हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा प्रकाशित प्रवासी काव्य संग्रह "देशांतर" की प्रथम कविता |
पूनम का चन्दा हो चाहे अमावस
अली की गली या बली का पुरम हो
निराकार हो या सगुण का मरम हो
हो मज़हब रिलीजन, मत या धरम हो
मैं फल की न सोचूँ तो सच्चा करम हो
कोई नाम दे दो कोई रूप कर दो
उठा दो गगन में धरा पे या धर दो
तमिलनाडु, आंध्रा, शोनार बांगला
सिडनी, दोहा, पुणे माझा चांगला
सूरत नी दिकरी, मथुरा का छोरा
मोटा या पतला, काला या गोरा
सारे जहाँ से आयी ये लहरें
ऊँची उठी हैं, पहुँची हैं गहरे
खुदा की खुमारी, मदमस्त मस्ती
हरि हैं हृदय में, यही मेरी हस्ती