अनुरागी मन से दो शब्द
अपनी कहानियों के लिए, उनके विविध विषयों, रोचक पृष्ठभूमि और यत्र-तत्र बिखरे रंगों के लिए मैं अपने पात्रों का आभारी हूँ। मेरी कहानियों की ज़मीन उन्होंने तैयार की है। वे सब मेरे मित्र हैं यद्यपि मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता हूँ।
कथा निर्माण के उदेश्य से मैं उनसे मिला अवश्य हूँ। कहानी लिखते समय मैं उन्हें टोकता भी रहता हूँ। लेकिन हमारा परिचय केवल उतना ही है जितना कहानी में वर्णित है। बल्कि वहाँ भी मैंने लेखकीय छूट का लाभ उठाया है। इस हद तक, कि कुछ पात्र शायद अपने को वहाँ पहचान न पायें। कई तो शायद खफा ही हो जाएँ क्योंकि मेरी कहानी उनका जीवन नहीं है।
मेरे पात्र भले लोग हैं। अच्छे या बुरे, वे सरल और सहज हैं, जैसे भीतर, तैसे बाहर। मेरी कहानियाँ इन पात्रों की आत्मकथाएँ नहीं हैं। उन्हें मेरी आत्मकथा समझना तो और भी ज्यादती होगी। मेरी कहानियाँ समाचारपत्र की रिपोर्ट भी नहीं हैं। मैंने अपने या पात्रों के अनुभवों में से कुछ भी यथावत नहीं परोसा है।
मेरी हर कहानी एक संभावना प्रदान करती है। एक अँधेरे कमरे में खिड़की की किसी दरार से दिखते तारों की तरह। किसी सुराख से आती प्रकाश की एक किरण जैसे, मेरी कहानियाँ आशा की कहानियाँ हैं। यदि कहीं निराशा दिखती भी है, वहाँ भी जीवन की नश्वरता के दुःख के साथ मृत्योर्मामृतम् गमय का उद्घोष है। कल अच्छा था, आज बेहतर है, कल सर्वश्रेष्ठ होगा।
हृदयस्पर्शी संस्मरण लिखने के लिए पहचाने जाने वाले अभिषेक कुमार ने अपने ब्लॉग पर अनुरागी मन की एक सुंदर समीक्षा लिखी है, मन प्रसन्न हो गया। आभार अभिषेक!
अपनी कहानियों के लिए, उनके विविध विषयों, रोचक पृष्ठभूमि और यत्र-तत्र बिखरे रंगों के लिए मैं अपने पात्रों का आभारी हूँ। मेरी कहानियों की ज़मीन उन्होंने तैयार की है। वे सब मेरे मित्र हैं यद्यपि मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता हूँ।
कथा निर्माण के उदेश्य से मैं उनसे मिला अवश्य हूँ। कहानी लिखते समय मैं उन्हें टोकता भी रहता हूँ। लेकिन हमारा परिचय केवल उतना ही है जितना कहानी में वर्णित है। बल्कि वहाँ भी मैंने लेखकीय छूट का लाभ उठाया है। इस हद तक, कि कुछ पात्र शायद अपने को वहाँ पहचान न पायें। कई तो शायद खफा ही हो जाएँ क्योंकि मेरी कहानी उनका जीवन नहीं है।
मेरे पात्र भले लोग हैं। अच्छे या बुरे, वे सरल और सहज हैं, जैसे भीतर, तैसे बाहर। मेरी कहानियाँ इन पात्रों की आत्मकथाएँ नहीं हैं। उन्हें मेरी आत्मकथा समझना तो और भी ज्यादती होगी। मेरी कहानियाँ समाचारपत्र की रिपोर्ट भी नहीं हैं। मैंने अपने या पात्रों के अनुभवों में से कुछ भी यथावत नहीं परोसा है।
मेरी हर कहानी एक संभावना प्रदान करती है। एक अँधेरे कमरे में खिड़की की किसी दरार से दिखते तारों की तरह। किसी सुराख से आती प्रकाश की एक किरण जैसे, मेरी कहानियाँ आशा की कहानियाँ हैं। यदि कहीं निराशा दिखती भी है, वहाँ भी जीवन की नश्वरता के दुःख के साथ मृत्योर्मामृतम् गमय का उद्घोष है। कल अच्छा था, आज बेहतर है, कल सर्वश्रेष्ठ होगा।
हृदयस्पर्शी संस्मरण लिखने के लिए पहचाने जाने वाले अभिषेक कुमार ने अपने ब्लॉग पर अनुरागी मन की एक सुंदर समीक्षा लिखी है, मन प्रसन्न हो गया। आभार अभिषेक!
इसे भी पढ़िये:
* अनुरागी मन की समीक्षा अभिषेक कुमार द्वारा
* लेखक बेचारा क्या करे? भाग 1
* लेखक बेचारा क्या करे? भाग 2
* अच्छे ब्लॉग लेखन के सूत्र
* बुद्धिजीवी कैसे बनते हैं?
हाँ और बहुत अच्छी समीक्षा की है अभिषेक जी ने ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई अनुरागी मन के लिए..अब भला अनुरागी मन आपके पास नहीं होगा तो किसके पास होगा..कुछ कहानियाँ तो इसमें की सम्भवतः हमने भी पढ़ी होंगी इस ब्लॉग के जरिये से..
ReplyDeleteअपना बच्चा है और दिल से लिखता है. :)
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-07-2015) को "कौवा मोती खायेगा...?" (चर्चा अंक-2043) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी!
Deleteआपका आभार!
ReplyDeleteअति सुंदर !!!
ReplyDelete"अनुरागी मन" कथा संकलन प्रकाशन पर बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteअनुरागी मन .... आपका मन, जीवन सफ़र ,आपका नाम और पुस्तक का नाम , दोनों ही हमसफ़र होंगे किताब के इन पृष्ठों का ... आपको बहुत बहुत बधाई किताब की ... अभिषेक जी जब लिखना शुरू करते हैं तो पढने वाला उनकी पोस्ट ख़त्म किये बिना रह ही नहीं पाता ...
ReplyDeleteAmazon पर बिटिया मेरे लिए हमेशा मेरी पसंद की पुस्तके ऑर्डर करती थी आज उसकी कमी बहुत खल रही है :( "अनुरागी मन" आपकी इस पुस्तक के बारे में थोड़ा कुछ पढ़ा जिज्ञासा है पूरी कहानियां पढने की, अभिषेक जी की समीक्षा अभी पढ़ी नहीं पर जरूर पढूंगी ! लेखक के दो शब्द सार्थक सटीक लगे बहुत बहुत बधाई आपको पुस्तक प्रकाशन की अनुराग जी !
ReplyDeleteकथा संकलन प्रकाशन पर बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeletebahut achchhi samiksha ki abhishek ne
ReplyDeleteसमीक्षा पढ़ा.... पर उसकी जरूरत नहीं। आपके पात्र कहीं न कहीं हमे तों जाने पहचाने लगेंगे ही.... जल्दी ही उनसे मिलना होगा !
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