(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)
कचरा ढोते रहे
दुखित रोते रहे
ढेर में कबाड़ के
खुदको खोते रहे
तेल जलता रहा
लौ पर न जली
था अंधेरा घना
जुगनू सोते रहे
मूल तेरा भी था
सूद मेरा भी था
कर्ज़ दोनों का
अकेले ढोते रहे
शाम जाती रही
दिन बदलते रहे
बौर की चाह में
खत्म होते रहे।
यादों का कबाड़ |
कचरा ढोते रहे
दुखित रोते रहे
ढेर में कबाड़ के
खुदको खोते रहे
तेल जलता रहा
लौ पर न जली
था अंधेरा घना
जुगनू सोते रहे
मूल तेरा भी था
सूद मेरा भी था
कर्ज़ दोनों का
अकेले ढोते रहे
शाम जाती रही
दिन बदलते रहे
बौर की चाह में
खत्म होते रहे।