छह बोले तो सात है, सात कहें तो आठ
कभी समय पर चले नहीं, ऐसे अपने ठाठ
ऐसे अपने ठाठ, कभी मजबूरी होवे
तो भी राम भरोसे लंबी तान के सोवें
सोते से जो कोई मूरख कभी जगा दे
पछतायेंगे उसके तो दादे परदादे
दादे तो अपने भी समझा समझा हारे
ख़ुद ही हार गए हमसे आख़िर बेचारे
(अनुराग शर्मा)
कभी समय पर चले नहीं, ऐसे अपने ठाठ
ऐसे अपने ठाठ, कभी मजबूरी होवे
तो भी राम भरोसे लंबी तान के सोवें
सोते से जो कोई मूरख कभी जगा दे
पछतायेंगे उसके तो दादे परदादे
दादे तो अपने भी समझा समझा हारे
ख़ुद ही हार गए हमसे आख़िर बेचारे
(अनुराग शर्मा)