आज 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' के संस्थापक सदस्य श्री चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि है। 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में एक मुखबिर की सहायता से अंग्रेजी राज की पुलिस ने आजाद को घेर लिया था। लगभग आधे घंटे तक गोलियों का आदान प्रदान हुआ और एक ही गोली बचने पर आजाद ने उससे स्वयं को शहीद कर लिया परन्तु मृत्युपर्यंत "आजाद" ही रहे। अपने नाम आजाद को सार्थक करने वाले इस वीर की आयु प्राण देते समय केवल पच्चीस वर्ष थी। आइये आज इस बात पर विचार करें कि हमने इस उम्र तक अपने देश को अपनी माँ को क्या दिया है। |
"खून दो" के पिछले अंक में आपने पढा कि मिल्की सिंह जी सर्वज्ञानी हैं। रेड्डी की प्रसिद्धि से चिढ़कर उन्होंने रक्त-दान की बात सोची। वे खूब सारा कीमा डकार कर निर्धारित समय से पहले ही ब्लड-बैंक पहुँच गए।
कागजी कार्रवाई के बाद उन्हें एक मेज़ पर लिटा दिया गया। जब नर्स से उनकी बांह में अप्रत्याशित रूप से बड़ा सूजा भोंका तब उन्हें अपने ठगे जाने का अहसास हुआ। मगर अब पछताए का होत जब चिडिया चुग गई खेत। उनकी बांह में इतनी जलन हुई कि वे तकलीफ से चिल्ला ही पड़ते मगर पड़ोस में ही एक 60 वर्षीया महिला को आराम से खून देते देखकर उनकी चीख त्रिशंकु की तरह अधर में ही लटक गयी। मौका और हालत की नजाकत देखकर उन्होंने होठ सी लेने और अश्क पी लेने में ही भलाई समझी।
पूरी प्रक्रिया में काफी देर लग रही थी। मिल्की सिंह जी के मन में तरह-तरह के ख़याल आ रहे थे। न जाने उनका खून किसके काम आयेगा। उन्हें पता ही न था कि वे एक व्यक्ति की जान बचा रहे थे कि ज़्यादा लोगों की। हो सकता है कि उनका खून रणभूमि में घायल सिपाहियों के लिए ले जाया जाए. सिर्फ उनके खून की वजह से एक वीर सैनिक की जान बचेगी और वह वीर युद्ध की बाजी पलट देगा। इतना सोचकर मिल्की सिंह को अपने ऊपर बड़ा गर्व हुआ। वे अब तक अपने अन्दर छिपे पड़े युद्ध-वीर को पहचान चुके थे। उन्होंने तो अपनी कल्पना में इतनी देर में राष्ट्रपति के हाथों परमवीर चक्र भी कबूल कर लिया था।
बहादुरी के सपनों के बीच-बीच में उन्हें बुरे-बुरे खयालात भी आ रहे थे। उन्हें यह भी समझ नहीं आ रहा था कि उनके शरीर से इतना ज़्यादा खून क्यों निकाला जा रहा था। पड़ोस की बूढी महिला तो जा भी चुकी थी। क्या उनसे इतना ज़्यादा खून इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि वे वीरों के दस्ते में से हैं?
तभी नर्स मुस्कराती हुई उनके पास आयी और पूछा, "आप ठीक तो हैं? रेलेक्सिंग?"
"माफ़ कीजिये, मैं मिल्की सिंह, रिलेक मेरा छोटा भाई है" मिल्की ने पहले तो नर्स का भूल सुधार किया। फिर अपनी दुखती राग पर हाथ रखकर झल्लाते हुए से पूछा, "और कितनी देर लगेगी? हाथ जला जा रहा है।"
"बस हो गया" नर्स ने उसी मधुर मुस्कान के साथ कहा और अपने नाज़ुक हाथों से सुई निकालकर घाव को रुई से दबा दिया।
मिल्की सिंह के होठ सूख रहे थे। नर्स का हाथ हटते ही वे जल्दी से कूदे और पास ही पडी उस मेज़ की और लपके जिस पर फलों के रस से भरी हुई बोतलें रखी थीं। खड़े होते ही उन्हें भयानक चक्कर आया और मेज़ तक पहुँचने से पहले ही वे धराशायी हो गए। आगे की कोई बात उन्हें याद नहीं है। जब होश आया तो वे डॉक्टरों और नर्सों से घिरे एक बिस्तरे पर लेते हुए थे। माथे और गर्दन पर बर्फ की पट्टियां लगी हुई थीं और हाथ में एक सुई चुभी हुई थी।
"यह क्या? आप लोगों ने पहले ही इतना खून निकाल लिया कि मैं गिर गया। अब फिर क्यों?" उन्होंने मिमियाते हुए पूछा।
जवाब उसी सुस्मिता ने दिया, "अभी तो आपको खून चढाया जा रहा है ताकि आप बिना गिरे अपने घर जा सकें।"
अगर उस दिन मिल्की सिंह की कार हमारा चालक सुनील नहीं चला रहा होता तो मुझे यह बात कभी भी पता न लगती। श्रीमती खान उनके घर "ठीक-हो-जाएँ" कार्ड के साथ फूलों का गुलदस्ता लेकर पहुँचीं। नहीं ... कुछ लोग कहते हैं कि वे पांच किलो कीमा लेकर गयी थीं। उस दिन के बाद जब मिल्की ने दफ्तर में वापस कदम रखा तो वे पूरी तरह से बदले हुए थे। अगले हफ्ते की कर्मचारी सभा में न सिर्फ उन्होंने रेड्डी साहब की जनसेवा को मुक्त-कंठ से सराहा बल्कि उनके लिए एक प्रमाण-पत्र और नकद पुरस्कार भी स्वीकृत किया।
[समाप्त]
रोचक तो था ही, पटाक्षेप तनिक अनपेक्षित रहा। मिल्की सिंह इतनी जल्दी 'लाइन' पर आ जाएंगे, तनिक भी आशा नहीं थी। इस दृष्टि से आपने तो चौंका ही दिया।
ReplyDeleteअच्छा लगा।
आजाद सचमुच आजाद ही रहे ! नमन !१
ReplyDeleteशहीद आजाद जी को नमन, याद करने और करवाने के लिये आपको धन्यवाद.
ReplyDeleteअगले हफ्ते की कर्मचारी सभा में न सिर्फ उन्होंने रेड्डी साहब की जनसेवा को मुक्त-कंठ से सराहा बल्कि उनके लिए एक प्रमाण-पात्र और नकद पुरस्कार भी स्वीकृत किया।
सही बात है. कल्पनाओं और हकीकत मे बहुत फ़र्क है. पर चलिये मिल्की सिंह जी को अक्ल तो आई.
रामराम.
ज़ल्दि ठिकाने ले आऐ मिल्की सिंह को।बधाई।
ReplyDeleteबहुत इन्तेरेस्तिंग और मजा आ गया. आभार.
ReplyDeleteबहुत अच्छे मिल्की जी को बधाईयां खून देने के लिये
ReplyDeleteचंद्रशेखर आजाद जी का जिक्र हो, तो रगों में खून फडकने लगता है। देशभक्ति की भावना से लबरेज पोस्ट के लिए आभार।
ReplyDeleteनमन उस सेनानी को जिनका नाम ही आजाद है..........
ReplyDeleteआपकी कहानी अच्छी लगी, हास्य, व्यंग और भावनाओं से भरपूर. स्वस्थ लेखन
मिल्ली सिंह हर तरह से सुधर गए।
ReplyDeleteबहुत बढिया कथा।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजय हो मिल्की सिंह की.....
ReplyDeleteमैं अहसान फरामोश हूँ मैं शर्मिंदा हूँ , मै आजाद को याद न रख सका
ReplyDeleteबहुत रोचक सहज प्रवाह से युक्त कथानक सार्थक और सुन्दर अनुराग जी
ReplyDeleteHaa Haa haa...lajawaab katha thi...aanand aa gaya padhkar..
ReplyDeleteAzad hume naaz hai tumhare jazbe per --
ReplyDeleteBharat Mata muskuratee hai jab aise
Bete ko apne anchal se dulartee hai -
Aur
Milki Singh ko jo naya khoon diya gaya,
kisi nek insaan ka hoga kyun ? :)
( sorry for my comment in Eng.
I'm away from my PC )
श्री चंद्रशेखर आजाद जी को मेरा नमन , हम उन जेसा तो नही बन सके, लेकिन इस मां की इज्जत तो रख सकते है, इसे दुसरो के हाथ अपमानित होने से तो बचा सकते है.
ReplyDeleteमिलकी सिंह जी इतनी जलदी सुधर जायेगे??? हेरानगी होती है..
लेकिन मजा आ गया है, मिल्की को आया कि नही पता नही.
धन्यवाद
बहुत ही रोचक.....पूर्णत: आनन्ददायी
ReplyDeleteशहीद चंद्रशेखर आजाद जी को नमन.......
आपने तो कहानी कह दी. अब पढ़ने वाले को तय करना है कि सुभाष बोस का बलिदान बड़ा था या मिल्की सिंह का.
ReplyDeleteआपने तो कहानी कह दी. अब पढ़ने वाले को तय करना है कि सुभाष बोस और चन्द्र शेखर आजाद का बलिदान बड़ा था या मिल्की सिंह का.
ReplyDeleteरोचक पोस्ट...
ReplyDeleteकथा पसंद आई। आपकी और मिल्की सिंह की जय हो।
ReplyDeleteरोचक कथा थी ..सुन्दर
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