चित्र: रीतेश सब्र |
यादों के साथ खेल मधुर खेल रहा हूँ
इतना ही रहा याद के कुछ भूल रहा हूँ
सब कुछ हमेशा याद भला कैसे रहेगा
यह भी नहीं कि बातें सभी भूल रहा हूँ
हर याद के साथ चुभी टीस सी दिल में
अच्छा है के उस हूक को मैं भूल रहा हूँ
आवाज़ तुम्हारी सदा पहचान लूंगा मैं
बोली थीं क्या, मैं इतना ज़रा भूल रहा हूँ
ये कौन हैं, वे कौन, रहे कैसे मुझे याद
मैं रहता कहाँ, कौन हूँ मैं भूल रहा हूँ॥
वाह
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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