फूल के बदले चली खूब दुनाली यारों,
बात बढ़ती ही गई जितनी संभाली यारों
दूध नागों को यहाँ मुफ्त मिला करता है,
पीती है मीरा यहाँ विष की पियाली यारों
बीन हम सब ने वहाँ खूब बजा डाली थी,
भैंस वो करती रही जम के जुगाली यारों
दिल शहंशाह था अपना ये भुलावा ही रहा,
जेब सदियों से रही अपनी तो खाली यारों
ज़िंदगी साँपों की आसान करी है हमने,
दोस्ती अपनी ही आस्तीन में पाली यारों
"दूध नागों को यहाँ मुफ्त मिला करता है,
ReplyDeleteपीती है मीरा यहाँ विष की पियाली यारों"
आत्मा रो रही है! सुन्दर रचना
mada aaya to bol.............."haan".........
ReplyDeletepranam.
वाह बहुत खूब :)
ReplyDeleteदूध नागों को यहाँ मुफ्त मिला करता है,
ReplyDeleteपीती है मीरा यहाँ विष की पियाली यारों
बहुत खूब कहा है ये शेर, बहुत सुन्दर सभी अर्थपूर्ण पंक्तियाँ !
बिलकुल सही, आस्तीन भी हमारी और साँप भी।
ReplyDeleteजिन्दगी ऐसी ही है जैसी अब दिखती है...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन आज की बुलेटिन, स्वामी विवेकानंद जी की ११२ वीं पुण्यतिथि , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजी, आभार!
Deleteजी शुक्रिया
ReplyDeleteआपने जीवन को जीवंत कर दिया
ReplyDeleteये तो विष से भी कड़वा सच बयान कर दिया आपने.. एक एक शेर सवा सेर और सन्देश सीधा निशाने पर!!
ReplyDeletePahla sher padhte hi zahan mein Kargil ki durghatana aa gayi..!
ReplyDeleteSabhi umda ashaar...
बहुत ही सशक्त और सटीक.
ReplyDeleteरामराम.
खूब .... कटु पर सत्य है
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल
ReplyDeleteबीन हम सब ने वहाँ खूब बजा डाली थी,
ReplyDeleteभैंस वो करती रही जम के जुगाली यारों
यहां यही तो होता है। जानबूझ कर भैंस के सामने ही बीन बजायी जाती है। बेचारी भैंस सांपों को पिलाने के लिए दूध भी देती है, कसूरवार भी रहती है।
सशक्त और सटीक हर शेर वज़नदार है.
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteसशक्त और सटीक कटु सत्य......
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteज़िंदगी साँपों की आसान करी है हमने,
ReplyDeleteदोस्ती अपनी ही आस्तीन में पाली यारों
- अच्छा परिभाषित किया है !
दिल शहंशाह का अपना ये भुलावा ही रहा,
ReplyDeleteजेब सदियों से रही अपनी भी खाली यारों ..
बात तो दिल की ही होती है ... जेब का भरा होना अपने हाथ में नहीं होता ... अच्छे शेर ...
सुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - ७ . ७ . २०१४ को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteज़िंदगी साँपों की आसान करी है हमने,
ReplyDeleteदोस्ती अपनी ही आस्तीन में पाली यारों
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |
नई रचना उम्मीदों की डोली !
धन्यवाद!
ReplyDeleteदिल शहंशाह का अपना ये भुलावा ही रहा,
ReplyDeleteजेब सदियों से रही अपनी भी खाली यारों
बहुत उम्दा