हिन्दी ब्लॉग परिवार भी एक छोटा सा भारत ही है, सुंदर और विविधता से भरा हुआ। लेखक-सम्पादक-वकील-पत्रकार-अधिकारी तो मिलते ही हैं। छुटभैय्ये नेताओं से लेकर हम जैसे ठलुआ कवियों तक सभी जाति के प्राणी मिल जायेंगे यहाँ पर। वैसे एकाध बड़े नेता-अभिनेता भी मौजूद हैं यहाँ पर। कोई मशहूर होकर झगड़ते हैं कोई झगड़कर मशहूर होते हैं। कोई लेख लिखकर खुश कर देते हैं तो कोई टिप्पणी पढ़कर व्यथित हो जाते हैं। मगर इन सबको पीछे छोड़ आए हैं हमारे ताऊ रामपुरिया।
आज का सवाल है, एक दिन में कितने घंटे होते हैं? क्या कहा, क्लू चाहिए? क्लू है "आज का सवाल" और आपने क्या कहा, "आसान सवाल - २४ घंटे?" यहीं पर आप धोखा खा गए। पिट्सबर्ग में (और शेष अमेरिका में) आज का दिन सिर्फ़ २३ घंटे का था क्योंकि आज यहाँ पर वार्षिक "ग्रीष्म समय बचत काल" शुरू हुआ और घडियां एक घंटा आगे कर दी गयी हैं। ज़ाहिर है कि ग्रीष्म की समाप्ति पर एक दिन पच्चीस घंटे का भी होगा। और यह दोनों संयोजन वर्षांत में होने वाले समय संयोजन से बिल्कुल भिन्न हैं। ग्रीष्म समय बचत काल (या summer time saving) का उद्देश्य गरमी के दिनों में सूर्य के प्रकाश का अधिकाधिक लाभ उठाना ही है।
समय बचत के इस सिद्धांत के प्रवर्तक दो व्यवसायी थे जिनके नाम क्रमशः सिडनी कोलगेट और लिंकन फिलेने थे। उन्होंने ९० वर्ष पहले इस सिद्धांत की जमकर वकालत की कि दिन में एक अतिरिक्त घंटा मिलने से व्यवसायों पर अच्छा असर पडेगा। सन २००५ के ऊर्जा नियामक क़ानून के द्वारा इस समय बचत को नवम्बर तक चलाया जाने लगा। कहा जाता है कि ऐसा करने के पीछे कैंडी व्यवसाय का काफी दवाब रहा था।
देखने में आता है कि इस समायोजन से ऊर्जा की बचत होती है और अधिकाँश व्यवसायों को भी लाभ ही होता है सिवाय एक दूरदर्शन व्यवसाय के जिनकी टी आर पी में एक अल्पकालीन गिरावट देखी जाती है।
पिट्सबर्ग डाउनटाऊन में लगी एक इस्पात कलाकृति का दृश्य
[इस शृंखला के सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा लिए गए हैं. हरेक चित्र पर क्लिक करके उसका बड़ा रूप देखा जा सकता है.]
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इस्पात नगरी से - अन्य कड़ियाँ
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ताऊ नै म्हारी घनी राम-राम. इस बार तो पहेली म्हां मज़ा आ लिया. न फ्लिकर ना गूगल इमेज काम आया. ताऊ, रामप्यारी, बीनू, सैम, सम्पादक मंडल, निर्णायक मंडल, खाली कमंडल तथा जीतने-हारने वाले सभी प्रतियोगियों को बधाई और होली की शुभकामनाएं!वैसे तो ताऊ अपनी चुटीली भाषा और भावपूर्ण (सीमा जी से साभार) कविताओं के लिए अपने भतीजियों-भतीजों में दुनिया भर में जाने जाते हैं, पिछले कई हफ्तों से उनकी प्रहेलिकाओं ने उन्हें ब्लॉगिंग के शिखर पर पहुँचा दिया है। ताऊ अपनी पहेलियों में देश भर की बातें पूछकर और फ़िर उनकी विस्तृत जानकारी देकर हमारा मनोरंजन और ज्ञानवर्धन एक साथ ही करते हैं। अब ताऊ अगर अपनी पहेलियों को भारत तक सीमित रखेंगे तो फ़िर देश से बाहर की बातें कौन पूछेगा भला? चलो मैं ही पूछ लेता हूँ।
आज का सवाल है, एक दिन में कितने घंटे होते हैं? क्या कहा, क्लू चाहिए? क्लू है "आज का सवाल" और आपने क्या कहा, "आसान सवाल - २४ घंटे?" यहीं पर आप धोखा खा गए। पिट्सबर्ग में (और शेष अमेरिका में) आज का दिन सिर्फ़ २३ घंटे का था क्योंकि आज यहाँ पर वार्षिक "ग्रीष्म समय बचत काल" शुरू हुआ और घडियां एक घंटा आगे कर दी गयी हैं। ज़ाहिर है कि ग्रीष्म की समाप्ति पर एक दिन पच्चीस घंटे का भी होगा। और यह दोनों संयोजन वर्षांत में होने वाले समय संयोजन से बिल्कुल भिन्न हैं। ग्रीष्म समय बचत काल (या summer time saving) का उद्देश्य गरमी के दिनों में सूर्य के प्रकाश का अधिकाधिक लाभ उठाना ही है।
समय बचत के इस सिद्धांत के प्रवर्तक दो व्यवसायी थे जिनके नाम क्रमशः सिडनी कोलगेट और लिंकन फिलेने थे। उन्होंने ९० वर्ष पहले इस सिद्धांत की जमकर वकालत की कि दिन में एक अतिरिक्त घंटा मिलने से व्यवसायों पर अच्छा असर पडेगा। सन २००५ के ऊर्जा नियामक क़ानून के द्वारा इस समय बचत को नवम्बर तक चलाया जाने लगा। कहा जाता है कि ऐसा करने के पीछे कैंडी व्यवसाय का काफी दवाब रहा था।
देखने में आता है कि इस समायोजन से ऊर्जा की बचत होती है और अधिकाँश व्यवसायों को भी लाभ ही होता है सिवाय एक दूरदर्शन व्यवसाय के जिनकी टी आर पी में एक अल्पकालीन गिरावट देखी जाती है।
पिट्सबर्ग डाउनटाऊन में लगी एक इस्पात कलाकृति का दृश्य
[इस शृंखला के सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा लिए गए हैं. हरेक चित्र पर क्लिक करके उसका बड़ा रूप देखा जा सकता है.]
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इस्पात नगरी से - अन्य कड़ियाँ
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