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कैसा होता है प्यार? जीत के सब बस हार |
सीमा तुम जकड़े थीं मुझको
अपनी कोमल बाँहों में
भूल के सुधबुध खोया था मैं
सपनीली राहों में
छल कैसा सच्चा सा था वह
जाने कैसे उबर सका
सत्य अनावृत देखा मैंने
अब तक था जो दबा ढंका
सीमा में सिमटा मैं अब तक
था कितना संकीर्ण हुआ
अज्ञ रहा जब तक असीम ने