नौ नवम्बर १९८९ - आज से बीस साल पहले घटी इस घटना ने साम्यवाद, कम्युनिज्म, मर्क्सिज्म और तानाशाही आदि टूटे वादों की कब्र में आखिरी कील सी ठोक दी थी. जब जर्मनी के नागरिकों ने साम्यवाद के दमन की प्रतीक बर्लिन की दीवार को तोड़कर साम्यवादियों के चंगुल को पूर्णतया नकार दिया था तब से आज तक की दुनिया बहुत बदल चुकी है. ऐसा नहीं कि बर्लिन की दीवार टूटने से सारी दुनिया में बन्दूक्वाद और तानाशाही का सफाया हो गया हो. ऐसा भी नहीं है कि इससे दुनिया की गरीबी या बीमारी जैसी समस्यायें समाप्त हो गयी हों. क्यूबा के नागरिक आज भी कम्युनिस्ट प्रशासन में भयंकर गरीबी में जीने को अभिशप्त हैं. तिब्बत के बौद्ध हों, चीन के वीघर((Uyghur: ئۇيغۇر) मुसलमान हों या पाकिस्तानी सिख, इंसानियत का एक बहुत बड़ा भाग आज भी अत्याचारी तानाशाहों के खूनी पंजों तले कुचला जा रहा है .
बर्लिन दीवार का पतन
जजिया और दमन के शिकार पाकिस्तान के सिख
माओवादियों के सताए वीघर मुसलमान
बर्लिन दीवार का पतन
जजिया और दमन के शिकार पाकिस्तान के सिख
माओवादियों के सताए वीघर मुसलमान
चाहे सारी समस्याएं न मिटी हों, पर एक अव्यावहारिक और अपरिपक्व राजनीतिक विचार के जल्दबाज क्रियान्वयन के दुष्परिणामों को ज्यादा देर तक झेलने की मजबूरी को तो लतिया दिया उन्होंने।
ReplyDeleteशुक्रिया
आमीन !
ReplyDeleteहर ओर यही जुल्मों सितम जारी है।
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और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
एक जनक्रांति की है जरूरत इस भू भाग में भी
ReplyDeleteऐसे ही गार्बचोव ने एक क्रान्ति की थी...
ReplyDeleteडॉ साहब, सच तो यह है कि दुबकी-सहमी कम्युनिस्ट प्रजा को बंदूकों के साए से बाहर लाने का काम गोर्बाचोफ ने ही किया. उन कायरों के बीच वही एक शख्स था जो तानाशाही विचारों के खिलाफ सीना तान कर खडा हो सका. उस एक व्यक्ति ने दुनिया को फिर से यह दिखा दिया कि अकेला चना कई भाड़ फोड़ सकता है.
ReplyDeletekranti sirf kranti hi sab samsyayo ka upaay hae . kraanti raktheen bhi hoti hae
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हैं जी।
ReplyDelete्बहुत सुंदर लिखा आप ने
ReplyDeleteUyghur: ئۇيغۇر मुसलमान समस्या पर जानने की उत्सुकता है। मैं यह जानना चाहता हूँ कि कट्टर साम्यवादी (केवल जनता पर नियंत्रण के मामले में) व्यवस्था से दूसरा कट्टर मत कैसे टकराया या टकराता है। मानवीय समस्याएँ पीछे छूट जाती हैं या राजनीति पीछे रहती है? पाकिस्तान का क्या स्टैण्ड है?
ReplyDeleteमानव अस्मिता पर बँधी जंजीरें टूटनी चाहिए चाहे जैसे हो। उस ऐतिहासिक घटना की याद दिलाने के लिए धन्यवाद।
सच है जी , एक दीवार टूटने से क्या होता है ।, आपके लेख से तअल्लुक तो नही रखता मगर मुझे दीवार शब्द से एक बहुत पुराना शेर जरूर याद आगया है ""बीबी से शौहर,शौहर से बीबी है बदगुमां ,है बाप का बना हुआ बेटा उदूंजां /हिन्दोस्तां के घर हुए खाली सुकून से, हैं दीवारें रंगी हुई पडोसी के खून से ""
ReplyDeleteअपार खुशी हुई थी उस दिन। और एक चमत्कार सरीखा लग रहा था।
ReplyDeleteAapke is ati gambheer aalekh ko kai baar padh apar ispar tippani karne ko shabd na dhoondh paayi...
ReplyDeleteVastutah sabhi deevaren manushy ki hi banai hui hain aur wahi jab chahega ise dhaah sakta hai...aawashykta bas chahne bhar ki hai...jitnee badi deewar utna hi bada saamarthy aur samooh bhi chahiye use dhwast karne ko...
इतिहास हमें याद दिलाता है की हमारी उपलब्धि और हमारी हार सब कुछ की याद दिलाता है ताकि हमारे बीच में फिर से कोई क्रांति हो और हमे एक नया जीने का रास्ता मिले पुराने ढर्रे को छोड़कर हम नये तरीके से जिए..
ReplyDeleteआभार
एक अच्छे प्रयास को दिशा रहे हैं आप. धन्यवाद !!
ReplyDeleteदमदार लेख के लिए बधाई। चाहे दमनकारी साम्यवाद हो अथवा अन्य कोई हिंसक राजवंश अथवा धर्म, इनकी आयु छोटी ही है।
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