Monday, February 23, 2015

खिलखिलाहट - लघुकथा

दादी और दादा
(चित्र व कथा: अनुराग शर्मा)

"बोलो उछलना।"

"उछलना।"

"अरे बिलकुल ठीक तो बोल रही हो।"

"हाँ, उछलना को ठीक बोलने में क्या खास है।"

"तो फिर बच्चों के सामने छुछलना क्यों कहती हो? सब हँसते हैं।"

"इसीलिए तो।"

"इसीलिए किसलिए?"

"ताकि वे हंस सकें। उनकी दैवी खिलखिलाहट पर सारी दुनिया कुर्बान।"

12 comments:

  1. बहुत खूब ... कुछ भी अगर बच्चे खिलखिला सकें ...

    ReplyDelete
  2. बचकानी भाषा जहां बच्चों को हँसाती है वहीँ बच्चों के लिए बच्चा बनना भी एक अपूर्व आनन्द है . छोटी , रोचक और परिपूर्ण लघुकथा .

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्‍दर। बात बच्‍चों के लिए एकदम बच्‍चों की तुतलाहट में।

    ReplyDelete
  4. बच्चा बन कर सोचते हैं न वे ,इसीलिए तो !

    ReplyDelete
  5. बचपन से वुवावस्था फिर वुवावस्था से बुढ़ापा जीवन का एक सुन्दर प्रवास है ! बुढ़ापा जीवन अनुभव का उच्चतम शिखर है एक बच्चे को समझने के लिए उसके स्थिति तक फिर से लाना
    पड़ता है उस जिए हुए अनुभव को, यही कारण है हमारे देश में बुढ़ापे को इतना अधिक सम्मान दिया जाता है कि वे बच्चे के साथ बच्चा बनने को तैयार रहते है बिना किसी संकोच के ! सुन्दर सार्थक लघु कथा है !

    ReplyDelete
  6. बहुत ही बढ़िया दादी अपने पोतो और बच्चों को खुश करने के लिए ऐसी क़ुरबानी देती है .. वाह ....

    नयी कड़ियाँ :- Google Earth Pro अब मुफ्त में डाउनलोड करे

    ReplyDelete
  7. सच। वे हँसते हैं तो जग हँसता है।

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।