- अनुराग शर्मा
अपने नसीब में नहीं क्यों दोस्ती का नूर।
मिलते नहीं क्यों रहते हो इतने दूर-दूर॥
समझा था मुझे कोई न पहचान सकेगा।
यह होता कैसे दोस्त मेरे हैं बड़े मशहूर
मसरूफ़ रहे वर्ना मिलने आते वे ज़रूर॥
हम चाहते थे चार पल दोस्तों के साथ।
वह भी न हुआ दोस्त मेरे हो गये मगरूर॥
सोचा था बचपने के फिर साथी मिलेंगे।
ये हो न सका दोस्त मेरे हैं खट्टे अंगूर॥
दो पल न बिताये न जिलायी पुरानी याद।
तिनका था मैं, दोस्त मेरे थे सभी खजूर॥