इस्पात नगरी के धरातल के नीचे छिपकर बहने वाली ऐक्विफर नदी और सतह के ऊपर की त्रिवेणी की चर्चा मैंने इस शृंखला के चौथे खंड में की थी. चार नदियों वाले इस नगर में पानी की बहुतायत है. जैसे कि हम सब जानते हैं, जल के एक अणु में हाइड्रोजन के दो और ऑक्सिजन का एक अणु होता है. एक जलने वाला और दूसरा जलाने वाला, कोई आश्चर्य नहीं कि शायरों ने पानी और आग पर काफी समय लगाया है. पिट्सबर्ग सचमुच में आग और पानी का अनोखा संगम है. यहाँ की नदियों में जितना पानी और बर्फ है, यहाँ की पहाडियों में उतना ही कोयला है. इसीलिये शुरूआत से ही यहाँ खनन एक बहुत बड़ा व्यवसाय है. पिट्सबर्ग को इस्पात नगरी का दर्जा दिलाने में कोयले और पानी की बहुतायत का बहुत बड़ा योगदान रहा है. नदियाँ खनिजों के परिवहन का काम करती थी. और उनके किनारे खनन, परिवहन और भट्टियाँ बनीं.
[पुरानी इस्पात मीलों के उपकरण आजकल माउंट वॉशिंगटन की तलहटी में नदी के किनारे प्रदर्शन के लिए रख दिए गए हैं.]
[तीस-चालीस साल पहले तक माउंट वॉशिंगटन का यह हरा-भरा रमणीक पर्वत सिर्फ़ कोयले का एक बदसूरत और दानवाकार पहाड़ सा था.]
पुराने पिट्सबर्ग के बारे में एक प्रसिद्ध गीत है "पिट्सबर्ग एक पुराना और धुएँ से भरा नगर है..." एक ज़माने में सारा शहर कोयले के धुएँ से इस तरह ढंका रहता था कि नगर की एक ऊंची इमारत पर एक बड़ा सा टॉवर लाल बत्तियों की दूर से दिखने वाली रोशनी में जल-बुझकर मोर्स कोड में "पिट्सबर्ग" कहता रहता था. कारखाने चीन चले जाने के बाद प्रदूषण तो अब नहीं रहा है मगर वह टावर आज भी उसी तरह जल-बुझकर "पिट्सबर्ग" कहता है. बलुआ पत्थरों से बनीं शानदार इमारतें भट्टियों से दिनरात निकलने वाले धुएँ से ऐसी काली हो गयी थीं कि वही उनका असली रंग लगता था. आजकल एक-एक करके बहुत सी इमारतों को सैंड-ब्लास्टिंग कर के फिर से उनके मूल रूप में लाया जा रहा है. .
[क्लिंटन भट्टी पिट्सबर्ग ही नहीं बल्कि विश्व की सबसे पहली बड़ी भट्टी है.]
[क्लिंटन भट्टी सन १९२७ में सेवानिवृत्त हो गयी.]
[पुराने दिनों की यादें आज भी रुचिकर हैं.]
[पेन्सिल्वेनिया का कोयला उद्योग सन १७६० में माउंट वॉशिंगटन से ही शुरू हुआ था. ज्ञातव्य है कि १७५७ में अँगरेज़ हमारी धरती पर प्लासी की लड़ाई लड़ रहे थे.]
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इस्पात नगरी से - अन्य कड़ियाँ
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[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा. हरेक चित्र पर क्लिक करके उसका बड़ा रूप देखा जा सकता है.]