एक दफ्तर में पाँच लोग काम करते हों, पाँचों अलग अलग देश में पैदा हुए हों, दो का जन्म एक ही दिन हुआ हो और एक तीसरे का बाकी दो से सिर्फ़ एक दिन पहले। आश्चर्य की बात है न! मेरे लिए नहीं। मेरे पिछले काम में ऐसा ही था। मैं उन दो में से एक हूँ। मेरी जापानी सहकर्मी का जन्मदिन मेरे साथ ही था और हमारे बंगलादेशी मित्र हम दोनों से एक दिन बड़े थे। मेरे बुजुर्ग इराकी साथी और नौजवान अमेरिकी दोस्त उम्र के पैमाने के दो सिरों पर हम तीनो से काफी दूर खड़े थे।
जन्मदिन साथ होने का फायदा यह है कि एक ही दिन की पार्टी में ज़िम्मेदारी निबट जाती है। उपहार तथा बाकी खुशियों के साथ साथ लंच में एक साथ कहीं बाहर जाने का भी रिवाज़ जैसा हो गया है। वैसे तो सारे समूह में मैं ही अकेला शाकाहारी था। परन्तु वे सभी लोग जब भी मेरे साथ निकलते थे तो शाकाहारी स्थलों पर ही जाने का आग्रह करते थे। मुझे भी अच्छा लगता था वरना तो मन में डर सा ही रहता है कि न जाने किस चीज़ में क्या निकल आए। और कुछ नहीं तो खाद्य तेल की जगह पशु चर्बी तो आसानी से हो ही सकती है।
खैर, उस बार हम सब एक भारतीय ढाबे में खाने गए। हमारे इराकी मित्र करीम को पहली बार किसी भारतीय के साथ बैठकर भारतीय खाना खाने का मौका मिला था। उसके पास वैसे भी भारत से जुड़े हुए बहुत से सवाल होते थे। इस बार तो पापी पेट का सवाल था - बल्कि सवालात थे - और बेइंतिहा थे। वह पूछते गए और हम खाते गए - नहीं, बताते गए। भूख वर्धकों (appetisers) से शुरू होकर मुख्य कोर्स से चलते हुए आखिरकार हमारा जन्म दिन भोज अपने अन्तिम पड़ाव यानी मिठाई तक पहुँच ही गया। यहाँ तक मैंने करीम के सभी सवालिया गेंदों पर चौके लगा डाले। जब करीम ने मिठाई को सामने देखा तो उसका नाम पूछा। मैंने बताया - गुलाब जामुन।
"गुलाम जामुन?" उसने पक्का किया।
"नहीं, गुलाब जामुन," मैंने सुधारा।
"ओ हो, गुलाम जामुन!" उसने फिर से कहा।
"गुलाम नहीं गुलाब," मैंने ब पर ज़ोर देकर कहा, "हम आदमखोर नहीं है।"
उसकी समझ में नहीं आया। वह अभी भी "गुलाम" को ही पकड़े हुए था।
"गुलाम मेरी भाषा का शब्द है" वह चहका।
"हाँ, गुलाम का मतलब है दास।।।" हमने भी अपना भाषा ज्ञान बघार दिया। बोलते बोलते हमें गुलाम नबी आज़ाद याद आ गए जो एक ही शरीर में रहते हुए गुलाम भी हैं और आज़ाद भी।
"नहीं, गुलाम का मतलब है लड़का" करीम ने हमारी बात काटते हुए कहा।
जवाबी तीर फैंकने से पहले हमने अपने दिमाग का सारा दही जल्दी से मथा। हमारे हिन्दुस्तान में गुलाम कुछ भी अर्थ रखता हो, अरबी करीम की मातृभाषा थी। हमारे भेजे ने तुंरत ही उसके सही होने की संभावना को हमसे ज्यादा प्राथमिकता दे डाली। वह सारे रास्ते पूछता रहा कि लड़के के जामुन की मिठाई का क्या मतलब है। आख़िरकार हमारे बंगलादेशी मित्र इस बंगाली मिठाई का नाम लगातार बिगाड़े जाने से झल्ला गए और मिठाई का सही नाम बताने का जिम्मा स्वतः ही उनके पास चला गया।
दफ्तर वापस पहुँचने तक करीम गुलाब जामुन से पूर्ण परिचित हो चुके थे और मेरा दिमाग गुलाम शब्द के अर्थ में उलझता जा रहा था। इन्टरनेट पर खोजा तो गुलाम शब्द की खोज में सारे परिणाम भारत से ही थे और अधिकांश किसी न किसी के नाम से सम्बंधित थे। दिल्ली के गुलाम वंश का भी ज़िक्र आया और उसका अंग्रेज़ी अनुवाद दास वंश (slave dynasty) लिखा था जो कि करीम के बताए अर्थ से अलग था।
मैंने करीम की सहायता से इस शब्द के अरब से भारत तक के सफर को जानने की कोशिश की। इस प्रयास में हमने जो भी सीखा, वह आपके सामने है।
भारत की तरह अरब में भी सैनिक युवा ही होते थे और जैसे हम उन्हें फौजी जवान कहते हैं वैसे ही वे भी उन्हें जवान या लड़का कहते थे। एक समय ऐसा भी आया जब उनकी सेना में अनेकों टुकडियाँ दास सैनिकों की भी थीं। दास के लिए अरबी शब्द है अब्द। अश्वेतों के लिए तब का अरबी शब्द था हब्शी। गुलाम इन दोनों से अलग अपने स्वतंत्र अर्थ में चलता रहा और अरब जगत में आज भी उसी अर्थ में प्रयुक्त होता है।
ईरान व अफगानिस्तान आते-आते इसका अर्थ हरम के रक्षक में बदल गया जो कि अमूमन अफ्रीका से लाये हुए दास ही होते थे। भारत पहुँचने तक ईरानी, अरब व तुर्क शासक सम्माननीय हो गए और वे सैनिक होने पर भी लड़का नहीं वरन सरदार आदि खिताबों से नवाजे जाने लगे और सिर्फ़ दास सैनिक गुलाम रह गए। समय के साथ, भारत में यह शब्द दास सैनिक के अर्थ में ही प्रयुक्त होने लगा। बाद के काल में, भारत में इसका अर्थ बदलकर सिर्फ़ दास तक ही सीमित रह गया। हम भारतीय तो पहले से ही अपने नाम में दास लगते थे यथा सूरदास, तुलसी दास, कबीर दास आदि। सो धीरे धीरे रामदास जैसे नामों से चलकर राम गुलाम जैसे नामों से होते हुए हम गुलाम अली और गुलाम नबी आजाद तक आ गए।
और इस तरह पूरा हुआ एक अरबी शब्द का सफर भारत भूमि तक। भूल चूक की माफी चाहूंगा। आपकी टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा। विदा, अगली पोस्ट तक।