जिस देश के शिक्षित नागरिक भी बिना देखे भाले इन्टरनेट से लेकर अपने देश के आड़े टेढ़े नक्शे अपने ब्लोग्स पर ही नहीं, तथाकथित प्रतिष्ठित समाचार साइट्स पर भी लगा रहे हों, उस देश की सीमाओं का आदर एक अधिक शक्तिशाली शत्रु-राष्ट्र क्यों करेगा। पिछले दिनों जब मैं भारत का आधिकारिक मानचित्र ढूंढ रहा था तब पाया कि भारत सरकार की आधिकारिक साइट्स पर देश का मानचित्र ढूँढना दुष्कर ही नहीं असंभव कार्य है। लगा जैसे हमारे देश के कर्ता-धर्ता धरती पर अपनी उपस्थिति से शर्मिंदा हों। ऐसे देश का एक दुश्मन देश यदि वीसा जारी करते समय हमारे राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए आधिकारिक पारपत्र पर भी अपने अनाधिकारिक नक्शे की मुहर बेधड़क होकर सामान्य रूप से लगाते रहता हो, तो आश्चर्य कैसा?
साम्राज्यवादी कम्युनिस्ट चीन की लाल सेना की एक पूरी प्लाटून द्वारा लद्दाख में भारतीय सीमा के अंदर घुसकर एक और चौकी बना लेने की खबर गरम है। भ्रष्टाचार के मामलों का अनचाहा खुलासा हो जाने पर पूरी बहादुरी और निष्ठा से दनादन बयानबाजी करने वाले भारतीय नेता चीनी घुसपैठ पर लीपापोती में लगे हुए हैं। राजनीतिक नेतृत्व में गंभीरता दिखे भी कैसे, चीन तो बहुत बड़ा तानाशाह दैत्य है, पाकिस्तान जैसे छोटे और अस्थिर देश के सैनिक भी हमारी सीमा के भीतर आकर हमारे सैनिकों का सर काट लेते हैं और हमारी सरकार रोक नहीं पाती। हालत यह हो गयी है कि श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश तो दूर, भूटान और मालदीव जैसे देश भी मौका मिलने पर भारत सरकार को मुँह चिढ़ाने से बाज़ नहीं आते।
तिब्बत में भारतीय जलस्रोतों पर चीन अपनी मनमर्ज़ी से न केवल बांध बनाता रहा है, बरसात के दिनों में चीन द्वारा गैरजिम्मेदाराना रूप से छोड़ा गया पानी भारत में भयंकर बाढ़-विभीषिका का कारण बना है। हिमाचल तो पहले ही चीन द्वारा निर्मित अप्राकृतिक बाढ़ से जूझ चुका है, अब ब्रह्मपुत्र के नए बांधों के द्वारा असम से लेकर बांगलादेश तक को डुबाने की साजिश चल रही है। अरुणाचल के क्षेत्रों में चीनी सैनिक पहले से ही जब चाहे भारतीय सीमा में गश्त लगाते रहे हैं। अक्साई-चिन दशकों से चीनी कब्जे में है, अब दौलत बेग ओल्डी में सीमा के छह मील अंदर घुसकर चौकी भी बना ली है। पक्की चीनी चौकी के फोटो इन्टरनेट पर मौजूद होते हुए भी सरकार इसके लिए सिर्फ "तम्बू गाढ़ना" और स्थानीय मुद्दा जैसे शब्दों का प्रयोग कर रही है। कल को शायद हमारी सरकार के किसी मंत्री के संबंधी की कंपनी द्वारा इस चौकी के चूल्हों के लिए कोयला और पीने के लिए चाय सप्लाई करने का ठेका भी ले लिया जाये। अफसोस की बात है कि ताज़ा चीनी दुस्साहस की प्रतिक्रिया में हमारे नेताओं की किसी भी हरकत में भारत का गौरव बनाए रखने की इच्छाशक्ति नहीं दिखती। अरे सरकार में बैठे "शांतिप्रिय" नेता कुछ और न भी करें, कम से कम दिग्विजय सरीखे किसी वक्तव्य सिंह को सीमा पर तो भेज सकते हैं।
अब एक सीरियस नोट - भारत की उत्तरी सीमा कहीं भी चीन से नहीं छूती। आधिकारिक रूप से उत्तर में हमारे सीमावर्ती राष्ट्र नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान और तिब्बत हैं। चीन के साथ सभी मतभेदों की तीन मूल वजहें हैं।
अच्छी बात है कि तिब्बत की निर्वासित सरकार और उनके राष्ट्रीय नेता ससम्मान भारत में रहते हैं। लेकिन उनका क्या जो पीछे छूट गए हैं? तिब्बत की पददलित बौद्ध जनता अपने देश की स्वतन्त्रता के लिए आगे बढ़-बढ़कर आत्मदाह कर रही है। तिब्बत के पश्चिमी क्षेत्रों में मुस्लिम वीगरों की हालत भी कोई खास अच्छी नहीं है। लेकिन तिब्बत के बाहर चीन के विकसित क्षेत्रों में भी जनता खुश नहीं है। कम्युनिस्ट नेताओं और उनके शक्तिशाली संबंधियों द्वारा गरीबों को निरंतर जबरन विस्थापित किए जाने से वहाँ भी असंतोष बढ़ रहा है। इसलिए, चीन की धमकियों और घुसपैठ का मुँहतोड़ जवाब देना उतना मुश्किल नहीं है जितना सतही तौर पर देखने से लगता है। चीनी आधिपत्य से दबी सम्पूर्ण जनता केवल एक दरार के इंतज़ार में है। वह दरार दिख जाये तो तानाशाही के दमन और साम्राज्यवाद के विघटन का काम वे काफी हद तक खुद कर लेंगे।
चीन की दादागिरी भारत की संप्रभुता के लिए एक बड़ी समस्या है। सीमा पर हर रोज़ बढ़ती उद्दंडता के मद्देनजर, भारत सरकार में बैठे लोगों को न केवल गंभीरता से तिब्बत की स्वतन्त्रता की ओर कदम उठाने चाहिए बल्कि चीन की नाक में तिब्बत कार्ड पूरी ताकत से ठूंस देना चाहिए। वे हमारे पासपोर्ट पर अपनी मुहर लगाएँ तो हम उनके पासपोर्ट पर उनकी साम्राज्यवादी असलियत चस्पाँ करें। मतलब यह कि उनके पारपत्रों पर ऐसी मुहर लगाएँ जिसमें भारत की सीमाएं तो सटीक हों ही, तिब्बत भी स्वतंत्र दिखाई दे। मेरी नज़र में सरकार बड़ी आसानी से कुछ ऐसे काम कर सकती है जिनसे तिब्बत समस्या संसार में उजागर हो और भारत-चीन सीमा मामले पर चीन दवाब में आए। अभी तक जो गलत हुआ सो हुआ, कम से कम भविष्य पर एक कूटनीतिक नज़र तो रहनी ही चाहिए।
शुरुआत कुछ छोटे-छोटे कदमों से की जा सकती है:
1) भारत सरकार की वेब साइट्स पर भारत का आधिकारिक मानचित्र प्रमुखता से लगाया जाये।
2) सीमा पर चीनी गुर्राहट के मामले पाये जाने पर उन्हें छिपाने के बजाय संसार के सम्मुख लाया जाये
3) तिब्बत के मुद्दे पर हर मौके का फायदा उठाकर खुलकर सामने आया जाये
4) चीन से तिब्बती शरणार्थी और उनकी सरकार को उनकी ज़मीन एक समय सीमा के भीतर वापस देने की बात हो
5) मानचित्र के बारे में खुद भी जानें और आम जनता में भी जागरूकता उत्पन्न करें।
6) चीनी दूतावास वाली सड़क का नाम 'दलाई लामा मार्ग', 'स्वतंत्र तिब्बत पथ' या 'रंगज़ेन' रखा जाए।
दलाई लामा का भारत में निवास हमारे लिए गौरव की बात तो है ही, अतिथि और शरणागत के आदर की गौरवमयी भारतीय परंपरा के अनुकूल भी है। फिर भी उनकी सहमति से उनकी सम्मानपूर्वक देश वापसी के बारे में समयबद्ध रणनीति पर काम होना चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को अपने खोल से बाहर आकर इस राष्ट्रीय मुद्दे पर एकमत होना चाहिए।
सरकारी नौकरी न करने वाले सभी ब्लोगर्स, जिनमें विभिन्न राजनीतिक दलों के पक्ष में किस्म-किस्म के तर्क रखने वाले और राजनीतिक प्रतिबद्धता वाले ब्लॉगर ही नहीं, बल्कि अन्य सभी भी शामिल हैं, अपने लेखन और अन्य सभी संभव माध्यमों से इस जागृति का प्रसार करें कि एक स्वतंत्र तिब्बत भारत की आवश्यकता है। संभव हो तो "तिब्बत के मित्र" जैसे जन आंदोलनों का हिस्सा बनिये। यदि आपकी नज़र में कुछ सुझाव हैं तो कृपया उन्हें मुझसे भी साझा कीजिये।
इसके अलावा, पाँच साल में एक बार अपनी चौहद्दी से बाहर निकलकर आपके दरवाजे पर वोट मांगने आने वाले नेताओं से भी यह पूछिये कि राष्ट्रीय गौरव के ऐसे मुद्दों पर उनकी कोई स्पष्ट नीति क्यों नहीं है, और यदि है तो वह उनके मेनिफेस्टो पर क्यों नहीं दिखती है?
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साम्राज्यवादी कम्युनिस्ट चीन की लाल सेना की एक पूरी प्लाटून द्वारा लद्दाख में भारतीय सीमा के अंदर घुसकर एक और चौकी बना लेने की खबर गरम है। भ्रष्टाचार के मामलों का अनचाहा खुलासा हो जाने पर पूरी बहादुरी और निष्ठा से दनादन बयानबाजी करने वाले भारतीय नेता चीनी घुसपैठ पर लीपापोती में लगे हुए हैं। राजनीतिक नेतृत्व में गंभीरता दिखे भी कैसे, चीन तो बहुत बड़ा तानाशाह दैत्य है, पाकिस्तान जैसे छोटे और अस्थिर देश के सैनिक भी हमारी सीमा के भीतर आकर हमारे सैनिकों का सर काट लेते हैं और हमारी सरकार रोक नहीं पाती। हालत यह हो गयी है कि श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश तो दूर, भूटान और मालदीव जैसे देश भी मौका मिलने पर भारत सरकार को मुँह चिढ़ाने से बाज़ नहीं आते।
तिब्बत में भारतीय जलस्रोतों पर चीन अपनी मनमर्ज़ी से न केवल बांध बनाता रहा है, बरसात के दिनों में चीन द्वारा गैरजिम्मेदाराना रूप से छोड़ा गया पानी भारत में भयंकर बाढ़-विभीषिका का कारण बना है। हिमाचल तो पहले ही चीन द्वारा निर्मित अप्राकृतिक बाढ़ से जूझ चुका है, अब ब्रह्मपुत्र के नए बांधों के द्वारा असम से लेकर बांगलादेश तक को डुबाने की साजिश चल रही है। अरुणाचल के क्षेत्रों में चीनी सैनिक पहले से ही जब चाहे भारतीय सीमा में गश्त लगाते रहे हैं। अक्साई-चिन दशकों से चीनी कब्जे में है, अब दौलत बेग ओल्डी में सीमा के छह मील अंदर घुसकर चौकी भी बना ली है। पक्की चीनी चौकी के फोटो इन्टरनेट पर मौजूद होते हुए भी सरकार इसके लिए सिर्फ "तम्बू गाढ़ना" और स्थानीय मुद्दा जैसे शब्दों का प्रयोग कर रही है। कल को शायद हमारी सरकार के किसी मंत्री के संबंधी की कंपनी द्वारा इस चौकी के चूल्हों के लिए कोयला और पीने के लिए चाय सप्लाई करने का ठेका भी ले लिया जाये। अफसोस की बात है कि ताज़ा चीनी दुस्साहस की प्रतिक्रिया में हमारे नेताओं की किसी भी हरकत में भारत का गौरव बनाए रखने की इच्छाशक्ति नहीं दिखती। अरे सरकार में बैठे "शांतिप्रिय" नेता कुछ और न भी करें, कम से कम दिग्विजय सरीखे किसी वक्तव्य सिंह को सीमा पर तो भेज सकते हैं।
अब एक सीरियस नोट - भारत की उत्तरी सीमा कहीं भी चीन से नहीं छूती। आधिकारिक रूप से उत्तर में हमारे सीमावर्ती राष्ट्र नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान और तिब्बत हैं। चीन के साथ सभी मतभेदों की तीन मूल वजहें हैं।
- कश्मीर के पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र
- चीनी कब्जे में अकसाई-चिन
- तिब्बत राष्ट्र पर चीन का अनधिकृत कब्जा और उसके बावजूद होने वाली दादागिरी और अनियंत्रित विस्तारवाद
अच्छी बात है कि तिब्बत की निर्वासित सरकार और उनके राष्ट्रीय नेता ससम्मान भारत में रहते हैं। लेकिन उनका क्या जो पीछे छूट गए हैं? तिब्बत की पददलित बौद्ध जनता अपने देश की स्वतन्त्रता के लिए आगे बढ़-बढ़कर आत्मदाह कर रही है। तिब्बत के पश्चिमी क्षेत्रों में मुस्लिम वीगरों की हालत भी कोई खास अच्छी नहीं है। लेकिन तिब्बत के बाहर चीन के विकसित क्षेत्रों में भी जनता खुश नहीं है। कम्युनिस्ट नेताओं और उनके शक्तिशाली संबंधियों द्वारा गरीबों को निरंतर जबरन विस्थापित किए जाने से वहाँ भी असंतोष बढ़ रहा है। इसलिए, चीन की धमकियों और घुसपैठ का मुँहतोड़ जवाब देना उतना मुश्किल नहीं है जितना सतही तौर पर देखने से लगता है। चीनी आधिपत्य से दबी सम्पूर्ण जनता केवल एक दरार के इंतज़ार में है। वह दरार दिख जाये तो तानाशाही के दमन और साम्राज्यवाद के विघटन का काम वे काफी हद तक खुद कर लेंगे।
चीन की दादागिरी भारत की संप्रभुता के लिए एक बड़ी समस्या है। सीमा पर हर रोज़ बढ़ती उद्दंडता के मद्देनजर, भारत सरकार में बैठे लोगों को न केवल गंभीरता से तिब्बत की स्वतन्त्रता की ओर कदम उठाने चाहिए बल्कि चीन की नाक में तिब्बत कार्ड पूरी ताकत से ठूंस देना चाहिए। वे हमारे पासपोर्ट पर अपनी मुहर लगाएँ तो हम उनके पासपोर्ट पर उनकी साम्राज्यवादी असलियत चस्पाँ करें। मतलब यह कि उनके पारपत्रों पर ऐसी मुहर लगाएँ जिसमें भारत की सीमाएं तो सटीक हों ही, तिब्बत भी स्वतंत्र दिखाई दे। मेरी नज़र में सरकार बड़ी आसानी से कुछ ऐसे काम कर सकती है जिनसे तिब्बत समस्या संसार में उजागर हो और भारत-चीन सीमा मामले पर चीन दवाब में आए। अभी तक जो गलत हुआ सो हुआ, कम से कम भविष्य पर एक कूटनीतिक नज़र तो रहनी ही चाहिए।
शुरुआत कुछ छोटे-छोटे कदमों से की जा सकती है:
1) भारत सरकार की वेब साइट्स पर भारत का आधिकारिक मानचित्र प्रमुखता से लगाया जाये।
2) सीमा पर चीनी गुर्राहट के मामले पाये जाने पर उन्हें छिपाने के बजाय संसार के सम्मुख लाया जाये
3) तिब्बत के मुद्दे पर हर मौके का फायदा उठाकर खुलकर सामने आया जाये
4) चीन से तिब्बती शरणार्थी और उनकी सरकार को उनकी ज़मीन एक समय सीमा के भीतर वापस देने की बात हो
5) मानचित्र के बारे में खुद भी जानें और आम जनता में भी जागरूकता उत्पन्न करें।
6) चीनी दूतावास वाली सड़क का नाम 'दलाई लामा मार्ग', 'स्वतंत्र तिब्बत पथ' या 'रंगज़ेन' रखा जाए।
दलाई लामा का भारत में निवास हमारे लिए गौरव की बात तो है ही, अतिथि और शरणागत के आदर की गौरवमयी भारतीय परंपरा के अनुकूल भी है। फिर भी उनकी सहमति से उनकी सम्मानपूर्वक देश वापसी के बारे में समयबद्ध रणनीति पर काम होना चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को अपने खोल से बाहर आकर इस राष्ट्रीय मुद्दे पर एकमत होना चाहिए।
सरकारी नौकरी न करने वाले सभी ब्लोगर्स, जिनमें विभिन्न राजनीतिक दलों के पक्ष में किस्म-किस्म के तर्क रखने वाले और राजनीतिक प्रतिबद्धता वाले ब्लॉगर ही नहीं, बल्कि अन्य सभी भी शामिल हैं, अपने लेखन और अन्य सभी संभव माध्यमों से इस जागृति का प्रसार करें कि एक स्वतंत्र तिब्बत भारत की आवश्यकता है। संभव हो तो "तिब्बत के मित्र" जैसे जन आंदोलनों का हिस्सा बनिये। यदि आपकी नज़र में कुछ सुझाव हैं तो कृपया उन्हें मुझसे भी साझा कीजिये।
इसके अलावा, पाँच साल में एक बार अपनी चौहद्दी से बाहर निकलकर आपके दरवाजे पर वोट मांगने आने वाले नेताओं से भी यह पूछिये कि राष्ट्रीय गौरव के ऐसे मुद्दों पर उनकी कोई स्पष्ट नीति क्यों नहीं है, और यदि है तो वह उनके मेनिफेस्टो पर क्यों नहीं दिखती है?
सभी चित्र अंतर्जाल पर विभिन्न समाचार स्रोतों से साभार |
बेहद चिंताजनक ।
ReplyDeleteलगभग दस बारह वर्ष पूर्व दिल्ली दूरदर्शन पर आने वाले एक लोकप्रिय धारावाहिक में भारत के गलत मानचित्र होने पर उन्हें सूचित भी किया था , कार्यवाही का आश्वासन देंने के बावजूद वह धारावाहिक उसी मानचित्र के साथ प्रस्तुत होता रहा .
ReplyDeleteसीमाओं का क्या है , सैनिक होते रहे शहीद ! प्रशासन के पास इतने अनगिनत कार्य है , कहाँ तक ध्यान रखें :(
वाणी जी, जैसे आप देश की सीमाओं की जानकारी रख सकती हैं वैसे ही धारावाहिक का निर्माता, निर्देशक,दूरदर्शन अधिकारी, सूचना, प्रसारण विभाग, मंत्रालय - इत्ते बड़े तामझाम में से कोई एक व्यक्ति तो जिम्मेदार हो सकता है न। सवाल प्राथमिकताओं का भी है और सरकारी स्टार पर गैरजिम्मेदारी को बढ़ावा देने का भी है।
Deleteघर में शेर से दिखने वाले बाहर ढेर हो जाते हैं, आन्तरिक कमजोरी सबको दिखायी देती है, पड़ोसी को भी।
ReplyDeleteसर इसके लिये कुछ किया जा सकता है?इसपर प्रकाश डालिये।
Deleteचिंतित करने वाले हालात हैं।
ReplyDeleteअपने मंत्रालय वाले कहते हैं कि इधर आ गये तो लहू बहेगा.. और पड़ोसी देश हमारे देश में घुस गया तो इनकी घिग्घी बँधी हुई है, कहते हैं इतना बड़ा मुद्दा "फ़्लैग मीटिंग" में निपटा लिया जायेगा, जब हमारे विदेश मंत्री ही ऐसे हों तो और किसी से उम्मीद करना ही बेकार है।
ReplyDeleteसच है। लेकिन जब जनता ऐसे मंत्रियों की थू-थू करेगी तो उन्हें भी अपनी ज़िम्मेदारी का ख्याल आयेगा। एक जिम्मेदार प्रधानमंत्री ने सेना की असीम कुर्बानी के बाद जीता हुआ भूभाग राजनीतिक दवाब में लौटाने की भूल की थी, वे देश वापस नहीं आए थे। उनसे कुछ तो सीखना चाहिए आज के नेताओं को।
Deleteजय जवान, जय किसान, जय भारत भूमि!
१. कहीं न कहीं हर घटना के पीछे भ्रष्टाचार है, फौजों का आधुनिकीकरण भी इसके चपेट में है.
ReplyDelete२. हमारे रहबर कैसे हैं-शायद नब्बे प्रतिशत को इस घटना के बारे में जानकारी ही न होगी, विशेषत: निचले पायदानों पर.
३. डि-सेन्ट्रलाइजेशन मतलब-हिस्सा अब नीचे तक.
४. लोगों की मानसिकता भी वैसे ही-हाथ चिकना कर काम निकालो.
५. नैतिकता और देश प्रेम-किस चीज का नाम है.
६. अभी कोई यह कहने लगेगा कि आप उन्माद फैला रहे हैं युद्ध का.
७. कोई यह भी कहेगा कि सीमा पर ऐसा कुछ भी नहीं.
इसलिये जब सब अपने अपने में मगन तो फिर देश का कौन सोचे. मानसिक रूप से आजादी भी तो दरकार है. कारगिल के समय ऐसा सीन नहीं था, आज तो कमाल है.
भ्रष्टाचार का घुन तो सबसे घातक है ही ...
Deleteit is a total failure of not only our government but of us as a people to go on EQUALLY IRRESPONSIBLY going on allowing the same party to rule us by either NOT VOTING / or VOTING FOR BRIBES
ReplyDelete"उनके पारपत्रों पर ऐसी मुहर लगाएँ जिसमें भारत की सीमाएं तो सटीक हों ही, तिब्बत भी स्वतंत्र दिखाई दे" सरल और सुंदर तरीका हो सकता है.
ReplyDeletebilkul sahi likha hai aapne hamare netalog jo sabse adhik kisi bhi samasya par bolte hain yaha chup kyo hai.........
ReplyDeleteबहुत विचारणीय सवाल उठाती पोस्ट..
ReplyDelete@मानचित्र के बारे में खुद भी जानें और आम जनता में भी जागरूकता उत्पन्न करें।
ReplyDeleteइसी एक सुझाव पर सोशल मीडिया के लोग आसानी से अमल कर सकते हैं.
श्रीगणेशायनमः!
Deleteसबसे पहले तो देश एक नीति तो बनाए की उसे करना क्या है अपने पड़ोसियों के प्रति ... जिसका मन होता है भारत को धमका जाता है ... अपने नेता लोग ही अलग अलग विदेश नीति की बात करते हैं ... ओर सच कहूं तो जितना कमजोर आज है भारत उतना पिछले ६० वर्षों में कभी नहीं रहा ...
ReplyDeleteएकदम सही, कमजोर और बेबस!
Deleteसर प्रणाम,
Delete======
सर, भारत 60 वर्षों में उतना कमजोर कभी नहीं रहा जितना आज है.....कुछ हजम नहीं हो रहा है। डाबर की हाजमोला वाली गोली भी फेल कर गई ! सर जब कोई भी दूसरा देश अपने देश को बुरा कहता है ....सैनिकों के सिर काटता है तो जिम्मेदार पदों को सुशोभित कर रहे लोगों के दिल में भी ज्वालामुखी फटती होगी? लेकिन जब अपने घर के हालात देखते होंगे तो ऐसी प्रतिक्रिया देने को मजूबर होते हैं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। रेडियो और अखबारों में विदेश मामलों के जानकारों के विचार सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है जिसमें माना गया है कि पाकिस्तान और चीन में से किसी एक से बढ़िया से उलझने के बाद दूसरे देश से मुकाबला करने की क्षमता लगभग न के बराबर रह जाएगी। जब मोदी कहते थे कि दुनिया का कोई देश भारत को धमका नहीं सकता तो उनका मतलब ये नही था मेरे पीएम बनने के 1-2 साल में ही ऐसा हो जाएगा। भारत फिलहाल कितना ताकतवर है ..इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत के पास 50 दिन तक चल सकने तक का गोला बारूद भी नहीं है।
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चीन-पाकिस्तान जैसे देशों से निपटने के लिए सामरिक और आर्थिक रूप से ताकतवर बनना होगा। महाशक्ति बनना होगा। तब तक चालाक कूटनीति से ही काम चलाना होगा। विदेश विभाग से सारी प्रतिक्रिया उस कूटनीति के तहत ही जारी होती है। लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं कि बिल्कुल दब कर ही रहा जाए। कैसी नीती अपनाई जाए ये तय होती है विदेश विभाग में मौजूद चीनी मामलों के विशेषज्ञों की सलाह से। देखते हैं कि आने वाले दिनों में मोदी कितना साहस दिखा पाते हैं।
vicharniya post...
ReplyDeleteएक ज्वलंत मुद्दे को उठाती सार्थक पोस्ट !!
ReplyDeleteनेतृत्व राष्ट्र-हित को सर्वोपरि समझे तब तो, उनके तो प्रीफ़रेन्सेज़ ही दूसरे हैं !
ReplyDeleteभारत की किसी भी प्रतिक्रिया का कोई फायदा नहीं होने वाला है और हमारी सरकार भी इस बात को अच्छी तरह समझती है कि चीन की सरकार और वहाँ की आर्मी के संबंध अब वैसे ही है जैसे पाकिस्तान में सरकार और सेना के।ऐसे लगता है कि चीन की सेना ही वहाँ की सरकार को ये दिखाना चाहती है कि भारत के साथ किसी भी तरह की ढिलाई न बरती जाए कोई समझौता न किया जाए और जो भी वार्ता हो उसमें पलडा हमारा ही भारी रहे।वर्ना चीन की सरकार तो खुद जानती है कि 1962 और अब में बहुत अंतर आ चुका है।किसी उल्टी हरकत का नुकसान उसे ही ज्यादा उठाना पड़ेगा।व्यापारिक हित चीन के ही हमारे साथ ज्यादा जुड़े हैं न कि हमारे चीन के साथ ।
ReplyDeleteप्रतिकृया का कुछ न कुछ फायदा तो होगा ही, प्रतिक्रियाविहीन रहने में तो हानी के सिवा कुछ भी नहीं - भूमि की हानि भी और अपयश भी, सेना की हताशा अलग!
Deleteशर्मनाक इस अतिक्रमण का मुंहतोड़ और तत्काल जवाब जरुरी है
ReplyDeleteचीन की इस हरकत के मूल में है जापान और भारत का क़रीब आना । भारत के रूस के अलावा केवल जापान के साथ रणनीतिक साझेदार के सम्बन्ध हैं , फ़रवरी में भारतीय सेनाध्यक्ष के जापान जाने की खबर भारतीय मीडिया ने अधिक नहीं छापी लेकिन चीन की कुलबुलाहट की वजह यही है कि भारत और जापान की नौसेनाएँ पहले ही एग्रेसिव पैट्रोलिंग कर रही हैं कोस्ट गार्ड स्तर पर और अब थलसेनाध्यक्ष के जाने को तो वो पचा ही नहीं पा रहा है । इस वक्त एक हज़ार से ऊपर जापानी कंपनियाँ भारत में पंजीकृत हो चुकी हैं और ये बात चीन को परेशान कर रही है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो मनमाने तरीक़े अपना कर हमें दबाने की कोशिश करे । उसे मुँह तोड़ जवाब मिलना चाहिए .
ReplyDeleteआपका अवलोकन महत्वपूर्ण है। सब जानते हैं कि चीन एक अकड़ू राष्ट्र है, वह अपने चारों ओर के देशों की ज़मीन पर प्रभुत्व जमाने की जोड़तोड़ में लगा रहता है। ऐसे में दो महत्वपूर्ण प्रतिद्वंदीयों की नजदीकी से जलन स्वाभाविक है। चीन को घुसपैठ का मुंहतोड़ जवाब तो मिलना ही चाहिए।
Deleteजापान और अमेरिका जैसे स्वतंत्र लोकतन्त्र भारत के स्वाभाविक मित्र हैं, इनका विकास और आपसी सहयोग मानव मात्र की स्वतन्त्रता के लिए आशा की किरण है।
Deleteयही एक अफसोस जनक स्थिति है कि हम अपनी अस्मिता की लड़ाई में कभी साथ साथ नहीं दिखते ** शर्मनाक
ReplyDeleteविचारणीय और चिंताजनक विषय | सटीक प्रयास | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आपकी इस पोस्ट पर मेरी भी टिप्पणी थी। शायद आपने हटा दी है। कृपया देख लीजिएगा।
ReplyDeleteजी नहीं, मैंने आपकी कोई टिप्पणी नहीं हटाई है। टिप्पणी मोडरेशन के बारे में मेरे नीति टिप्पणी बॉक्स के नीचे स्पष्ट लिखी है:
Deleteमॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।
सही चिन्तन, वाकयी भारत की निष्क्रियता ही चीन की हिम्मत बढ़ाती है। यदि भारत ऐसे ही ठंडा बना रहा तो कुछ सालों में अनेक सीमायी इलाके चीन के कब्जे में होंगे।
ReplyDeleteसर आपने विस्तार से लिखा है। समझ भी आया है। विदेश मामलों के एक जानकार ने एक बार बताया था कि अंग्रेजों ने तिब्बत को भारत और चीन के बीच बफर स्टेट के रूप में अहमियत देते थे। लेकिन 1962 के युद्ध से काफी पहले नेहरु ने चीन में जाकर तिब्बत को चीन का हिस्सा माना। अगर नेहरू ने ये गलती न की होती तो आज तिब्बत पर कम से कम भारत चीन को वो दर्द दे सकता था जो चीन कश्मीर के मुद्दे पर भारत को देता है।
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