सन 2008 की गर्मियों में जब मैंने यूनिकोड और लिप्यंतरण (ट्रांसलिटरेशन) की सहायता से हिंदी ब्लॉग लेखन आरम्भ किया तब से अब तक के चिठ्ठा-जगत में आमूलचूल परिवर्तन आ चुका है। यदि वह ब्लॉगिंग का उषाकाल था तो अब सूर्यास्त के बाद की रात है। अंधेरी रात का सा सन्नाटा छाया हुआ है जिसमें यदा-कदा कुछ ब्लॉगर कवियों की रचनाएँ खद्योतसम टिमटिमाती दिख जाती हैं। इन नौ-दस वर्षों में आखिर ऐसा क्या हुआ जो हिन्दी ब्लॉगिंग का पूर्ण सत्यानाश हो गया?
एक कारण तो बहुत स्पष्ट है। ब्लॉगिंग में बहुत से लोग ऐसे थे जो यहाँ लिखने के लिये नहीं, बातचीत और मेल-मिलाप के लिये आये थे। ब्लॉगिंग इस कार्य के लिये सर्वश्रेष्ठ माध्यम तो नहीं था लेकिन फिर भी बेहतर विकल्प के अभाव में काम लायक जुगाड़ तो था ही। वैसे भी एक आम भारतीय गुणवत्ता के मामले में संतोषी जीव है और जुगाड़ को सामान्य-स्वीकृति मिली हुई है। खाजा न सही भाजी सही, जो उपलब्ध था, उसीसे काम चलाते रहे। ब्लॉगर मिलन से लेकर ब्लॉगिंग सम्मेलन तक काफ़ी कुछ हुआ। लेकिन जब फ़ेसबुक जैसा कुशल मिलन-माध्यम (सोशल मीडिया) हाथ आया तो ब्लॉगर-मित्रों की मानो लॉटरी खुल गई। त्वरित-चकल्लस के लिये ब्लॉगिंग जैसे नीरस माध्यम के मुकाबले फ़ेसबुक कहीं सटीक सिद्ध हुई। मज़ेदार बात यह है कि ब्लॉगिंग के पुनर्जागरण के लिये चलाया जाने वाला '#हिन्दी_ब्लॉगिंग' अभियान भी फ़ेसबुक से शक्तिवर्धन पा रहा है।
तकनीकी अज्ञान के चलते बहुत से ब्लॉगरों ने अपने-अपने ब्लॉग को अजीबो-गरीब विजेट्स का अजायबघर बनाया जिनमें से कई विजेट्स अधकचरे थे और कई तो खतरनाक भी। कितने ही ब्लॉग्स किसी मैलवेयर या किसी अन्य तकनीकी खोट के द्वारा अपहृत हुए। उन पर क्लिक करने मात्र से पाठक किन्हीं अवाँछित साइट्स पर पहुँच जाता था। तकनीकी अज्ञान ने न केवल ऐसे ब्लॉगरों के अपने कम्प्यूटर को वायरस या मैलवेयर द्वारा प्रदूषित कराया बल्कि वे जाने-अनजाने अपने पाठकों को भी ऐसे खतरों की चपेट में लाने का साधन बने।
हिंदी के कितने ही चिट्ठों के टिप्पणी बॉक्स स्पैम या अश्लील लिंक्स से भरे हुए हैं। कुछ स्थितियों में अनामी, और कुछ अन्य स्थितियों में नाम/यूआरएल का दुरुपयोग करने वाले टिप्पणीकार समस्या बने। टिप्पणी मॉडरेशन इन समस्याओं का सामना करने में सक्षम है। मैंने ब्लॉगिंग के पहले दिन से ही मॉडरेशन लागू किया था और कुछ समय लगाकर अपने ब्लॉग की टिप्पणी नीति भी स्पष्ट शब्दों में सामने रखी थी जिसने मुझे अवांछित लिंक्स चेपने वालों के बुरे इरादे के प्रकाशन की ब्लॉगिंग-व्यापी समस्या से बचाया। मॉडरेशन लगाने से कई लाभ हैं। इस व्यवस्था में सारी टिप्पणियाँ एकदम से प्रकाशित हो जाने के बजाय पहले ब्लॉगर तक पहुँचती हैं, जिनका निस्तारण वे अपने विवेकानुसार कर सकते हैं। जो प्रकाशन योग्य हों उन्हें प्रकाशित करें और अन्य को कूड़ेदान में फेंकें।
टिप्पणी के अलावा अनुयायियों (फ़ॉलोअर्स) की सूची को भी चिठ्ठाकारों की कड़ी दृष्टि की आवश्यकता होती है। कई ऐसे ब्लॉगर जिन्हें ग़ैरकानूनी धंधों की वजह से जेल में होना चाहिये, अपने लिंक्स वहाँ चेपते चलते हैं। यदि आपने अपने ब्लॉग पर फ़ॉलोअर्स का विजेट लगाया है तो बीच-बीच में इस सूची पर एक नज़र डालकर आप अपनी ज़िम्मेदारी निभाकर उन्हें ब्लॉक भी कर सकते हैं और रिपोर्ट भी। वैसे भी नए अनुयाइयों के जुड़ने पर उनकी जाँच करना एक अच्छी आदत है।
कितने ही ब्लॉग 'जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु:' के सिद्धांत के अनुसार बंद हुए। किसी ने जोश में आकर लिखना शुरू किया और होश में आकर बंद कर दिया। कितने ही ब्लॉग हिंदी चिट्ठाकारी के प्रवक्ताओं के 'सदस्यता अभियान' के अंतर्गत बिना इच्छाशक्ति के जबरिया खुला दिये गये थे, उन्हें तो बंद होना ही था। लेकिन कितने ही नियमित ब्लॉग अपने लेखक के देहांत के कारण भी छूटे। पिछले एक दशक में हिंदी ब्लॉगिंग ने अनेक गणमान्य ब्लॉगरों को खोया है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
केवल तकनीक ही नहीं कई बार व्यक्ति भी हानिप्रद सिद्ध होते हैं। हिन्दी चिठ्ठाकारी का कुछ नुकसान ऐसे हानिप्रद चिट्ठाकारों ने भी किया। घर-परिवार से सताए लोग जो यहाँ केवल कुढ़न निकालने के लिये बैठे थे उन्होंने सामाजिक संस्कारों के अभाव और असभ्यता का प्रदर्शन कर माहौल को कठिन बनाया जिसके कारण कई लोगों का मन खट्टा हुआ। कुछ भोले-भाले मासूम ब्लॉगर जो शुरू में ऐसे लोगों को प्रमोट करते पाये गये थे बाद में सिर पीटते मिले लेकिन तब तक चिट्ठाकारी का बहुत अहित हो चुका था। कान के कच्चे और जोश के पक्के ब्लॉगरों ने भी कई फ़िज़ूल के झगड़ों की आग में जाने-अनजाने ईंधन डालकर कई ब्लॉग बंद कराए।
गोबरपट्टी की "मन्ने के मिलेगा?" की महान अवधारणा भी अनेक चिट्ठों की अकालमृत्यु का कारण बनी। ब्लॉगिंग को कमाई का साधन समझकर पकड़ने वालों में कुछ तो ऐसे थे जिन्होंने अन्य चिठ्ठाकारों की कीमत पर कमाई की भी लेकिन अधिकांश के पल्ले कुछ नहीं पड़ा। विकीपीडिया से ब्लॉग और ब्लॉग से विकीपीडिया तक टीपीकरण की कई यात्राएँ करने, भाँति-भाँति के विज्ञापनों से लेकर किसम-किसम की ठगी स्कीमों से निराश होने के बाद ब्लॉगिंग से मोहभंग स्वाभाविक ही था। सो यह वाला ब्लॉगर वर्ग भी सुप्तावस्था को प्राप्त हुआ। हालांकि ऐडसेंस आदि द्वारा कोई नई घोषणा आदि होने की स्थिति में यह मृतपक्षी अपने पर फ़ड़फ़ड़ाता हुआ नज़र आ जाता है।
हिंदी ब्लॉगरों के सामूहिक सामान्य-अज्ञान ने भी ब्लॉगिंग का अहित किया। मौलिकता का पूर्णाभाव, अभिव्यक्ति की स्तरहीनता, विशेषज्ञता की कमी के साथ, चोरी के चित्र, चोरी की लघुकथाएँ मिल-मिलाकर कितने दिन चलतीं। कॉपीराइट स्वामियों की शिकायतों पर चोरी की कुछ पोस्टें तो खुद हटाई गईं लेकिन कितने ही ब्लॉग कॉपीराइट स्वामियों की शिकायतों पर ब्लॉगर या वर्डप्रैस आदि द्वारा बंद कर दिये गये।
बहुत से ब्लॉगर उचित प्रोत्साहन के अभाव में भी टूटे। एक तो ये नाज़ुकमिज़ाज़ सरलता से आहत हो जाते थे, ऊपर से स्थापित मठाधीशों को अपने राजपथ से आगे की तंग गलियों में जाने की फ़ुरसत नहीं थी। कइयों के टिप्पणी बक्सों में लगे वर्ड वेरिफ़िकेशन जैसे झंझटों ने भी इनके ब्लॉग को टिप्पणियों से दूर किया। बची-खुची कसर उन तुनकमिज़ाज़ों ने पूरी कर दी जो टिप्पणी में सीधे जंग का ऐलान करते थे। कोई सामान्य ब्लॉगर ऐसी खतरनाक युद्धभूमि में कितनी देर ठहरता? सो देर-सवेर घर को रवाना हुआ। यद्यपि कई अस्थिर-चित्त ब्लॉगर ऐसे भी थे जो हर तीसरे दिन टंकी आरोहण की घोषणा सिर्फ़ इसी उद्देश्य से करते थे कि लोग आकर मनाएंगे तो कुछ टिप्पणियाँ जुटेंगी। किसे खबर थी कि उनकी चौपाल भी एक दिन वीरान होगी।
ऐसा नहीं है कि ब्लॉगिंग छूटने के सभी कारण निराशाजनक ही हों। बहुत से लोगों को ब्लॉगिंग ने अपनी पहचान बनाने में सहायता की। कितने ही साथी ब्लॉगर बनने के बाद लेखक, कवि और व्यंग्यकार बने। उनकी किताबें प्रकाशित हुईं। कुछ साथी ब्लॉगिंग के सहयोग से क्रमशः कच्चे-पक्के सम्पादक, प्रकाशक, आयोजक, पुरस्कारदाता, और व्यवसायी भी बने। कितनों ने अपनी वैबसाइटें बनाईं, पत्रिकाएँ और सामूहिक ब्लॉग शुरू किये। कुछ राजनीति से भी जुड़े।
खैर, अब ताऊ रामपुरिया के हिन्दी ब्लॉगिंग के पुनर्जागरण अभियान के अंतर्गत 1 जुलाई को "अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगिंग दिवस" घोषित किये जाने की बात सुनकर आशा बंधी है कि हम अपनी ग़लतियों से सबक लेंगे और स्थिति को बेहतर बनाने वालों की कतार में खड़े नज़र आयेंगे।
शुभकामनाएँ!
एक कारण तो बहुत स्पष्ट है। ब्लॉगिंग में बहुत से लोग ऐसे थे जो यहाँ लिखने के लिये नहीं, बातचीत और मेल-मिलाप के लिये आये थे। ब्लॉगिंग इस कार्य के लिये सर्वश्रेष्ठ माध्यम तो नहीं था लेकिन फिर भी बेहतर विकल्प के अभाव में काम लायक जुगाड़ तो था ही। वैसे भी एक आम भारतीय गुणवत्ता के मामले में संतोषी जीव है और जुगाड़ को सामान्य-स्वीकृति मिली हुई है। खाजा न सही भाजी सही, जो उपलब्ध था, उसीसे काम चलाते रहे। ब्लॉगर मिलन से लेकर ब्लॉगिंग सम्मेलन तक काफ़ी कुछ हुआ। लेकिन जब फ़ेसबुक जैसा कुशल मिलन-माध्यम (सोशल मीडिया) हाथ आया तो ब्लॉगर-मित्रों की मानो लॉटरी खुल गई। त्वरित-चकल्लस के लिये ब्लॉगिंग जैसे नीरस माध्यम के मुकाबले फ़ेसबुक कहीं सटीक सिद्ध हुई। मज़ेदार बात यह है कि ब्लॉगिंग के पुनर्जागरण के लिये चलाया जाने वाला '#हिन्दी_ब्लॉगिंग' अभियान भी फ़ेसबुक से शक्तिवर्धन पा रहा है।
तकनीकी अज्ञान के चलते बहुत से ब्लॉगरों ने अपने-अपने ब्लॉग को अजीबो-गरीब विजेट्स का अजायबघर बनाया जिनमें से कई विजेट्स अधकचरे थे और कई तो खतरनाक भी। कितने ही ब्लॉग्स किसी मैलवेयर या किसी अन्य तकनीकी खोट के द्वारा अपहृत हुए। उन पर क्लिक करने मात्र से पाठक किन्हीं अवाँछित साइट्स पर पहुँच जाता था। तकनीकी अज्ञान ने न केवल ऐसे ब्लॉगरों के अपने कम्प्यूटर को वायरस या मैलवेयर द्वारा प्रदूषित कराया बल्कि वे जाने-अनजाने अपने पाठकों को भी ऐसे खतरों की चपेट में लाने का साधन बने।
हिंदी के कितने ही चिट्ठों के टिप्पणी बॉक्स स्पैम या अश्लील लिंक्स से भरे हुए हैं। कुछ स्थितियों में अनामी, और कुछ अन्य स्थितियों में नाम/यूआरएल का दुरुपयोग करने वाले टिप्पणीकार समस्या बने। टिप्पणी मॉडरेशन इन समस्याओं का सामना करने में सक्षम है। मैंने ब्लॉगिंग के पहले दिन से ही मॉडरेशन लागू किया था और कुछ समय लगाकर अपने ब्लॉग की टिप्पणी नीति भी स्पष्ट शब्दों में सामने रखी थी जिसने मुझे अवांछित लिंक्स चेपने वालों के बुरे इरादे के प्रकाशन की ब्लॉगिंग-व्यापी समस्या से बचाया। मॉडरेशन लगाने से कई लाभ हैं। इस व्यवस्था में सारी टिप्पणियाँ एकदम से प्रकाशित हो जाने के बजाय पहले ब्लॉगर तक पहुँचती हैं, जिनका निस्तारण वे अपने विवेकानुसार कर सकते हैं। जो प्रकाशन योग्य हों उन्हें प्रकाशित करें और अन्य को कूड़ेदान में फेंकें।
टिप्पणी के अलावा अनुयायियों (फ़ॉलोअर्स) की सूची को भी चिठ्ठाकारों की कड़ी दृष्टि की आवश्यकता होती है। कई ऐसे ब्लॉगर जिन्हें ग़ैरकानूनी धंधों की वजह से जेल में होना चाहिये, अपने लिंक्स वहाँ चेपते चलते हैं। यदि आपने अपने ब्लॉग पर फ़ॉलोअर्स का विजेट लगाया है तो बीच-बीच में इस सूची पर एक नज़र डालकर आप अपनी ज़िम्मेदारी निभाकर उन्हें ब्लॉक भी कर सकते हैं और रिपोर्ट भी। वैसे भी नए अनुयाइयों के जुड़ने पर उनकी जाँच करना एक अच्छी आदत है।
कितने ही ब्लॉग 'जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु:' के सिद्धांत के अनुसार बंद हुए। किसी ने जोश में आकर लिखना शुरू किया और होश में आकर बंद कर दिया। कितने ही ब्लॉग हिंदी चिट्ठाकारी के प्रवक्ताओं के 'सदस्यता अभियान' के अंतर्गत बिना इच्छाशक्ति के जबरिया खुला दिये गये थे, उन्हें तो बंद होना ही था। लेकिन कितने ही नियमित ब्लॉग अपने लेखक के देहांत के कारण भी छूटे। पिछले एक दशक में हिंदी ब्लॉगिंग ने अनेक गणमान्य ब्लॉगरों को खोया है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
केवल तकनीक ही नहीं कई बार व्यक्ति भी हानिप्रद सिद्ध होते हैं। हिन्दी चिठ्ठाकारी का कुछ नुकसान ऐसे हानिप्रद चिट्ठाकारों ने भी किया। घर-परिवार से सताए लोग जो यहाँ केवल कुढ़न निकालने के लिये बैठे थे उन्होंने सामाजिक संस्कारों के अभाव और असभ्यता का प्रदर्शन कर माहौल को कठिन बनाया जिसके कारण कई लोगों का मन खट्टा हुआ। कुछ भोले-भाले मासूम ब्लॉगर जो शुरू में ऐसे लोगों को प्रमोट करते पाये गये थे बाद में सिर पीटते मिले लेकिन तब तक चिट्ठाकारी का बहुत अहित हो चुका था। कान के कच्चे और जोश के पक्के ब्लॉगरों ने भी कई फ़िज़ूल के झगड़ों की आग में जाने-अनजाने ईंधन डालकर कई ब्लॉग बंद कराए।
गोबरपट्टी की "मन्ने के मिलेगा?" की महान अवधारणा भी अनेक चिट्ठों की अकालमृत्यु का कारण बनी। ब्लॉगिंग को कमाई का साधन समझकर पकड़ने वालों में कुछ तो ऐसे थे जिन्होंने अन्य चिठ्ठाकारों की कीमत पर कमाई की भी लेकिन अधिकांश के पल्ले कुछ नहीं पड़ा। विकीपीडिया से ब्लॉग और ब्लॉग से विकीपीडिया तक टीपीकरण की कई यात्राएँ करने, भाँति-भाँति के विज्ञापनों से लेकर किसम-किसम की ठगी स्कीमों से निराश होने के बाद ब्लॉगिंग से मोहभंग स्वाभाविक ही था। सो यह वाला ब्लॉगर वर्ग भी सुप्तावस्था को प्राप्त हुआ। हालांकि ऐडसेंस आदि द्वारा कोई नई घोषणा आदि होने की स्थिति में यह मृतपक्षी अपने पर फ़ड़फ़ड़ाता हुआ नज़र आ जाता है।
हिंदी ब्लॉगरों के सामूहिक सामान्य-अज्ञान ने भी ब्लॉगिंग का अहित किया। मौलिकता का पूर्णाभाव, अभिव्यक्ति की स्तरहीनता, विशेषज्ञता की कमी के साथ, चोरी के चित्र, चोरी की लघुकथाएँ मिल-मिलाकर कितने दिन चलतीं। कॉपीराइट स्वामियों की शिकायतों पर चोरी की कुछ पोस्टें तो खुद हटाई गईं लेकिन कितने ही ब्लॉग कॉपीराइट स्वामियों की शिकायतों पर ब्लॉगर या वर्डप्रैस आदि द्वारा बंद कर दिये गये।
बहुत से ब्लॉगर उचित प्रोत्साहन के अभाव में भी टूटे। एक तो ये नाज़ुकमिज़ाज़ सरलता से आहत हो जाते थे, ऊपर से स्थापित मठाधीशों को अपने राजपथ से आगे की तंग गलियों में जाने की फ़ुरसत नहीं थी। कइयों के टिप्पणी बक्सों में लगे वर्ड वेरिफ़िकेशन जैसे झंझटों ने भी इनके ब्लॉग को टिप्पणियों से दूर किया। बची-खुची कसर उन तुनकमिज़ाज़ों ने पूरी कर दी जो टिप्पणी में सीधे जंग का ऐलान करते थे। कोई सामान्य ब्लॉगर ऐसी खतरनाक युद्धभूमि में कितनी देर ठहरता? सो देर-सवेर घर को रवाना हुआ। यद्यपि कई अस्थिर-चित्त ब्लॉगर ऐसे भी थे जो हर तीसरे दिन टंकी आरोहण की घोषणा सिर्फ़ इसी उद्देश्य से करते थे कि लोग आकर मनाएंगे तो कुछ टिप्पणियाँ जुटेंगी। किसे खबर थी कि उनकी चौपाल भी एक दिन वीरान होगी।
ऐसा नहीं है कि ब्लॉगिंग छूटने के सभी कारण निराशाजनक ही हों। बहुत से लोगों को ब्लॉगिंग ने अपनी पहचान बनाने में सहायता की। कितने ही साथी ब्लॉगर बनने के बाद लेखक, कवि और व्यंग्यकार बने। उनकी किताबें प्रकाशित हुईं। कुछ साथी ब्लॉगिंग के सहयोग से क्रमशः कच्चे-पक्के सम्पादक, प्रकाशक, आयोजक, पुरस्कारदाता, और व्यवसायी भी बने। कितनों ने अपनी वैबसाइटें बनाईं, पत्रिकाएँ और सामूहिक ब्लॉग शुरू किये। कुछ राजनीति से भी जुड़े।
खैर, अब ताऊ रामपुरिया के हिन्दी ब्लॉगिंग के पुनर्जागरण अभियान के अंतर्गत 1 जुलाई को "अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगिंग दिवस" घोषित किये जाने की बात सुनकर आशा बंधी है कि हम अपनी ग़लतियों से सबक लेंगे और स्थिति को बेहतर बनाने वालों की कतार में खड़े नज़र आयेंगे।
शुभकामनाएँ!
सही समस्यायों की ओर संकेत ...
ReplyDeleteniyamit blog lekhan se man sakriya rehta tha, ek baar phir koshish hai
ReplyDeleteब्लॉगिंग के पुनर्जागरण के लिये चलाया जाने वाला '#हिन्दी_ब्लॉगिंग' अभियान भी फ़ेसबुक से शक्तिवर्धन पा रहा है। :)
ReplyDeleteब्लॉगों के अवसान का एक कारण यह भी रहा कि जिस तरह से फ़ेसबुक में गोष्ठी-चर्चा जैसी थ्रेडेड कमेंट की सुविधा है, वो इसमें नहीं मिला. अभी भी नहीं. बहुतों ने थर्ड पार्टी विजेट लगाए, पर बकवास. वर्डप्रेस तो प्रीमियम ही बना रहा, परंतु आम-जन का ब्लॉगर लंबे समय तक बिना अपडेट या बिना कोई नई सुविधा लिए वीरान सा स्टैटिक ही बना रहा. इस बीच, फ़ेसबुक ने रफ़्तार पकड़ ली, और उपयोगकर्ताओं के मुताबिक हर हफ़्ते अपने को ढालते बदलते रहा, नई-नई सुविधाएँ देता रहा. फ़ेसबुक के रफ़्तार पकड़ने की असली वजह ब्लॉगर ब्लॉगों की तकनीक में सुविधाओं, घटिया-उपयोगकर्ता-अमित्र इंटरफ़ेस आदि का अच्छा खासा अभाव ही रहा है.
आलेखों में लिंक किए इतर ब्लॉगों में अजीबो-ग़रीब विजेटों की समस्याओँ, और टिप्पणियों में मालवेयर वाली वेबसाइटों की लिंक आदि की वजह से हाल ही में मुझे भी अपने ब्लॉगों में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और ढूंढ ढूंढ कर ऐसे लिंक हटाने पड़े :(
फिर भी, मैं तो ये कहूंगा कि ब्लॉग ने ही मुझे एक ऐसे मुकाम पर पहुँचाया है जहाँ एक पहचान तो बनी ही है, थोड़ा-बहुत आर्थिक संबल भी मिला है.
ब्लॉगिंग जिंदाबाद !
जी, मैंने तो कुछ मित्रों की नाराज़गी के बावजूद आरम्भ से ही कमेंट मॉडरेशन भी चालू रखा था क्योंकि अंततः हमारे ब्लॉग पर उपस्थित सामग्री की नैतिक ज़िम्मेदारी हमारी ही है।
Deleteआपने सही आंकलन किया है ब्लॉगिंग के अंतकाल का। सुप्त पड़े ब्लॉग्स में एक बार तो जान सी आई है ताऊ के इस अभियान से। शायद अब दोबारा ब्लॉगिंग को उन ऊंचाइयों तक पहुँचाना संभव न हो , लेकिन प्रयास जारी रहना चाहिए। बेशक ब्लॉगिंग से बहुत से लोगों को बहुत से फायदे तो हुए हैं।
ReplyDeleteआपको #हिन्दी ब्लॉगिंग के साथ-साथ चिकित्सक दिवस की भी हार्दिक शुभकामनायें।
Deleteआपने शुरू से इस अवस्था तक पहुंचने का एक सटीक विष्लेषण हिंदी ब्लागिंग की कमियों का किया है. अब तो यही हो सकता है कि हम उन कमियों से सीख लें. जैसा कि आपने भी बताया और मैं भी यही सोचता हूं कि अब भी पुरानी समस्याएं आयेंगी लेकिन गंभीर लोगों को जमे रहना चाहिये.
ReplyDeleteवक्त के साथ अंदाज भी बदल जाये हैं. पर धागों में जो बात है वो सेल्फ़ी में कहां? सेल्फ़ी वक्त बीतने के साथ कहां गुम हो जायेगी पता भी नही चलेगा पर धागे आजीवन साथ निभा सकते हैं.
#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०१६
आपका आदेश सर माथे!
Delete@सूर्यास्त के बाद की रात है। अंधेरी रात का सा सन्नाटा छाया हुआ है......पर सुबह भी तो आएगी
ReplyDeleteअवश्य!
Deleteअन्तर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स डे की शुभकामनायें ..... हिन्दी ब्लॉग दिवस का हैशटैग है #हिन्दी_ब्लॉगिंग .... पोस्ट लिखें या टिपण्णी , टैग अवश्य करें ......
ReplyDeleteAameen ...
ReplyDeleteआशा वादी हैं हम और ऐसी आशा करते हैं बलोगर संसार का वैभव पुनः वापिस आएगा ...
तथास्तु!
Delete.
ReplyDelete.
.
आप तो सत्यानाश के पीछे का सत्य उघाड़ दिये एकदम ही... 😊
...
छीलने के लिये ही तो बदनाम हुए थे, मुँह की लगी पूरी तरह कहाँ छूटती है बिरादर!
Deleteअनुराग जी, मै जो कहना चाहता था वो आपने कह दिया। ब्लाॅगिंग को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया चिट्ठाचर्चा की मठाधीशी ने। जिसे लोगों ने अपने चमचों की बड़ाई एवं अन्य किसी भी ब्लाॅगर की खिल्ली उड़ाने एवं मानमर्दन करने का मंच बना लिया गया था।
ReplyDeleteजहाँ गुरुदेव-गुरुदेव कर चरणचंपी करने वाली नई नस्ल आई वहीं चरण पखरवाने वाले गुरुदेव अपने को किसी अखाड़े के परमहंस मठाधीश से कम नहीं समझते थे।
जगजाहिर है यही गिरोहबाजी ब्लाॅगिंग की अकाल मृत्यु का कारण बनी। अगर व्यर्थ की टांग खिंचाई और मठाधीशी से परे रहते तो ब्लाॅगिंग अभी अपने उत्कर्ष पर रहती।
अब दो दिनों से पुनः हल्ला हो रहा है ब्लाॅगिंग की ओर चलो। हम तो यहीं थे, कहीं नहीं गये और हमारा ब्लाॅग भी अपडेट होते रहा। हाँ ब्लाॅगिंग की ओर चलो का नारा देने वाले ब्लाॅग पर नहीं थे। देखते हैं बासी कढी में कितना उफान आता है। बाकी जो है सो तो हैइए है ..
सच है। आप तो सातत्य से ब्लॉगिंग करते ही रहे। मैं ही इस बीच कुछ इर्रेगुलर रहा हूँ।
Deleteअनुराग जी,
ReplyDeleteक्या सार्थक सटीक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है
आभार !
सटीक विष्लेषण हिंदी ब्लागिंग का
ReplyDeleteआज सुबह से ही बहुत सारे ब्लॉग पढ़े और यही पाया की ब्लॉगिंग का जूनून लौट आया है बहुत बहुत आभार
ब्लॉग जगत जिंदाबाद।
सार्थक लेखन.....अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अनंत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद.. आज पोस्ट लिख टैग करे ब्लॉग को आबाद करने के लिए
ReplyDelete#हिन्दी_ब्लॉगिंग
I agree with u chacha !!
ReplyDeleteKitne aise blogs hain jahan jaane ka dil nahi karta, content kitne bhi achhe kyun na ho..
And mera personal view hai, kisi ke against nahi, Even this hashtag #हिन्दी_ब्लॉगिंग dosent make any sense, underscore avoid karna chaahiye but, jo bhi ho mujhe badi khushi hai ki blogs ek baar is abhiyaan se fir se chaalu hue hain. So happy!
सहमत हूँ #चिट्ठाकारी भी एक अच्छा हैशटैग होता। खैर जो भी काम आये, अच्छा है
Deleteधन्यवाद शास्त्री जी
ReplyDeleteब्लॉगिंग के उदय और अस्त का बहुत सही चित्रण। टंकी आरोहण वाला मामला मेरी एक गलतफ़हमी का नतीजा था जो एक दिनमे सुलझ गया था पर आज भी पुराने ब्लॉगर याद करते हैं; उपहास से ही सही।
ReplyDelete😊😊
सुन्दर लेख के लिए बधाई और शुभकामनाएं।
टंकी आरोहण का संदर्भ आपके लिये नहीं बल्कि हर तीसरे दिन टंकी आरोहण करने वाले प्रोफ़ेशनल नाटककारों के लिये आया था। ऐसे ताम-झाम के लिये फ़ेसबुक बेहतर माध्यम है। 😊😊
Deleteशानदार, सदा की भाँति।
ReplyDeleteदेखते है कितने ब्लॉग नींद से जागते है,
ReplyDeleteअसली पाठक वो है जो नेट से आपको तलाश कर पढते है,
ब्लॉग में अधिकांश ने तू मेरी पीठ खुजा, मैं तेरी खुजाऊँगा वाली रीति ही अपनाई थी।
अब लौटते है और वही मार्ग पकडे रहेंगे तो होगा क्या,
लोगों के पास लिखने को मसाला भी तो हो, जिसे लोग पढने आये, इतना बहुत है
सटीक आकलन किया है,आपने । ब्लॉग पर लिखने के लिए थोड़ी मेहनत तो करनी होती है,दो पैराग्राफ भी बनाने होते हैं ।इसलिए हल्का फुल्का लिखने वाले फेसबुक पर पलायन कर गए ।
ReplyDeleteबहुत उम्मीद तो मुझे नहीं दिखती। गुटबाजी,बिना पढ़े कॉपी पेस्ट कमेन्ट तो एक।दिन में ही खूब दिखे ।में बहुतनियमित तो नहीं पर अपना ब्लॉग अपडेट करती रही हूं,कभी फ़िल्म पर लिखा,कभी लोगों की किताब पर समीक्षाएं पोस्ट की।
ये सच है कि जब पढ़ने वाले हों तो लिखने की गति में तेजी आती है वरना टलता जाता है।
बिलकुल सही आकलन किया और उम्मीद है इस बार ब्लॉगिंग अपनी सही दिशा में चलेगी
ReplyDeleteजय हिंद...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
ReplyDeleteखरा आंकलन। शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteएक तकनीकी पोस्ट. और आपका लेखन तो हमेशा प्रेरणा रहा है हम लोगों के लिये! बस यही आशा है कि किसी आंदोलन या हैश टैग के बिना भी हम इसे जीवित रख सकें!!
ReplyDeleteमुझे तो इतना ज्ञान नहीं है ब्लोगिंग की समस्याओं का लेकिन यह पोस्ट पढ़ कर कम से कम अपने ब्लॉग की टिप्पणियों पर ज़रूर नज़र रखूंगी की कोई आ कर ऐसे ही न चेप जाए .... कुछ तो लगायी हुई हैं पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था ... आभार .
ReplyDeleteबेहद दिलचस्प लेख । आज तो हालात यह है कि ब्लॉग का लिंक दसियों जगह शेयर करने पर भी उतनी टिप्पणियां नहीं बटोर पाता जितनी अकेले फेसबुक से पा लेता है ।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर कोई कोई न कोई अच्छी और ज्ञानवर्धक बात ही मिली.
ReplyDeleteकई सुझावों पर अमल करके सुधार किये जा सकते हैं और ...लेकिन अच्छा लगा फिर ब्लॉग पढ़ने को मिले
ReplyDeleteजो यहाँ लिखने के लिये नहीं, बातचीत और मेल-मिलाप के लिये आये थे, वही पहले सबसे ग़ायब हुए. लिखने पढ़ने वाले चूंकि कम ही होते हैं अलबत्ता वे बने रहे.
ReplyDeleteAap ke Blog Gyan ko Naman...humne to kabhi itna soocha hi nahi...Tussi great ho ji...Sachchi.
ReplyDeletevah bahut accha likha hai
ReplyDeleteजब से ब्लाग पर आना छोडा नज्र मे बहुत फर्क पड ग्या बारी क श्ब्दों की पोस्ट पढी नही जाती1 इस्लिये दिल्छस्पी नही बनती ब्लाग पर्1 कोशिश करती हूं1
ReplyDeleteaise hi kuchh smasyao se tang aakar maine bhi blogging band kar di hai par ab fir se ek nayi urja mili hai isliye umid hai ki ab ye silsila chalta rahega...
ReplyDeleteशानदार विश्लेषण किया है आपने........इसे प्रत्येक ब्लॉगर को पढना चाहिये
ReplyDeleteप्रणाम
सही बात का असर पड़ेगा ज़रूर .
ReplyDeleteबढ़िया। :)
ReplyDeleteBahut acha likha apne...chaliye hum sab Millar Hindi blogging ko uchhaiyon par le jayen.....yahan itne sare Hindi bloggers hain ...so ek dusre ke blog ko promote krne me zarur madad kren....mera blog hai www.alubhujia.com
ReplyDeleteबेहतरीन लेख .... तारीफ-ए-काबिल .... Share करने के लिए धन्यवाद...!! :) :)
ReplyDeleteITB की हिंदी डायरेक्टरी के संकलन के दौरान चिट्ठों को पढ़ते पढ़ते यहां आ पहुंचा. आपकी समीक्षा अच्छी लगी. गूगल प्लस की हिंदी कम्युनिटी में पोस्ट कर रहा हूँ:
ReplyDeletehttps://plus.google.com/u/0/communities/102551673587225360403