Tuesday, October 7, 2008
अमरीकी आर्थिक मंदी और भारतीय पञ्चबलि
अमेरिका आर्थिक मंदी के एक कठिन दौर से गुज़र रहा है। इस मंदी का असर दुनिया भर के बाज़ारों पर भी पड़ रहा है। बाज़ार की ख़बर रखने वाले ताऊ रामपुरिया ने अपनी पोस्ट गुड गुड गोते खाती अर्थ-व्यवस्था में इस विषय के कालक्रम की विस्तार से चर्चा की थी. आर्थिक पहलू तो हैं ही, इस समस्या के अपने मानवीय पहलू भी हैं। आर्थिक तंगी का असर मानवीय संबंधो पर भी पड़ रहा है। कुछ सामाजिक पहलूओं का सन्दर्भ मेरी पिछली पोस्ट एक शाम बेटी के नाम में आया था। आम तौर पर अमेरिकी साहसी होते हैं और कठिनाइयों का सामना बड़ी दिलेरी से करते हैं। मगर जब मंदी लंबे समय तक रह जाए तो समीकरण बदलने लगते हैं। लोगों की नौकरियां छूट रही हैं, घरों से हाथ धोना पड़ रहा है, कुछ परिवार टूट भी रहे हैं।
मगर आज की ख़बर बहुत दर्दनाक है। लॉस एंजेलेस में रहने वाले और हाल ही में बेरोजगार हुए भारतीय मूल के ४५ वर्षीय कार्तिक राजाराम ने संभवतः आर्थिक कारणों से गोली मारकर आत्महत्या कर ली। यह ख़बर इसलिए और महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि सैन फ़्रांसिस्को वैली के पोर्टर रैंच में रहने वाले राजाराम ने मरने से पहले गोली मारकर अपने साथ रहने वाले पाँच परिजनों की भी हत्या कर दी। राजाराम ने नयी ख़रीदी बन्दूक से अपने तीन बेटों, पत्नी और सास को मौत के मुँह में धकेल दिया। एक आत्महत्या पत्र में राजाराम ने लिखा है कि उसके लिए पूरे परिवार सहित मरना अधिक सम्मानजनक है।
अपने घर में बैठकर शायद मैं किसी दूसरे व्यक्ति की कठिनाईयों को पूरी तरह से नहीं समझ सकता हूँ मगर फिर भी मेरे दिल में बार-बार यह सवाल उठ रहा है कि "क्यों?" आख़िर क्यों हम हार जाते हैं समाज के बनाए हुए समीकरणों से? हत्या और आत्महत्या में हम सम्मान कैसे ढूंढ सकते हैं? ज़िंदगी क्या इतनी सस्ती है कि पैसे के आने-जाने से उसका मोल लगाया जा सके? और फिर ख़ुद मरना एक बात है और अपने आप को पाँच अन्य लोगों के जीवन का निर्णायक समझ लेना?
उन लोगों की परिस्थिति को जाने बिना मैं सिर्फ़ इतना ही कह सकता हूँ कि ईश्वर मृतकों की आत्मा को शान्ति दे और कठिनाई से गुज़र रहे दूसरे लोगों को सामना करने का साहस दे और सही रास्ता दिखाए।
Thursday, October 2, 2008
सबसे तेज़ मिर्च - भूत जोलोकिया
नागा जोलोकिया |
यहाँ आने के बाद जब भी मिर्च की बात होती थी स्थानीय लोग सबसे तेज़ मिर्च की बात करते थे। जिससे भी बात हुई उसने ही रेड सैविना हेबानेरो का नाम लिया। एकाध दफा मेरे दिमाग में आया कि सबसे तेज़ मिर्च तो शायद भारत में ही होती होगी. मगर कोई सबूत तो था नहीं सिर्फ़ मन की भावना थी और भावना का तो कोई मूल्य नहीं होता है। और फ़िर यहाँ के लोग तो हर काम पड़ताल कर परख कर और फ़िर नाप-जोख कर करते हैं। उन्होंने बाकायदा मिर्च की तेज़ी को भी परिभाषित किया हुआ है। और इस तेज़ी की इकाई है स्कौविल पैमाना। रेड सैविना हेबानेरो ३५०,००० से ५८०,००० स्कौविल तक की होती है।
सबसे तीखी |
काफी समय तक तो हेबानेरो उगाने वाले लोगों ने भारतीय दावे को विभिन्न बेतुके बहानों से झुठलाने की कोशिश की। एक बहाना यह भी था कि एक ही मिर्च के इतने सारे नाम होना भर ही उसके काल्पनिक होने का सबूत है। मगर जब न्यू-मेक्सिको विश्वविद्यालय में स्थित चिली-पेपर संस्थान ने भारतीय वैज्ञानिकों के सहयोग से इस मिर्च के बीज मंगवाकर संस्थान में उगाकर उसकी जांच की तो इस दावे को सत्य पाया। भूत मिर्च की स्कौविल इकाई ८५५,००० से १,०५०,००० पायी गयी। भूत जोलोकिया के गुणों से प्रभावित होकर रक्षा अनुसन्धान संस्थान उसकी सहायता से टीयर गैस का सुरक्षित विकल्प खोजने में लगा है।
विश्व की सबसे तेज़ मिर्चें |
चलिए आप लोग पढिये तब तक मैं आपके लिए चाय के साथ मिर्च की पकौडी बनाता हूँ।
==============
सम्बंधित कड़ियाँ
==============
The Hottest chile in the World - Bhoot Jolokia
Sunday, September 28, 2008
एक शाम बेटी के नाम
शाम का धुंधलका छा रहा था। हम लोग डैक पर बैठकर खाना खा रहे थे। बेटी अपने स्कूल के किस्से सुना रही थी। वह इन किस्सों को डी एंड डी टाक्स (डैड एंड डाटर टाक्स = पिता-पुत्री वार्ता) कहती है। आजकल हमारी पिता-पुत्री वार्ता पहले से काफी कम होती है। पिछले साल तक मैं सुबह दफ्तर जाने से पहले उसे कार से स्कूल छोड़ता था और लंच में जाकर उसे स्कूल से ले आता था। तब हमारी वार्ता खूब होती थी। वह अपने किस्से सुनाती थी और मेरे किस्से सुनने का आग्रह करती थी। यही वह समय होता था जब मुझे उसकी नयी कवितायें सुनने को मिलती थीं। उसने अपनी अंग्रेजी कहानी "मेरे जीवन का एक दिन" भी ऐसी ही एक वार्ता के दौरान सुनाई थी। जब से मेरा दफ्तर दूर चला गया है मैं रोज़ सुबह बस लेकर ऑफिस जाता हूँ। वह भी बस से स्कूल जाती है। हमारी वार्ता की आवृत्ति काफी कम हो गयी है। या कहें कि पहले रोज़ सुबह शाम होने वाली वार्ता सिर्फ़ सप्ताहांत की शामों तक ही सीमित रह गयी है।
उसने अपने क्लास के एक लड़के के बारे में बताया जो सब बच्चों के पेन-पेन्सिल आदि ले लेता है। जब उसने बताया कि एक दिन उस लड़के ने बेटी का कैलकुलेटर भी ले लिया तो मैंने पूछा, "बेटा, कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके पास यह सब ज़रूरी समान खरीदने के लिए पैसे न हों?" बेटी ने नकारते हुए कहा कि उस लड़के के कपड़े तो बेशकीमती होते हैं।
आजकल अमेरिका की आर्थिक स्थिति काफी डावांडोल है। बैंक डूब रहे हैं, नौकरियाँ छूट रही हैं। भोजन, आवागमन, बिजली, गैस आदि सभी की कीमतें बढ़ती जा रही हैं. अक्सर ऐसी खबरें पढने में आती हैं जब इस बुरी आर्थिक स्थिति के कारण लोग बेकार या बेघर हो गए। कल तक मर्सिडीज़ चलाने वाले आज पेट्रोल-पम्प पर काम करते हुए भी नज़र आ सकते हैं। बच्ची तो बाहर की दुनिया की सच्चाई से बेखबर है। मेरे दिमाग में आया कि उस लड़के का परिवार कहीं ऐसी किसी स्थिति से न गुज़र रहा हो। मैंने बेटी को समझाने की कोशिश की और बात पूरी होने से पहले ही पाया कि वह कुछ असहज थी। मैंने पूछना चाहा, "आप ठीक तो हो बेटा?" मगर उसने पहले ही रूआंसी आवाज़ में पूछा, "आप ठीक तो हैं न पापा?"
"हाँ बेटा! मुझे क्या हुआ?" मैंने आश्चर्य से पूछा।
"मेरा मतलब है... आपका जॉब..." उसने किसी तरह से अटकते हुए कहा। बात पूरी करने से पहले ही उसकी आंखों से आंसू टप-टप बहने लगे। मैंने उसे गले से लगा लिया। उसकी मनोदशा जानकर मुझे बहुत दुःख हुआ। मैंने समझाने की भरपूर कोशिश की और कहा कि अगर मेरे साथ कभी ऐसा होता तो मैं उसे अपनी बेटी से, अपने परिवार से कभी छुपाता नहीं। मेरे इस वाक्य से उसकी भोली मुस्कान वापस आ गयी। यह जानकर खुशी हुई कि उसे अभी भी अपने पिता के सच बोलने पर पूरा भरोसा है।
उसने अपने क्लास के एक लड़के के बारे में बताया जो सब बच्चों के पेन-पेन्सिल आदि ले लेता है। जब उसने बताया कि एक दिन उस लड़के ने बेटी का कैलकुलेटर भी ले लिया तो मैंने पूछा, "बेटा, कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके पास यह सब ज़रूरी समान खरीदने के लिए पैसे न हों?" बेटी ने नकारते हुए कहा कि उस लड़के के कपड़े तो बेशकीमती होते हैं।
आजकल अमेरिका की आर्थिक स्थिति काफी डावांडोल है। बैंक डूब रहे हैं, नौकरियाँ छूट रही हैं। भोजन, आवागमन, बिजली, गैस आदि सभी की कीमतें बढ़ती जा रही हैं. अक्सर ऐसी खबरें पढने में आती हैं जब इस बुरी आर्थिक स्थिति के कारण लोग बेकार या बेघर हो गए। कल तक मर्सिडीज़ चलाने वाले आज पेट्रोल-पम्प पर काम करते हुए भी नज़र आ सकते हैं। बच्ची तो बाहर की दुनिया की सच्चाई से बेखबर है। मेरे दिमाग में आया कि उस लड़के का परिवार कहीं ऐसी किसी स्थिति से न गुज़र रहा हो। मैंने बेटी को समझाने की कोशिश की और बात पूरी होने से पहले ही पाया कि वह कुछ असहज थी। मैंने पूछना चाहा, "आप ठीक तो हो बेटा?" मगर उसने पहले ही रूआंसी आवाज़ में पूछा, "आप ठीक तो हैं न पापा?"
"हाँ बेटा! मुझे क्या हुआ?" मैंने आश्चर्य से पूछा।
"मेरा मतलब है... आपका जॉब..." उसने किसी तरह से अटकते हुए कहा। बात पूरी करने से पहले ही उसकी आंखों से आंसू टप-टप बहने लगे। मैंने उसे गले से लगा लिया। उसकी मनोदशा जानकर मुझे बहुत दुःख हुआ। मैंने समझाने की भरपूर कोशिश की और कहा कि अगर मेरे साथ कभी ऐसा होता तो मैं उसे अपनी बेटी से, अपने परिवार से कभी छुपाता नहीं। मेरे इस वाक्य से उसकी भोली मुस्कान वापस आ गयी। यह जानकर खुशी हुई कि उसे अभी भी अपने पिता के सच बोलने पर पूरा भरोसा है।
Subscribe to:
Posts (Atom)