|
टोक्यो टॉवर की छत्रछया में |
1958 में बना टोक्यो टॉवर विश्वप्रसिद्ध आयफ़ैल टॉवर से न केवल अधिक ऊंचा है बल्कि इसमें काम आने वाले कुल इस्पात का भार (4000 टन) आयफ़ैल टॉवर के भार (7000+) से कहीं कम है। कोरियन युद्ध में मार खाये अमेरिकी टैंकों के कबाड़ से पुनर्प्राप्त किये इस्पात से बने इस स्तम्भ की नींव जून 1957 में रखी गयी थी। 14 अक्टूबर 1958 में यह विश्व का सबसे ऊँचा स्तम्भ बन गया। उसके बाद संसार में कई बड़ी-इमारतें अस्तित्व में आईं परंतु यह स्तम्भ आज भी विश्व के सबसे ऊँचे स्वतंत्र स्तम्भ के रूप में गौरवांवित है।
|
रात्रि में टोक्यो टॉवर का सौन्दर्य |
इस स्तम्भ का मुख्य उपयोग रेडिओ और टी वी के प्रसारण के लिये होता है। परंतु साथ ही टोक्यो के मिनातो-कू के प्रसिद्ध ज़ोजोजी मन्दिर परिसर के निकट स्थित यह स्तम्भ एक बड़ा पर्यटक आकर्षण भी है। इसकी स्थापना से आज तक लगभग 15 करोड़ पर्यटक यहाँ आ चुके हैं।
टोक्यो टॉवर के आधार पर एक चार मंज़िला भवन है जिसमें संग्रहालय, अल्पाहार स्थल, बाल-झूले और जापान यात्रा के स्मृतिचिन्ह बेचने वाली अनेकों दुकानें हैं। पर्यटक एक लिफ्ट के द्वारा स्तम्भ के ऊपर बनी दोमंज़िला दर्शनी-ड्योढी तक पहुँचते हैं जहाँ से टोक्यो नगर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यदि आपकी किस्मत से आकाश साफ है तो फिर आप फूजी शिखर का दर्शन टोक्यो से ही कर सकते हैं। इस दर्शक दीर्घा के फर्श में दो जगह शीशे के ब्लॉक लगे हैं ताकि आप अपने पांव के डेढ़ सौ मीटर तले ज़मीन खिसकती हुई देख कर अपने रोंगटे खडे कर सकें। वैसे यहाँ से एक और टिकट लेकर एक और ऊंची ड्योढी तक जाया जा सकता है। हालांकि हम जैसे कमज़ोर दिल वालों के लिये यहाँ से "ऊपर जाने" की कोई आवश्यकता नज़र नहीं आयी।
|
टोक्यो टॉवर |
जापान के हर कोने और गली कूचे की तरह इस टॉवर के ऊपर बनी दर्शक ड्योढी में भी एक छोटा सा सुन्दर मन्दिर बना हुआ है। यदि यह विश्व के सबसे ऊंचे मन्दिरों में से एक हो तो कोई आश्चर्य नहीं। क्रिसमस के मद्देनज़र स्तम्भ की तलहटी में आजकल वहाँ एक क्रिसमस-पल्लव भी लगाया जा रहा है।
सलीका और सौन्दर्यबोध जापानियों के रक्त में रचा बसा है। इसीलिये इस्पात का यह विशाल खम्भा भी 28000 लिटर लाल और श्वेत रंग में रंगकर उन्होने इसकी सुन्दरता को कई गुणा बढा दिया है।
|
टोक्यो टॉवर की दर्शन ड्योढी का लघु मन्दिर् |
[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Tokyo Tower Photos: Anurag Sharma]
बेहद रोचक है इस टावर की कहानी..... जानकारी के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteअनुराग जी बिल्कुल नवीन जानकारी। बडी अच्छी लगी। आभार।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी आपने इस टॉवर के बारे में...........आभार
ReplyDelete.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी आप तो धीरे धीरे पुरे जापान कि सैर करवा रहे है ....:)
ReplyDeleteसुन्दर व रोचक पोस्ट, इसका तो नाम भी नहीं सुना था।
ReplyDeleteआकर्षक चित्रों के साथ बढ़िया जानकारी!
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया लेख.
ReplyDeleteकितना अच्छा किया टैन्को को गला कर ईस्पात से यह टावर बना . जानकारी के लिये शुक्रिया
ReplyDeleteकबाड से पुनर्प्राप्त इस्पात का इस्तेमाल करके सुन्दर स्तम्भ का निर्माण अच्छा लगा !
ReplyDeleteऊपर कहीं lover's point है क्या?
ReplyDeleteइसे लव इन टोकियो में देखा था...
ReplyDeleteवाह, खूब सैर करा रहे हैं...
बहुत रोचक और ज्ञानवर्द्धक जानकारी। आभार।
ReplyDeleteघर बैठे दुनिया की सैर कर रहे हैं, आपकी नजर से।
ReplyDeleteशीशे के ब्लॉक से लिया गया चित्र शायद हम जैसे बेहद कजोर दिल वालों के डर से नहीं लगाया:)
जापानियों दा जबाव नहीं>..
ReplyDeleteअब से पहले यह सब पता ही नहीं था। एफिल टॉवर का एकाधिकार समापत कर दिया आपने।
ReplyDeleteतय करना कठिन हो रहा है कि वर्णन अधिक सुन्दर है या चित्र। सब कुछ सुन्दर। अति सुन्दर।
पढ़ते ही ऐसा एक रोंगटे खड़े करने वाला दृश्य याद आ गया .
ReplyDeleteजापान भ्रमण का ये सोपान भी बेहद रोचक और जानकारी से भरा रहा ! कुछ चीजें तो पहली बार (वो भी हिन्दी में ) पता चलीं !!
ReplyDeleteलगा अभी टावर घूमकर आये हैं। :)
ReplyDeletenice towar
ReplyDeletei felt nice to go there
ReplyDelete