दादी और दादा |
"बोलो उछलना।"
"उछलना।"
"अरे बिलकुल ठीक तो बोल रही हो।"
"हाँ, उछलना को ठीक बोलने में क्या खास है।"
"तो फिर बच्चों के सामने छुछलना क्यों कहती हो? सब हँसते हैं।"
"इसीलिए तो।"
"इसीलिए किसलिए?"
"ताकि वे हंस सकें। उनकी दैवी खिलखिलाहट पर सारी दुनिया कुर्बान।"
बहुत खूब ... कुछ भी अगर बच्चे खिलखिला सकें ...
ReplyDeleteबचकानी भाषा जहां बच्चों को हँसाती है वहीँ बच्चों के लिए बच्चा बनना भी एक अपूर्व आनन्द है . छोटी , रोचक और परिपूर्ण लघुकथा .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर। बात बच्चों के लिए एकदम बच्चों की तुतलाहट में।
ReplyDeleteबच्चा बन कर सोचते हैं न वे ,इसीलिए तो !
ReplyDeleteबचपन से वुवावस्था फिर वुवावस्था से बुढ़ापा जीवन का एक सुन्दर प्रवास है ! बुढ़ापा जीवन अनुभव का उच्चतम शिखर है एक बच्चे को समझने के लिए उसके स्थिति तक फिर से लाना
ReplyDeleteपड़ता है उस जिए हुए अनुभव को, यही कारण है हमारे देश में बुढ़ापे को इतना अधिक सम्मान दिया जाता है कि वे बच्चे के साथ बच्चा बनने को तैयार रहते है बिना किसी संकोच के ! सुन्दर सार्थक लघु कथा है !
बहुत ही बढ़िया दादी अपने पोतो और बच्चों को खुश करने के लिए ऐसी क़ुरबानी देती है .. वाह ....
ReplyDeleteनयी कड़ियाँ :- Google Earth Pro अब मुफ्त में डाउनलोड करे
बहुत खूब...
ReplyDeleteसच। वे हँसते हैं तो जग हँसता है।
ReplyDelete:)
ReplyDelete:) Bahut Badhiya
ReplyDeleteअहा !
ReplyDeleteसत्य लिखा है.
ReplyDelete