भाई भगवतीचरण वोहरा 4 जुलाई 1904 - 28 मई 1930 |
मार्च 1926 में भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह ने मिलकर नौजवान भारत सभा का प्रारूप तैयार किया और फिर रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर संयुक्त रूप से इसकी स्थापना की।भाई भगवतीचरण उन गिने चुने स्वाधीनता सेनानियों में से एक थे जिनके पास भगवान का दिया हुआ सब कुछ था। सुन्दर व्यक्तित्व, सुलझे विचार, अकूत धन-सम्पदा, अद्वितीय लेखन प्रतिभा, अतुल्य साहस और इन सबसे बढकर वीरता, उदारता और दिशा-निर्देशन की अद्वितीय क्षमता। वे अपने समय के सर्वप्रमुख क्रांतिकारी विचारक और लेखक थे। लाहौर कांग्रेस में बांटा गया "हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र" उन्होंने ही लिखा था। भारतीय क्रांतिकारियों का दृष्टिकोण बताता हुआ "बम का दर्शन-शास्त्र (फ़िलॉसॉफ़ी ओफ़ द बॉम)" नामक पत्र भी भाई द्वारा ही लिखित था। यही वह आलेख था जिसके बाद कॉंग्रेस व अन्य धाराओं में भी क्रांतिकारियों के प्रति जुड़ाव की भावना उत्पन्न हुई। इससे पहले के क्रांतिकारी अपनी धुन में रमे अकेले ही चल रहे थे।
हमें ऐसे लोग चाहिये जो निराशा के गर्त में भी निर्भय और बेझिझक होकर युद्ध जारी रख सकें। हमें ऐसे लोग चाहिये जो प्रशस्तिगान की आशा रखे बिना उस मृत्यु के वरण को तैयार हों, जिसके लिये न कोई आंसू बहे और न ही कोई स्मारक बने। ~ भाई भगवतीचरण वोहराउस समय में भी लाखों की सम्पत्ति और हज़ारों रुपये के बैंक बैलैंस होते हुए भी भाई भगवतीचरण ने अपने देशप्रेम हेतु अपने लिये साधारण और कठिन जीवन चुना परंतु साथी क्रांतिकारियों के लिये अपने जीते-जी सदा धन-साधन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति निस्वार्थ भाव से की। लाहौर में तीन मकानों के स्वामी भाई भगवतीचरण ने अपने क्रांतिकर्म के लिये उसी लाहौर की कश्मीर बिल्डिंग में एक कमरा किराये पर लेकर वहाँ बम-निर्माण का कार्य आरम्भ किया था।
समस्त वोहरा परिवार |
श्री भगवती चरण वोहरा का जन्म 4 जुलाई सन 1904 को आगरा के एक प्रतिष्ठित राष्ट्रभक्त और सम्पन्न परिवार में श्री शिवचरण नागर "वोहरा" के घर हुआ था। वोहरा परिवार स्वतंत्र भारत के सपने में पूर्णतया सराबोर था। देशप्रेम, त्याग और समर्पण की भावना समस्त परिवारजनों में कूट-कूट कर भरी थी। विदेशी उत्पाद और मान्यताओं से बचने वाले इस परिवार में केवल खादी के वस्त्र ही स्वीकार्य थे। देश की राजनैतिक और देशवासियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिये इस परिवार का हर सदस्य जान न्योछावर करने को तैयार रहता था।
दुर्गा भाभी |
अदालत की बदनीयती के चलते जब यह आशंका हुई कि अंग्रेज़ सरकार शहीदत्रयी को मृत्युदंड देने का मन बना चुकी है तब भाई (भगवती चरण वोहरा) और भैया (चंद्रशेखर आजाद) ने मिलकर बलप्रयोग द्वारा उन्हें जेल से छुड़ाने की योजना बनाई। चन्द्रशेखर आज़ाद द्वारा भेजे गये दो क्रांतिकारियों और अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर उन्हीं बमों के परीक्षण के समय 28 मई 1930 को रावी नदी के किनारे हुए एक विस्फोट ने वोहरा जी को हमसे सदा के लिये छीन लिया।
एक हाथ कलाई से उड़ गया था दूसरे की उंगलियाँ कट गयी थीं। सबसे बड़ा घाव पेट में था जिससे कुछ आँतें बाहर निकल आई थीं ... मैंने रूँधे कण्ठ से इतना ही कहा, "भैया, ये आपने क्या किया?" उत्तर में वही हठीली मुस्कान, वही शांत मधुर वाणी, "यह अच्छा ही हुआ। यदि तुम दोनों में से कोई घायल हो जाता तो मैं भैया (आज़ाद) को मुँह दिखाने लायक न रहता।" आत्मबलिदान का कितना महान आदर्श। ~ क्रांतिकारी विश्वनाथ वैशम्पायनमृत्यु पर आँसू बहाने की बात तो दूर, चैन से सोती दुनिया को शायद इस अमर शहीद के शव का भी पता न लगता। कहा जाता है कि शहीदत्रयी पर हुई क़ानूनी कार्यवाही के समय चली गवाहियों के बीच भाई की शहादत की बात सामने आयी और तब रावी नदी के किनारे समर्पित अस्थियों को खोदकर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था। भाई के दुखद अवसान के बाद भी दुर्गाभाभी एक सक्रिय क्रांतिकारी रहीं। स्वतंत्रता के बाद दुर्गा भाभी ने में अध्यापन कार्य किया और वोहरा परिवार की त्याग की परम्परा को बनाये रखते हुए लखनऊ का स्कूल और अपनी अचल सम्पत्ति सरकार को दान करके अपने पुत्र शचीन्द्र के साथ अपने अंतिम समय तक ग़ाज़ियाबाद में रहीं।
वोहरा जी को नमन और श्रद्धांजलि! साथ ही उन मित्रों को प्रणाम जिन्हें आज भी वोहरा जी सरीखे हुतात्माओं की याद है, विशेषकर उस मित्र का आभार जिसने मुझे फिर से उन पर लिखने का अवसर दिया। आज इस वीर सेनानी के जन्मदिन पर आइये हम भी देशप्रेम और त्याग की प्रेरणा लें। अमर हो स्वतंत्रता! सत्यमेव जयते!
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* हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र
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* अमेरिका को स्वाधीनता दिवस की बधाई
वीर सेनानी श्री भगवती चरण वोहरा के जन्मदिन पर उन अमर शहीद को कृतज्ञता पूर्वक नमन!!
ReplyDeleteउनके जीवनवृत को प्रस्तुत करने के लिए आपका आभार!!
आदरणीय शर्मा जी आप की हर पोस्ट लाजवाब व अकेडमिक सन्दर्भों में होती है ....जो मुझे दिल से पसंद हैं ...आदरणीय B .C . BOHARA . के अमूल्य योगदान का भारत ऋणी है ,कृतघ्न हैं वो लोग जो अपना अतीत ,शहीदों को भूल जाते हैं ..एक कतरा भी है खून में ...वे प्रेरक तत्व ,भारत के स्वाभिमान ,अमर शहीद ,निर्विबाद रूप से रहबर बने रहेंगे .....आपकी पोस्ट थोड़ी देर से पढ़ी ,माफ़ी चाहते हैं ...शुभकामनाएं जी ./
ReplyDeleteअनुराग जी,समय समय पर आप अमर शहीदों के सपनों की याद दिला कर तरुणाई के उन सपनों की याद दिला देतें हैं, जिन्हें हम पूरा नहीं कर पाये। असफल होने की पीड़ा का यह एहसास होते रहना भी जरूरी है। भाई भगवती वोहरा जी और दुर्गा भाभी की स्मृति को प्रणाम।
ReplyDeleteभगवतीचरणजी वोहरा के बारे में इतनी जानकारी मुझे तो पहली ही बार मिली। अब तक केवल दुर्गा भाभी के सन्दर्भ में ही उनके बारे में सुना/पढा था। आपकी यह पोस्ट बताती है कि नायकों को नायक बनाने वाले वास्तविक नायक कौन थे और कैसे थे।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग का यह पन्ना तो मेरे लिए यादगार बन गया है।
सादर नमन ।
ReplyDeleteप्रभावी प्रस्तुती ।
बधाईयाँ ।।
मेरे लिए आदरणीय भगवतीचरणजी वोहरा जी के व्यक्तित्व से परिचित होने का यह पहला अवसर है. आभार.
ReplyDeleteनमन, इन नायकों को !
ReplyDeleteवोहरा जी को नमन | आपका आभार |
ReplyDeleteअमर शहीद भगवातीचरण वोहरा जी को शत शत नमन !
ReplyDeleteआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है एक आतंकवाद ऐसा भी - अनचाहे संदेशों का ... - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
शहीद भगवतीचरण को सादर नमन..
ReplyDeleteवीर सेनानी भगवतीचरण वोहरा जी को नमन!
ReplyDeleteइस संग्रहणीय आलेख के लिए आपका आभार!
भगवतीचरणजी वोहरा के बारे में इतनी जानकारी मुझे तो पहली ही बार मिली। अब तक केवल दुर्गा भाभी के सन्दर्भ में ही उनके बारे में सुना/पढा था। वोहरा जी को नमन |
ReplyDeleteआपका आभार!!
आज की दशा देख कर मन कहता है काश आज की पीढ़ी इन महान पुरुषो के बारे में जानने की कोशिस करती और कुछ सिख पाती तो कितना सुन्दर होता !
ReplyDeleteआज की दशा देख कर मन कहता है काश आज की पीढ़ी इन महान पुरुषो के बारे में जानने की कोशिस करती और कुछ सिख पाती तो कितना सुन्दर होता !
ReplyDeleteइसे पढ़कर ही याद आया। दुर्गा भाभी के आलेख में आपने लिखा है।..आभार।
ReplyDeleteअमर शहीदों के लिए बहुत ही अच्छी श्रद्धांजलि है , बहुत कुछ जानकारी मिली जो अब इतिहास बन गयी है .
ReplyDeleteसच है, ऐसे ही महान व्यक्तियों के प्रयासों और त्याग के कारण हम स्वतन्त्र हैं, हम चिर कृतज्ञ हों..
ReplyDeleteबड़ा क्षोभ होता है आज की परिस्थितियाँ देखकर. चारों तरफ दलालों की मौज है. शोषण बदस्तूर जारी है. दिखावे का बोलबाला है. जो जितना अधिक भ्रष्ट है वही ईमानदारी पर उतना ही अधिक लच्छेदार भाषण देता है. सबके अपने हिडीन अजेंडे हैं, और उन्हीं के हिसाब से चेहरे तैयार कर लिए हैं. देश की कौन सोचता है. कहाँ नाहक ही शहीद हो गये ये सब महान लोग. और देखियेगा कि कल लोग ये कहने लगेंगे कि कौन सा हमारे लिए फाँसी चढ़े, हमने कौन सी अप्लिकेशन दी थी कि हमारे लिए फाँसी चढ़ जाओ.
ReplyDeleteमहान व्यक्तियों के त्याग के कारण हम स्वतन्त्र हैं
ReplyDeleteजिसके लिये न कोई आंसू बहे और न ही कोई स्मारक बने।
ReplyDeleteऐसे सपूतों के काम आसूं नहीं पैदा करते, खून में जोश भरते हैं। कुछ शर्म भी आती है कि क्यों अपनी रोटी लंगोटी के लिए यहां बैठे हैं।
ऐसों के स्मारक हृदय में बन जाएंगे। आपको साधूवाद कि आपने परिचय कराया।
सादर नमन ...भगवतीचरणजी वोहरा के विषय में विस्तृत जानकारी पहली बार पढ़ी है.....सभी भारतवासी सदैव उनके ऋणी रहेंगें
ReplyDeleteबहुत दिन बाद ऐतिहासिक शोध-पत्र लाये हो.वोहरा जी को भरपूर याद करना अच्छा लगा !
ReplyDeleteइस पोस्ट को पढ़ते हुए जाने कहा गये वे लोंग जैसी अनुभूति हुई . साहस की परिभाषा कोई इनसे सीखे !
ReplyDeleteहम सुविधाभोगी याद कर लेते हैं , यही तसल्ली है !
नमन है क्रांति के अमर परिवार को ... शायद आज ऐसे वीरों के कारण ही हम सांस ले पा रहे हैं आज़ादी की ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी.....हमारा भी नमन..
ReplyDeleteआपका बहुत शुक्रिया
अनु
वोहरा जी को नमन और श्रद्धांजलि! साथ ही उन मित्रों को प्रणाम जिन्हें आज भी वोहरा जी सरीखे हुतात्माओं की याद है,
ReplyDeletejai baba banaras...
वोहरा दम्पति को नमन एवं ,समय-समय पर इन नायकों का स्मरण कराते रहने हेतु आपका आभार !
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि। आज यदि ऐसा एक चरित्र भी ढूंढा जाए तो कठिनाई होगी।
ReplyDeleteनमन !
ReplyDeleteअसली नायक ऐसे ही होते हैं, श्रद्धांजलि|
ReplyDeleteयह पोस्ट तो पूर्व में भी डल चुकी थी!
ReplyDeleteपरम आदरणीय वोहरा जी के सम्बन्ध में जानकारी देने के लिए शुक्रिया... मेरा दुर्भाग्य है की इससे पहले मैं इस हुतात्मा के बारे में नहीं जनता था... अनुराग जी धन्यवाद..
ReplyDeleteशेखर एक जीवनी में अज्ञेय ने बड़े ही संत्रस्त भाव से वोहरा जी की शहीदी का वर्णन किया है इसे पढ़ने से वो प्रसंग फिर आँखों के सामने आ गया।
ReplyDeleteश्रद्धापूर्वक नमन!
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