Wednesday, August 30, 2017

घोंसले - कविता

(अनुराग शर्मा)

बच्चे सारे कहीं खो गये
देखो कितने बड़े हो गये

घुटनों के बल चले थे कभी 
पैरों पर खुद खड़े हो गये

मेहमाँ जैसे ही आते हैं अब
छोड़ के जबसे घर वो गये 

प्यारे माली जो थे बाग में
उनमें से अब कई सो गये

याद से मन खिला जिनकी
यादों में ही नयन रो गये॥


گھوںسلا


بچچے سارے کہیں کھو گئے

دیکھو کتنے بعد_ا ہو گئے

گھٹنوں کے بل چلے تھے کبھی
پیروں پر خود کھڈے ہو گئے

مہمان جیسے ہی آتے ہیں اب
چھوڈ کے جب سے گھر وو گئے

پیارے ملے جو تھے باگ میں
انمیں سے اب کے سو گئے

یاد سے من کھلا جنکی
یاد میں ہی نہیں رو گئے

Sunday, July 9, 2017

आह्वान या आवाहन? दोनों का अंतर

हिंदी के बहुत से शब्दों का दुरुपयोग होता है, अक्सर बोलने में उनके मिलते-जुलते होने के कारण। ऐसा ही एक उदाहरण आवाहन और आह्वान का भी है। जैसा कि पहले कह चुका हूँ, हिंदी के बहुत से शब्दों का सत्यानाश आलसी मुद्रकों और अज्ञानी सम्पादकों ने भी किया है। संयुक्ताक्षर को सटीक रूप से अभिव्यक्त करने वाले साँचे के अभाव में वे उन्हें ग़लत लिखते रहे हैं, ह्व, ह्य, ह्र आदि भी कोई अपवाद नहीं। आह्वान का ह्व न होने की स्थिति में वे कभी आहवान तो कभी आवाहन छाप कर काम चला लेते थे। इस शब्द पर लिखने की बात पहले भी कई बार मन में आई लेकिन हर बार किसी अन्य अधिक महत्वपूर्ण प्राथमिकता के कारण पीछे छूट गई। गत एक जुलाई को 'भारतीय नागरिक-Indian Citizen' की पोस्ट पर निम्न प्रश्न देखा तो आज लिखने का योग बना:

प्रश्न: आह्वान और आवाहन दोनों में अंतर है, क्या है मुझे इस समय बड़ा भ्रम है, कृपया बताएँ 

उत्तर: आह्वान एक पुकार, विनती, या ललकार है। मतलब यह कि आह्वान में बोलकर कहना प्रमुख है। जबकि आवाहन में किसी को आमंत्रित करने की क्रिया है। वाहन चलने-चलाने के लिये है, आवागमन का साधन है। आवाहन में आपके देव अपने वाहन से आकर आपके सामने स्थापित होते हैं। जबकि उससे पहले आप उनके आने का आह्वान कर सकते हैं। आह्वान आप देश की जनता का भी कर सकते हैं कि वह भ्रष्टाचार का विरोध करे। आव्हान एक वचन है जबकि आवाहन एक कर्म है। आह्वान में कथन है जबकि आवाहन में विचलन है।