Saturday, July 18, 2009

कच्ची धूप, भोला बछड़ा और सयाने कौव्वे

लगभग दो दशक पहले दूरदर्शन पर एक धारावाहिक आता था, "कच्ची धूप।" उसकी एक पात्र को मुहावरे समझ नहीं आते थे। एक दृश्य में वह बच्ची आर्श्चय से पूछती है, "कौन बनाता है यह गंदे-गंदे मुहावरे?" वह बच्ची उस धारावाहिक के निर्देशक अमोल पालेकर और लेखिका चित्रा पालेकर की बेटी "श्यामली पालेकर" थी। "कच्ची धूप" के बाद उसे कहीं देखा हो ऐसा याद नहीं पड़ता। मुहावरे तो मुझे भी ज़्यादा समझ नहीं आए मगर इतना ज़रूर था कि बचपन में सुने हर नॉन-वेज मुहावरे की टक्कर में एक अहिंसक मुहावरा भी आसपास ही उपस्थित था।

जब लोग "कबाब में हड्डी" कहते थे तो हम उसे "दाल भात में मूसलचंद" सुनते थे। जब कहीं पढने में आता था कि "घर की मुर्गी दाल बराबर" तो बरबस ही "घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध" की याद आ जाती थी। इसी तरह "एक तीर से दो शिकार" करने के बजाय हम अहिंसक लोग "एक पंथ दो काज" कर लेते थे। इसी तरह स्कूल के दिनों में किसी को कहते सुना, "सयाना कव्वा *** खाता है।" हमेशा की तरह यह गोल-मोल कथन भी पहली बार में समझ नहीं आया। बाद में इसका अर्थ कुछ ऐसा लगा जैसे कि अपने को होशियार समझने वाले अंततः धोखा ही खाते हैं। कई वर्षों बाद किसी अन्य सन्दर्भ में एक और मुहावरा सुना जो इसका पूरक जैसा लगा। वह था, "भोला बछड़ा हमेशा दूध पीता है।

खैर, इन मुहावरों के मूल में जो भी हो, कच्ची-धूप की उस छोटी बच्ची का सवाल मुझे आज भी याद आता है और तब में अपने आप से पूछता हूँ, "क्या आज भी नए मुहावरे जन्म ले रहे हैं?" आपको क्या लगता है?

Sunday, July 12, 2009

भारत पर चीन का दूसरा हमला?

जी हाँ! चौंकिए मत। वही कम्युनिस्ट चीन जिसने 1962 में पंचशील के नारे के पीछे छिपकर हमारी पीठ में छुरा भोंका था, जो आज भी हमारी हजारों एकड़ ज़मीन पर सेंध मारे बैठा है। तिब्बत और अक्साई-चिन को हज़म करके डकार भी न लेने वाला वही साम्यवादी चीन आज फ़िर अपनी भूखी, बेरोजगार और निरंतर दमन से असंतुष्ट जनता का ध्यान आतंरिक उलझनों से हटाने के लिए कभी भी भारत पर एक और हमला कर सकता है। वीगर मुसलमानों, तिब्बती बौद्धों, फालुन गॉङ्ग एवं अन्य धार्मिक समुदायों का दमन तो दुनिया देख ही रही है, लेकिन इन सब के अलावा वैश्विक मंदी ने सस्ते चीनी निर्यात को बड़ा झटका दिया है। इससे चीन में अभूतपूर्व आंतरिक सामाजिक अशांति पैदा हो रही हैं। निश्चित है कि अपनी ही जनता की पीठ में छुरा भोंकने वाले चीनी तानाशाह चीनी समाज पर कम्युनिस्टों की ढीली होती पकड़ को फिर पक्का करने के लिए भारत को कभी भी दगा देने को तय्यार बैठे हैं।

प्रतिष्ठित रक्षा जर्नल ‘इंडियन डिफेंस रिव्यू’ के नवीनतम अंक के संपादकीय में प्रसिद्व रक्षा विशेषज्ञ भारत वर्मा ने कहा है कि चीन सन 2012 तक भारत पर हमला करेगा। भारत वर्मा की बात से कुछ लोग असहमत हो सकते हैं मगर मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि चीन जैसा गैर-जिम्मेदार देश किसी भी हद तक जा सकता है। एक महाशक्ति बनने का सपना लेकर चीन ने हमेशा ही विभिन्न तानाशाहियों और छोटे-बड़े आतंकवादी समूहों को सैनिक या नैतिक समर्थन दिया है। 9-11 तक तालेबान को खुलेआम हथियार बेचने वाले चीन के उत्तर-कोरिया, बर्मा और पाकिस्तान के सैनिक तानाशाहों से और नेपाल के माओवादियों से रिश्ते किसी से भी छिपे नहीं हैं। परंतु आज चीन की सरपरस्ती वाले यह सारे ही मिलिशिया और संगठन बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में धीरे-धीरे महत्वहीन होते जा रहे हैं।

मैं सोचता हूँ कि यदि चीन अब ऐसी बेवकूफी करता है तो इसका नतीजा चीन के लिए निर्णयकारी सिद्ध हो सकता है। यह चीनी आक्रमण यदि हुआ तो शायद 1962 की तरह ही सीमित युद्ध होगा। इस युद्ध के लंबा खिंचने की आशंका न्यून और इस में नाभिकीय हथियारों के उपयोग की संभावना नगण्य है। युद्ध किसी भी पक्ष के लिए शुद्ध लाभकारी घटना नहीं होती है मगर इस बेवकूफी से चीन का विखंडन भी हो सकता है। मैंने अपनी बात कह दी मगर साथ ही मैं इस विषय पर आप लोगों के विचार जानने को उत्सुक हूँ। कृपया बताएँ ज़रूर, धन्यवाद!
सम्बन्धित कड़ियाँ - अपडेट
* भारत-चीन में हो सकती है लड़ाई!
* राजकाज - भारत पर चीन का हमला

Saturday, July 11, 2009

तीन बच्चे राजधानी में

अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डी सी में हर साल रंग भरने वाले चेरी ब्लोसोम जापान की और से अमेरिका को एक सुंदर उपहार हैं। इस साल जब पिट्सबर्ग के तीन बच्चों ने लावण्या जी के ब्लॉग पर चेरी ब्लोसोम के बारे में पढा तो उन्होंने वहाँ जाने विचार बनाया। ज़ाहिर है, बच्चों के साथ उनके माता-पिता भी गए और उन्होंने भी डी सी की इस यात्रा का पूरा आनंद उठाया। यात्रा की विस्तृत जानकारी किसी अगली पोस्ट में देने का प्रयास करूंगा, तब तक के लिए इन तीन बच्चों के चित्र प्रस्तुत हैं "I love DC" टी-शर्ट्स में


चेरी ब्लॉसम का एक वृक्ष


ट्यूलिप की क्यारी के सामने


इन भद्र महिलाओं ने अपने चित्र खिंचाने के लिए बच्चों को धकियाया था।


सफ़ेद घर के सामने [Outside White House]


गरमी में आइसक्रीम का आनंद