पिट्सबर्ग में उत्तरायण की सुबह के कुछ दृश्य और बचपन में जम्मू के लोहड़ी समारोहों में सुना एक गीत, जैसा, जितना याद रहा ...
हुल्ले नी माइ हुल्ले
दो बेरी पत्ता झुल्ले
दो झुल्ल पयीं खजूराँ
खजूराँ सुट्ट्या मेवा
एस मुंडे कर मगेवा
मुंडे दी वोटी निक्कदी
ओ खान्दी चूरी कुटदी
कुट कुट भरया थाल
वोटी बावे ननदना नाल
निन्नाँ ते वड़ी परजायी
ओ कुड़मा दे कर आयी
पिछले वर्ष की लोहड़ी पर मैं भारत में था। लोहड़ी 2011 की शाम कुछ प्यारे-प्यारे बच्चों के साथ
हुल्ले नी माइ हुल्ले
दो बेरी पत्ता झुल्ले
दो झुल्ल पयीं खजूराँ
खजूराँ सुट्ट्या मेवा
एस मुंडे कर मगेवा
मुंडे दी वोटी निक्कदी
ओ खान्दी चूरी कुटदी
कुट कुट भरया थाल
वोटी बावे ननदना नाल
निन्नाँ ते वड़ी परजायी
ओ कुड़मा दे कर आयी
खिड़की से बाहर उत्तरायणी प्रभात |