जब औद्योगिक विकास सबसे बड़ी प्राथमिकता थी, पिट्सबर्ग स्वाभाविक रूप से ही विश्व के सबसे धनी नगरों में से एक था. धीरे-धीरे जब पर्यावरण के प्रति जागृति आनी शुरू हुई और क़ानून कड़े होने लगे तब बहुत से व्यवसाय यहाँ से बाहर जाने लगे. पिट्सबर्ग की जनसंख्या सिकुड़नी शुरू हुई और उसके साथ ही पिट्सबर्ग ने नए क्षेत्रों को अपनाना शुरू किया. जहाँ एक तरफ़ इस नगर में कम्प्युटर संबन्धी शिक्षा और व्यवसाय पर ज़ोर दिया गया वहीं स्वास्थ्य शिक्षा और अस्पतालों ने नए रोज़गार पैदा किए. स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिट्सबर्ग पहले ही काफी झंडे गाढ़ चुका था. मसलन, डॉक्टर जोनास साल्क द्वारा पोलियो के टीके की खोज यहाँ हुई थी और वर्षों बाद अमेरिका में पहला "बीटिंग हार्ट" प्रत्यारोपण यहीं हुआ.
मगर आज हम बात कर रहे हैं एक साधारण सी लगने वाली मगर क्रांतिकारी चिकित्सा तकनीक की. यह तकनीक है "न्यूरोएंडोपोर्ट" जिसमें नाक के रास्ते से जाकर ऐसे दिमागी ट्यूमर की शल्यक्रिया होती है जिसे खोपडी खोलकर आसानी से नहीं छुआ जा सकता है. यूपीएमसी पिट्सबर्ग (जो कि मेरे नियोक्ता भी हैं) के डॉक्टर अमीन कासम ने विश्व में पहली बार "न्यूरोएंडोपोर्ट" का सफल प्रयोग किया था.
१२ फरवरी को यूपीएमसी चिकित्सकों के एक दल ने छः घन्टे की शल्यक्रिया द्वारा भारत से आए जैन संत आचार्य यशोविजय सूरीश्वर जी के मस्तिष्क के एक गोल्फ की गेंद के आकार के ट्यूमर को निकाला जिसके दवाब के कारण आचार्य के दृश्य तंत्रिका काम नहीं कर पा रही थीं और आचार्य कुछ भी देख या पढ़ सकने में असमर्थ हो गए थे.
६३ वर्षीय आचार्य की पहली शल्य चिकित्सा भारत में हुई थी मगर सर के रास्ते से उस ट्यूमर को सफलतापूर्वक हटाया नहीं जा सका था. बाद में यूरोप में रह रहे उनके एक चिकित्सक अनुयायी ने पिट्सबर्ग के बारे में जानने के बाद उनको यहाँ लाने की बात शुरू की. उल्लेखनीय बात यह है कि यह आचार्य जी की पहली हवाई यात्रा भी थी. वे अभी पिट्सबर्ग में ही स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं और यहाँ की व्यवस्था से प्रसन्न हैं. स्थानीय अखबारों में उनकी यात्रा और इलाज के बारे में जिस प्रमुखता से समाचार छपे हैं उससे स्थानीय लोगों को भी जैन संस्कृति के बारे में पहली बार काफी जानकारी मिली है.
[इस शृंखला के सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा लिए गए हैं. हरेक चित्र पर क्लिक करके उसका बड़ा रूप देखा जा सकता है.]
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इस्पात नगरी से - अन्य कड़ियाँ
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एक और बेहतरीन कड़ी के लिए बधाई. लिखते रहें .हमेशा आपकी लेखनी की एक और पेशकश का बेसब्री से इंतज़ार रहता है .
ReplyDeleteअच्छी जानकारी है
ReplyDelete---
गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
ग़ज़लों के खिलते गुलाब
अच्छी जानकारी मिली!! अभी तक तो हम अनजान ही थे!!
ReplyDeleteयह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि "बीटींग हार्ट" प्र्त्यारोपण का श्रेय पिटसबर्ग को जाता है. प्रत्यारोपण तो खैर अपनी उपलबधता के चलते बहुत कम ही हो पाता है. और जतिलतम सर्जरी है.
ReplyDeleteपर बीटींग हार्ट सर्जरी तो हृदय रोगियों के लिये वरदान ही साबित हुई है. मैं स्वयम इस सर्जरी से गुजर चुका हूं. बहुत ही कम कष्टदायाक है और दो सप्ताह मे काम पर जाना भी शुरु कर दिया था.
आज आपने "न्यूरोएंडोपोर्ट" के बारे मे, और आचार्य जी के बारे में एक और बढिया जानकारी दी और लिंक भी दिये. इनको फ़ुर्सत से पढेंगे. आपका बहु आभार , इस उच्च जानकारी युक्त लेख के लिये.
रामराम.
जैन समाज में मेरा काफी उठना-बैठना है। सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करूं तो, जैन सन्तों का, इस तरह विदेश प्रवास निषेध है। यदि संयोगवश आपकी भेंट यशोविजय महाराजजी से हो और उनके समक्ष जिज्ञासा प्रस्तुत करना आपके लिए सम्भव हो तो इस बारे में उनसे अवश्य जानकारी प्राप्त कीजिएगा। मेरी विश्वास है कि आपको जो जानकारी मिलेगी वह न केवल महत्वपूर्ण होगी अपितु रोचक भी होगी। उस जानकारी के आधार पर प्रस्तुत की जाने वाली आपकी पोस्ट एक सन्दर्भ लेख की तरह सदैव उल्लेखित की जाएगी।
ReplyDelete"न्यूरोएंडोपोर्ट द्वारा दिमागी ट्यूमर की शल्यक्रिया हैरतंगेज जानकारी.......आभार इस लेख के लिए"
ReplyDeleteRegards
मैं स्वय जैन हूँ और जैन संस्कृति और आचार संहिता को बहुत बेहतर तरीक से जानता हूँ अतएव विष्णु वैरागी जी से पूर्ण सहमत हूँ | किंतु आप से सदैव नई और रोचक जानकारियाँ मिलती हैं एतदर्थ साधुवाद
ReplyDeleteआप इतनी अच्छी जानकारी देते हैं कि मन खुद-ब-खुद वाह कह उठता है.
ReplyDeleteश्रृंखला तो अच्छी चल ही रही है... आज बहुत सारी अतिरिक्त जानकारी भी मिली. जैन आचार्य वाले लिंक के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteन्यूरोएण्डोपोर्ट के लिंक के लिये बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteचिकित्सा तकनीक से संबधित बहुत ही उपयोगी जानकारी प्रदान की आपने........साथ ही चिकित्सा के क्षेत्र में पिटसबर्ग के योगदान के बारे में भी पता चला.
ReplyDeleteआभार.....
बेहतरीन शुरूआत की है आपने, वाह....
ReplyDeleteAnurag ji aapne bhot si nayi jankari di....shukriya...!!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर जानकरी.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत खूब
ReplyDeleteलगता है सभी खंड पढने पड़ेंगे
अच्छी जानकारी दी आपने,आभार आपका।
ReplyDeleteविष्णु बैरागी और मनोरिया जी के साथ हो ले रहा हूँ. हमारी रूचि भी इसमे है. काफ़ी दिनों से कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहे हैं, उनका भी अपने आप खुलासा होगा. pittsburg के बारे में जानकारी के लिए आभार.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट में कई नई जानकारीयां मिली, धन्यवाद...कोइ चित्र नही दिख रहे हैं. ???
ReplyDeleteजैन संस्कृति में किसी भी तरह का प्रवास निषेध है, जो पैदल चल कर नहीं जाया जा सकता.
मगर, पिछले दिनों कई नये जैन संतों (शायद आचार्य तुलसी जी अणुव्रत )नें इस आचार संहिता में एक प्रगतीशील बदलाव डालने का प्रयास किया है, जो अभी तक इतना सफ़ल नही हुआ है.
मेरे पति दीपक जी जैन धर्मी हैँ उन्हेँ बतलाऊँगी
ReplyDeleteअत: आपका आभार अनुराग भाई !
- लावण्या
इस कडी में बहुत सारी जानकारियॉं मिल रही हैं, आभार।
ReplyDeleteरोचक श्रंखला चल रही है, बहुत सारी बातें जानने को मिली हैं।
ReplyDelete"न्यूरोएंडोपोर्ट" के बारे में पढ़ कर ज्ञान वर्धन हुआ. उपयोगी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteइतनी रोचक और विविधता भरी जानकारी के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही सुखद समाचार है ये..........
ReplyDeleteजान कर कितना अच्छा लगता है अपनों के बारे में
आचार्य जी के स्वस्थ की शुभ कामनाएं