Sunday, November 4, 2018

व्यथा कथा - एक गीत

(चित्र व शब्द: अनुराग शर्मा)

ज़िंदगी की रैट-रेस में, जीवन की गलाकाट प्रतियोगिता में हम बहुत कुछ इकट्ठा करते हैं, बिना यह समझे कि एक बिंदु पर पहुँचकर समस्त संसार निस्सार लगने लगता है। इसी भाव को व्यक्त करता एक गीत -   

जीवन एक कथा है सब कुछ छूटते जाने की

हाथ से बालू फिसले ऐसे वक़्त गुज़रता जाता है
बचपन बीता यौवन छूटा तेज़ बुढ़ापा आता है
जल की मीन को है आतुरता जाल में जाने की
जीवन एक कथा है सब कुछ छूटते जाने की।

सपने छूटे, अपने रूठे, गली गाँव सब दूर हुए
कल तक थे जो जग के मालिक मिलने से मजबूर हुए
बुद्धि कितनी जुगत लगाए मन भरमाने की
जीवन एक कथा है सब कुछ छूटते जाने की

छप्पन भोग से पेट भरे यह मन न भरता है
भटक-भटक कर यहाँ वहाँ चित्त खूब विचरता है
लोभ सँवरता न कोई सीमा है हथियाने की
जीवन एक कथा है सब कुछ छूटते जाने की

मुक्त नहीं हूँ मायाजाल मेरा मन खींचे है
जितना छोड़ूँ उतना ही यह मुझको भींचे है
जीवन की ये गलियाँ फिर-फिर आने-जाने की
जीवन एक कथा है सब कुछ छूटते जाने की

भारी कदम कहाँ उठते हैं, गुज़रे रस्ते कब मुड़ते हैं
तंद्रा नहीं स्वप्न न कोई, छोर पलक के कम जुड़ते हैं
कोई खास वजह न दिखती नींद न आने की
जीवन एक कथा है सब कुछ छूटते जाने की

जीवन एक व्यथा है सब कुछ छूटते जाने की ...

Tuesday, October 2, 2018

लघुकथा: तर्पण


गंगा घाट के निकट उसे मेहनत से मसूर के खेत में पानी देते देखकर दिल्ली से आये पर्यटक से रहा न गया। पास जाकर कंधे पर हाथ रखकर पूछा, “कितनी फसल होती है तुम्हारे खेत में?”

“यह मेरा खेत नहीं है।”

“अच्छा! यहाँ मज़दूरी करते हो? कितने पैसे मिल जाते हैं रोज़ के?”

“जी नहीं, मैं यहाँ नहीं रहता, कर्नाटक से तीर्थयात्रा के लिये आया था। गंगाजी में पितृ तर्पण करने के बाद यूँ ही सैर करते-करते इधर निकल आया।”

“न मालिक, न नौकर! फिर क्यों हाड़ तोड़ रहे हो? इसमें तुम्हारा क्या फ़ायदा?”

“हर व्यक्ति, हर काम फ़ायदे के लिये करता तो संसार में कुछ भी न बचता ...” वह मुस्कुराया, “खेत किसका है, मालिक कौन है, इससे मुझे क्या?”

“हैं!?”

“... भूड़ में सूखती फसल देखी तो लगा कि इसे भी तर्पण की आवश्यकता है।”

Anurag Sharma