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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसे पसन्द नहीं है? ब्लॉगिंग हम सबका पसन्दीदा प्लैटफॉर्म शायद इसीलिये है कि इसमें अपने विचारों को निर्बन्ध प्रस्तुत किया जा सकता है। और जहाँ तक सम्भव है, अधिकांश ब्लॉगर्स इस स्वतंत्रता का पूर्ण लाभ उठा रहे हैं। परंतु जैसी कि कहावत है, अधिकार के साथ ज़िम्मेदारी भी बंधी होती है। हमारे अन्य कर्मों की तरह, हम क्या लिखते हैं इसकी पूरी ज़िम्मेदारी भी हमारी ही रहेगी।
सच तो यह है कि हमारे ब्लॉग की पूरी ज़िम्मेदारी हमारी ही है। मतलब यह कि हमारी पोस्ट्स के अलावा भी जो कुछ भी हमारे ब्लॉग पर लिखा जाता है उसकी ज़िम्मेदारी भी काफी हद तक हमारी ही है।
यदि हमारे ब्लॉग की विषय-वस्तु मर्यादित नहीं है या वयस्क-उन्मुख है तो हमें अपने ब्लॉग का समुचित वर्गीकरण करना चाहिये। ब्लॉग पर दिखने वाले लिंक, विज्ञापन, फ़ॉलोवर आदि के द्वारा भी कुछ लोग गन्दगी छोड सकते हैं अतः इन सबका नियमित अवलोकन और सफ़ाई आवश्यक है। यद्यपि मॉडरेशन से खफा होने वाले ब्लॉगरों की संख्या काफी है परंतु टिप्पणियों और फ़ोलोवर लिस्ट में छोडे गये स्पैम या अमर्यादित विज्ञापनों/कडियों से बचने के लिये मॉडरेशन सर्वश्रेष्ठ साधन है।
कई लोग जो अपने सेवा-नियमों या अन्य कारणों से अपनी असली पहचान छिपाकर ब्लॉगिंग कर रहे हैं उन्हें भी यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि पहचान छिपाने भर से उनकी ज़िम्मेदारी कम नहीं होती। यदि वे लिखने के लिये अनधिकृत हैं तो छद्मनाम होकर भी अनधिकृत ही हैं। साथ ही गलत लिखने का उत्तरदायित्व भी लेखक पर रहेगा ही, नाम असली हो या नक़ली। यह दुनिया आभासी हो सकती है लेकिन याद रहे कि इसकी हर रचना के पीछे एक वास्तविक व्यक्ति छिपा है।
एक और मुद्दा है बेनामी, अनामी, गुमनामी, ऐनोनिमस टिप्पणियों का। बेनामी और छद्मनामी ब्लॉग्स की सामग्री की तरह ही ऐसी टिप्पणियों की सामग्री के लिये भी इसके लेखक ज़िम्मेदार हैं। यदि आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग सभ्यता के साथ कर रहे हैं तब शायद इस बात से कोई अंतर नहीं पडता कि आपका नाम सामने है या नहीं। लेकिन यदि आप कुछ ऊलजलूल आक्षेप लगा रहे हैं, किसी की बेइज़्ज़ती कर रहे हैं, अश्लील भाषा का प्रयोग कर रहे हैं या किसी भी प्रकार से क़ानून का उल्लंघन कर रहे हैं तो अपना नाम छिपाने के बावज़ूद आपके कुकृत्य की पूरी ज़िम्मेदारी आप की ही है। आपकी आज़ादी वहीं समाप्त हो जाती है जहाँ दूसरे व्यक्ति का नाम शुरू होता है। राहज़नी करते समय नक़ाब लगाने से अपराध की गम्भीरता कम नहीं होती है।
हो सकता है कि जीवन में एक बार ऐसा अपराध करने वाला बच भी जाये, मगर आदतन बदमाशी करने वाले सावधान रहें क्योंकि आदमी हों या नारी, उनकी पहचान और पकड कहीं आसान है। 2007 में विस्कॉंसिन के एक अध्यापक की गिरफ्तारी ऐसा ही एक चर्चित उदाहरण है। कई बडी हस्तियों का मानना है कि इंटरनैट पत्रकारिता भी समय के साथ परिपक्व हो रही है और अब समय आ गया है कि असभ्य टीका-टिप्पणियों पर अंकुश लगे। बेनामी हो या नामी, सभ्यता तो किसी भी युग की आवश्यकता है। क्या कहते हैं आप?
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कुछ सम्बन्धित कडियाँ अंग्रेज़ी में
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बेनामी टिप्पणियों पर न्यूयॉर्क टाइम्स का एक आलेख
उत्तरदायित्व अभियान
बेनामी भडास के दिन पूरे
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसे पसन्द नहीं है? ब्लॉगिंग हम सबका पसन्दीदा प्लैटफॉर्म शायद इसीलिये है कि इसमें अपने विचारों को निर्बन्ध प्रस्तुत किया जा सकता है। और जहाँ तक सम्भव है, अधिकांश ब्लॉगर्स इस स्वतंत्रता का पूर्ण लाभ उठा रहे हैं। परंतु जैसी कि कहावत है, अधिकार के साथ ज़िम्मेदारी भी बंधी होती है। हमारे अन्य कर्मों की तरह, हम क्या लिखते हैं इसकी पूरी ज़िम्मेदारी भी हमारी ही रहेगी।
सच तो यह है कि हमारे ब्लॉग की पूरी ज़िम्मेदारी हमारी ही है। मतलब यह कि हमारी पोस्ट्स के अलावा भी जो कुछ भी हमारे ब्लॉग पर लिखा जाता है उसकी ज़िम्मेदारी भी काफी हद तक हमारी ही है।
यदि हमारे ब्लॉग की विषय-वस्तु मर्यादित नहीं है या वयस्क-उन्मुख है तो हमें अपने ब्लॉग का समुचित वर्गीकरण करना चाहिये। ब्लॉग पर दिखने वाले लिंक, विज्ञापन, फ़ॉलोवर आदि के द्वारा भी कुछ लोग गन्दगी छोड सकते हैं अतः इन सबका नियमित अवलोकन और सफ़ाई आवश्यक है। यद्यपि मॉडरेशन से खफा होने वाले ब्लॉगरों की संख्या काफी है परंतु टिप्पणियों और फ़ोलोवर लिस्ट में छोडे गये स्पैम या अमर्यादित विज्ञापनों/कडियों से बचने के लिये मॉडरेशन सर्वश्रेष्ठ साधन है।
कई लोग जो अपने सेवा-नियमों या अन्य कारणों से अपनी असली पहचान छिपाकर ब्लॉगिंग कर रहे हैं उन्हें भी यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि पहचान छिपाने भर से उनकी ज़िम्मेदारी कम नहीं होती। यदि वे लिखने के लिये अनधिकृत हैं तो छद्मनाम होकर भी अनधिकृत ही हैं। साथ ही गलत लिखने का उत्तरदायित्व भी लेखक पर रहेगा ही, नाम असली हो या नक़ली। यह दुनिया आभासी हो सकती है लेकिन याद रहे कि इसकी हर रचना के पीछे एक वास्तविक व्यक्ति छिपा है।
एक और मुद्दा है बेनामी, अनामी, गुमनामी, ऐनोनिमस टिप्पणियों का। बेनामी और छद्मनामी ब्लॉग्स की सामग्री की तरह ही ऐसी टिप्पणियों की सामग्री के लिये भी इसके लेखक ज़िम्मेदार हैं। यदि आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग सभ्यता के साथ कर रहे हैं तब शायद इस बात से कोई अंतर नहीं पडता कि आपका नाम सामने है या नहीं। लेकिन यदि आप कुछ ऊलजलूल आक्षेप लगा रहे हैं, किसी की बेइज़्ज़ती कर रहे हैं, अश्लील भाषा का प्रयोग कर रहे हैं या किसी भी प्रकार से क़ानून का उल्लंघन कर रहे हैं तो अपना नाम छिपाने के बावज़ूद आपके कुकृत्य की पूरी ज़िम्मेदारी आप की ही है। आपकी आज़ादी वहीं समाप्त हो जाती है जहाँ दूसरे व्यक्ति का नाम शुरू होता है। राहज़नी करते समय नक़ाब लगाने से अपराध की गम्भीरता कम नहीं होती है।
हो सकता है कि जीवन में एक बार ऐसा अपराध करने वाला बच भी जाये, मगर आदतन बदमाशी करने वाले सावधान रहें क्योंकि आदमी हों या नारी, उनकी पहचान और पकड कहीं आसान है। 2007 में विस्कॉंसिन के एक अध्यापक की गिरफ्तारी ऐसा ही एक चर्चित उदाहरण है। कई बडी हस्तियों का मानना है कि इंटरनैट पत्रकारिता भी समय के साथ परिपक्व हो रही है और अब समय आ गया है कि असभ्य टीका-टिप्पणियों पर अंकुश लगे। बेनामी हो या नामी, सभ्यता तो किसी भी युग की आवश्यकता है। क्या कहते हैं आप?
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बेनामी टिप्पणियों पर न्यूयॉर्क टाइम्स का एक आलेख
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बेनामी भडास के दिन पूरे