(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)
वृष्टि यहाँ
वृष्टि वहाँ
हँसता हुआ
भीगे जहाँ
खोजूँ जिसे
छिपता कहाँ
बढता रहे
दर्द ए निहाँ
मंज़िल मेरी
वो है जहाँ
-=<>=-
छाए घन काले सजनी,
अंग-अंग पुलकित वसुधा के
शीतल, हरियाले सजनी!
पवन करे सोर ... |
वृष्टि वहाँ
हँसता हुआ
भीगे जहाँ
खोजूँ जिसे
छिपता कहाँ
बढता रहे
दर्द ए निहाँ
मंज़िल मेरी
वो है जहाँ
-=<>=-
चार पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह "दिनकर" के "पावस गीत" सेदूर देश के अतिथि व्योम में
छाए घन काले सजनी,
अंग-अंग पुलकित वसुधा के
शीतल, हरियाले सजनी!
सरगर्भित रचना!
ReplyDeleteइतने खुबसूरत सधे शब्दों से सजे सावन का स्वागत करता हूँ .अद्भुत अदभुत अनिर्वचनीय
ReplyDeleteवाह!! मनोरम!!
ReplyDeleteवृष्टि से तन मन आद्र
छोटे छोटे वाक्यों का जादू, अभी वृष्टि भरपूर नहीं हुई है.
ReplyDeleterealy small is beautiful.size and difficult words does not matter most of the time.irealy liked.
ReplyDeleteखोजूँ जिसे
ReplyDeleteछिपता कहाँ
बहुत सुंदर ....
मंजिल मेरी वो है जहाँ.... वो कहाँ है
ReplyDeletesundar abhivyakti ....
ReplyDeleteshubhkamnayen.
बहुत सुन्दर............
ReplyDeleteशोर्ट एंड स्वीट...
अनु
हँसता हुआ
ReplyDeleteभीगे जहाँ
बहुत सुन्दर..
हँसता हुआ
ReplyDeleteभीगे जहाँ
बहुत खूब अनुराग भाई !
छोटे तीर,
ReplyDeleteहरते पीर,
राँझा को
ढूंढें हीर ||
वृष्टि यहाँ
ReplyDeleteवृष्टि वहाँ
short and sweet....!
हँसता हुआ
ReplyDeleteभीगे जहाँ
इन शब्दों ने जादू जगा दिया .. पूरी रचना में आभार
Sundar & manbhawan.
ReplyDelete............
ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे...
सूक्षम रचना में सावन -- बहुत मनभावन .
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना, मन हर्षित हो गया.
ReplyDeleteरामराम.
इतने कम शब्दों में इतनी सुंदरता...
ReplyDeleteबहुत - बहुत सुन्दर रचना:-)
ReplyDeleteइससे छोटी बहर में गज़ल कहना तो शायद मुश्किल ही होगा ... बहुत खूब ... सावन के महीने का कमाल ...
ReplyDeleteआपकी भी नज़र किसी मजिल पर है -यह सावन आपकी हसरतों को पूरा करे!
ReplyDeleteगगन की ओर निसाना है (~ बाबा कबीर मगहरी)
Deleteवृष्टि यहाँ , वृष्टि वहां !
ReplyDeleteये बता तू कहाँ ...
छोटी- सी प्यारी -सी कविता !
हित भाषी
ReplyDeleteमित भाषी.
पथरायी हुई आँखों से बादलों को निहारते हुए किसानो को देखकर लगता है-
ReplyDeleteबदल अभी
बरसे कहाँ......?
बढता रहे
दर्द ए निहाँ,
संक्षिप्त किन्तु सरगर्भित रचना !
वृष्टि हँसी
ReplyDeleteसृष्टि हँसी..