कभी,
कभी फिर वर्फ पिघलता रहता है।।
अनुराग जी बहुत ही सुंदर ओर सच्ची बात कह दी आप ने अपनी इस कविता मे, वक्त बस चलता रहता है.
ReplyDeleteधन्यवाद
वक़्त हर ज़ख्म भर देता है
ReplyDeleteदर्द देता है और दर्द की दवा भी देता है
आपने वक़्त की बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है अनुराग जी. आप हर रोज़ चाहे एक ही पंक्ति लिखें पर लिखें ज़रूर .
अच्छी लगी आपकी रचना।
ReplyDeleteसमय बदले इन्सान का मन ना बदले तब क्या होता है ?
ReplyDelete-लावण्या
और जिसने वक्त की नब्ज को पहचान लिया, वह अपने वक्त का शहंशाह बन जाता है।
ReplyDeleteवक्त के लिये छोटी सी कविता में बहुत बडी बात कह गये आप.
ReplyDeleteलिखते रहें.
बदलते रहना संसार की नियति है। इस बदलाहट में भी कुछ है जो नहीं बदलता!
ReplyDeleteBahut sahi kaha...
ReplyDeleteअनुराग जी,
ReplyDeleteवक्त की नब्ज पर बहुत सधा सा हाथ रखा है.
होली के अवसर पर बहुत सी रंगभरी शुभकामायें.
आदर सहित,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत खूब अनुराग भाई...वक़्त की सच्ची तस्वीर !!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteवाह! अनुरागजी.
ReplyDeleteखुशदीप भाई के ब्लॉग से इस पोस्ट का लिंक मिला.
बदलते वक़्त और मन की चाहत को आपने सुन्दर ढंग से उकेरा है.जरूरी नहीं हर चाहत की पूर्ति से
आनंद भी मिल जाये.लेकिन ऐसा वक़्त भी आ सकता है जब हमे ऐसी चाहत के भी दर्शन हो जाये जिससे स्थाई आनंद (परमात्मा) की प्राप्ति भी हो सके.आईये ऐसी चाहत की ही खोज की जावे.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.जो चाहत के विषय पर ही है.