(अनुराग शर्मा)
नज़र अपनी-अपनी ख्याल अपना अपना
हकीकत वही है ख्वाब अपना अपना
अगर दिल की मंज़िल के संकरे हैं रस्ते
मुहब्बत है पक्की हिसाब अपना अपना
गिरा के दीवारें जलाया मकाँ जो
मुड़ मुड़ के देखा लगा अपना अपना
सुर्खी हिना की महावर की लाली
लहू से निखारें शबाब अपना अपना
जीवन है नश्वर टिकेगा ये कब तक
सवाल इक वही है जवाब अपना अपना
भैया, आप तो पूरे दार्शनिक हो गए हैं !
ReplyDeleteइतनी रवानी के साथ फरमाया है! गुनगुनाए जा रहे हैं।
@ मुहब्बत है पक्की हिसाब अपना अपना
बहुत गहरी बात कह दी आप ने !
nice
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता या कहे हकीकत
ReplyDeleteप्रिय अनुराग,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना । आपने बहुत सारा काम किया है उसे पढ रहा हूँ, सुन रहा हूँ और प्रसन्न हो रहा हूँ । मुझे राम कथा में एम्पी3 आडियो ब्लाग पर पोस्ट करने में दिक्कत हो रही है । उसका हल खोजने की कोशिश कर रहा हूँ । बार बार विंडो मूवी मेकर के माध्यम से आना तो तकलीफ़ देह है । संभव हो तो मार्गदर्शन दें । आभारी रहूँगा ।
सुर्खी हिना की महावर की लाली
ReplyDeleteलहू से निखारें शबाब अपना अपना
जीवन है नश्वर टिकेगा ये कब तक
सवाल इक वही है जवाब अपना अपना
BAHUT GAHRA DARSHAN CHIPA HAI IN JEEVANT SHERON MEIN .... LAJAWAAB GAZAL HAI ...
अनुराग जी
ReplyDeleteसादर वन्दे!
बहुत ही सुन्दर व दर्शन से भरी है ये रचना, कवि की सार्थकता इसी में होती है कि वह कहता कम शब्दों में है किन्तु उसके अर्थ हजार होते हैं.
रत्नेश त्रिपाठी
जीवन है नश्वर टिकेगा ये कब तक
ReplyDeleteसवाल इक वही है जवाब अपना अपना...........
बहुत सुंदर .
बहुत जबरदस्त, अनुराग भाई..वाह!
ReplyDeleteवाह .. बढिया है !!
ReplyDeleteसवाल वही है जवाब अपना अपना ! वाह !
ReplyDeleteगिरा के दीवारें जलाया मकान जो
ReplyDeleteमुड़ के जो देखा लगा अपना अपना
बहुत ही सुंदर रचना
सहज सरल शब्दों में गेयता और सशक्त अभिव्यक्ति की कविता -एकम सद विप्राः बहुधा वदन्ति की भी याद आ गयी न जाने क्यूं !
ReplyDeleteसवाल एक वही ...जवाब अपना अपना ...
ReplyDeleteदार्शनिक खयाल...!!
जीवन है नश्वर टिकेगा ये कब तक
ReplyDeleteसवाल इक वही है जवाब अपना अपना
बेहद सार्थक अभिव्यक्ति ...सुन्दर
regards
जीवन है नश्वर टिकेगा ये कब तक
ReplyDeleteसवाल इक वही है जवाब अपना अपना
अति सुन्दर !
सुर्खी हिना की महावर की लाली
ReplyDeleteलहू से निखारें शबाब अपना अपना
वाह, लाजवाब अभिव्यक्ति.
रामराम.
रात टिप्पणी पोस्ट नहीं सकी. छोटे छोटे वाक्यों में सुन्दर रचना.
ReplyDeleteAnuraag ji,
ReplyDeletepakki baat kahi hai sahi hisaab se...
sawaal poochne lage baat ab jawab se..
bahut khoob..!!
gaane ko dil kar raha hai..
अदा जी,
ReplyDeleteहम धन्य भये. शौक से गाइए. संगीत के साथ गाईये और रेकॉर्डिंग की एक कॉपी हमें भी भेजिए.
धन्यवाद!
गिरा के दीवारें जलाया मकाँ जो
ReplyDeleteमुड़ के जो देखा लगा अपना अपना
बड़े सहज शब्दों में जीवन का गूढ़ अर्थ बता दिया ग़ज़ल ने...सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर शब्द
ReplyDeleteमैंने इसे बहुत पहले ही पढ़ लिया था फिर कई और बार पढ़ा, कुछ लिखा कुछ मिटाया कि क्या कहूँ आपके इन शब्दों पर... वैसे कहने को इसके सिवा कुछ नहीं है कि पसंद में शामिल है ऐसी रचनाएँ. आप साहित्य के सच्चे साधक हैं.
केवल दर्शन ही नहीं, साहित्य और अध्यात्म भी घुल मिल गये हैं इस रचना में बखूबी !
ReplyDeleteसुन्दर प्रविष्टि ! आभार ।
Sateek !
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