(अनुराग शर्मा)
बच्चे सारे कहीं खो गये
देखो कितने बड़े हो गये
घुटनों के बल चले थे कभी
पैरों पर खुद खड़े हो गये
मेहमाँ जैसे ही आते हैं अब
छोड़ के जबसे घर वो गये
प्यारे माली जो थे बाग में
उनमें से अब कई सो गये
याद से मन खिला जिनकी
यादों में ही नयन रो गये॥
بچچے سارے کہیں کھو گئے
دیکھو کتنے بعد_ا ہو گئے
گھٹنوں کے بل چلے تھے کبھی
پیروں پر خود کھڈے ہو گئے
مہمان جیسے ہی آتے ہیں اب
چھوڈ کے جب سے گھر وو گئے
پیارے ملے جو تھے باگ میں
انمیں سے اب کے سو گئے
یاد سے من کھلا جنکی
یاد میں ہی نہیں رو گئے
बच्चे सारे कहीं खो गये
देखो कितने बड़े हो गये
घुटनों के बल चले थे कभी
पैरों पर खुद खड़े हो गये
मेहमाँ जैसे ही आते हैं अब
छोड़ के जबसे घर वो गये
प्यारे माली जो थे बाग में
उनमें से अब कई सो गये
याद से मन खिला जिनकी
यादों में ही नयन रो गये॥
گھوںسلا
بچچے سارے کہیں کھو گئے
دیکھو کتنے بعد_ا ہو گئے
گھٹنوں کے بل چلے تھے کبھی
پیروں پر خود کھڈے ہو گئے
مہمان جیسے ہی آتے ہیں اب
چھوڈ کے جب سے گھر وو گئے
پیارے ملے جو تھے باگ میں
انمیں سے اب کے سو گئے
یاد سے من کھلا جنکی
یاد میں ہی نہیں رو گئے
समय चलता नहीं है दौड़ता है जैसे :) सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-08-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2713 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
धन्यवाद!
Deleteबच्चे सारे कहीं खो गये
ReplyDeleteदेखो कितने बड़े हो गये
घुटनों के बल चले थे कभी
पैरों पर खुद खड़े हो गये
ग़ैरों जैसे आते हैं अब
छोड़के जबसे घर वो गये
प्यारे माली जो बगिया के
उनमें से अब कई सो गये
मन जिनकी याद से खिला, उन
यादों से ही नयन रो गये॥
सुंदर भाव..
घोंसले में समाते आखिर कब तक ,एक दिन निकलना ही था उन्हें .
ReplyDeleteप्यारे माली जो थे बाग में
ReplyDeleteउनमें से अब कई सो गये
- यह स्थिति सबसे दुखद है ।
aisa hota h kya??
ReplyDeleteजी, होता तो है
Deleteप्रकृति का नियम है यह
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