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एक अन्य मन्दिर का आकर्षक द्वार |
वृहद टोक्यो का जिला कामाकुरा आज भले ही उतना मशहूर न हो परंतु एक समय में यह जापान के एक राजवंश की राजधानी हुआ करता था। तब इसे कमाकुरा बकाफू, कमाकुरा शोगुनाते और रेंपू के नाम से भी पहचाना जाता था। राज-काज का केन्द्र होने का गौरव आज भले ही काफूर हो चुका हो परंतु कमाकुरा आज भी अपने दाइ-बुत्सू के लिये प्रसिद्ध है। दाइ-बुत्सू यानी आसीन बुद्ध यद्यपि आजकल इस शब्द को विशाल बुद्ध के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। जापान में शाक्यमुनि बुद्ध की कई विशाल और प्राचीन प्रतिमायें हैं। कमाकुरा के दाइ-बुत्सू भी उनमें से एक हैं।
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दाइ-बुत्सू |
तीन ओर से पर्वतों से घिरे कामाकुरा के दक्षिण में मनोहर सागर तट (सगामी खाड़ी) है। वैसे तो यह नगर रेल और सड़क मार्ग से टोक्यो से जुड़ा है परंतु दाइ-बुत्सु के दर्शन के लिये कमाकुरा से ट्रेन बदलकर एक छोटी उपनगरीय विद्युत-रेल लेकर हासे नामक ग्राम तक जाना होता है। इस स्टेशन का छोटा सा प्लेटफार्म स्कूल से घर जाते नौनिहालों से भरा हुअ था। गोरा रंग, पतली आंखें और चेहरे पर छलकती खुशी और मुस्कान उत्तरांचल की सहजता का अहसास दिला रही थी। यहाँ यह बताता चलूं कि जापान में मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि मैं परदेस में था। लगातार ऐसा प्रतीत होता था जैसे कि मैं भारत के एक ऐसे प्रदेश में हूँ जहाँ की भाषा मुझे अभी भी सीखनी बाकी है।
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दर्शन से पहले ॐ अपवित्राय पवित्रो वा ... |
कमाकुरा की अमिताभ बुद्ध की विशाल काँस्य प्रतिमा (दाइ-बुत्सू) लगभग बारह सौ वर्ष पुरानी है। यह जापान की तीसरी सबसे विशाल प्रतिमा है। पांच शताब्दी पहले आये एक त्सुनामी में काष्ठ-मंडप के नष्ट हो जाने के बाद से ही यह प्रतिमा खुले आकाश में अवस्थित है। विश्व में जापान को पहचान दिलाने वाले प्रतीकों में से एक दाइ-बुत्सू के अतिरिक्त पाँच प्रमुख ज़ेन मन्दिर भी कमाकुरा क्षेत्र में पडते हैं।
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सिंहद्वार के संगमर्मरी वनराज |
1923 के भयानक भूकम्प में जब कमाकुरा के बहुत से स्थल नष्टप्राय हो गये थे तब जापानियों ने उनमें से अधिकांश का उद्धार किया परंतु अमिताभ बुद्ध का मन्दिर दोबारा बनाया न जा सका। पता नहीं अपने मन्दिर में बुद्ध कितने सुन्दर दिखते मगर मुझे तो खुले आकाश के नीचे पद्मासन में बैठे ध्यानमग्न शाक्यमुनि के मुखारविन्द की शांति ने बहुत प्रभावित किया। जापानी भक्त हाथ जोडकर धूप भी जला रहे थे और हुंडियों में येन भी डालते जा रहे थे।
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बुद्ध के विशाल खडाऊं |
मन्दिर के विशाल परिसर से उसके मूलरूप की भव्यता का आभास हो जाता है। बुद्ध की कांस्य-प्रतिमा अन्दर से पोली है और उसके भीतर जाने का मार्ग भी है। मूर्ति के पार्श्व भाग में दो खिड़कियाँ भी हैं। प्राचीन काल में प्रतिमा एक खिले हुए कमल के ऊपर स्थापित थी जो अब नहीं बचा है परंतु उसकी बची हुई चार विशाल पंखुडियाँ आज भी प्रतिमा के चरणों में रखी देखी जा सकती हैं।
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बुद्ध के दर्शनाभिलाषी दादा-पोता |
प्रवेश शुल्क २०० येन (सवा सौ रुपये?) है। देश-विदेश से हर वय और पृष्ठभूमि के लोग वहाँ दिख रहे थे। परिसर में अल्पाहार और स्मृति चिन्हों के लिये भारतीय तीर्थस्थलों जैसे ही छोटी-छोटी अनेक दुकानें थीं। अधिकांश दुकानों में महिलाओं की उपस्थिति इम्फाल, मणिपुर के ईमा कैथेल की याद ताज़ा कर रही थी। अलबत्ता यहाँ मत्स्यगन्ध नहीं थी। एक बच्चे को अपने पितामह के आश्रय में आइस्क्रीम खाते देखा तो उनकी अनुमति लेकर मैने उस जीवंत क्षण को कैमरे में कैद कर लिया। अगले अंक में हम चलेंगे
समृद्धि के देवता का मन्दिर: रेंकोजी - जापान का एक गुमनाम सा परंतु अनूठा तीर्थस्थल जहाँ हम भारतीयों का दिल शायद जापानियों से भी अधिक धडकता है।
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बुद्धम् शरणम् गच्छामि! |
[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]
अनुराग जी,
ReplyDeleteकमाकुरा का जीवंत भ्रमण करा दिया। भावों सह चित्रण से आलेख अनूठा हुआ। आभार!!
प्रतिक्षा रहेगी, अगली कडी की।
बहुत सुन्दर चित्र और जानकारी। धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर चित्र ...अच्छी जानकारी ..!
ReplyDeleteबेहतरीन यात्रा वृत्त। यह जानकर अच्छा लगा कि जापान में भारत के पर्वतीय स्थलोंवाली आत्मीयता है।
ReplyDeleteजारी रहे सफ़र। शुभकामनाएं
कामाकुरा वकाफू वाबत पढा आकर्षक व्दार का आकर्षक चित्र देखा। गोरा रंग पतली आंखें सहज और छलकती मुस्कान प्राकृतिक शव्दों का मनोहर चित्रण व चित्रं ।जेन मंदिर शव्द से एकाध सेकेन्ड को अचंभित हुआ कि वहां कहां जैन मंदिर मगर तत्क्षण याद आया झेन मंदिर । विशाल खडाउं का चित्र तो देखा ही साथ ही ’पित ामह के आश्रय में तथा मत्स्यगंध ंशव्द भागये । गंध नहीं भाई आपका शव्द भाया ।बहुत धन्यवाद । शव्द बडे चुन चुन कर प्रयोग करते हैं आप
ReplyDelete...यायावरी से उपजे अनुभवों को आपने बड़ी कुशलता से अभिव्यक्त किया है। चित्र चार चाँद लगा रहे हैं पोस्ट में।
ReplyDeleteहमें खुद यह लग रहा है कि अपने देश के ही किसी हिस्से में भ्रमण कर रहे हैं। रनकोजी मंदिर के विवरण का बेसब्री से इंतजार रहेगा। शायद हम भारतीयों पर एक ऋण है जापान का, रनकोजी टैंपल के रूप में।
ReplyDeleteरेंकोजी में सुभाष बाबू के दर्शन होगे इसके लिये आपका अग्रिम धन्यवाद
ReplyDeleteसुज्ञ जी के कथन से पूरी तरह सहमत. प्रथम चित्र में मंदिर के सामने लगा वृक्ष तो अनोखा ही दीखता है. क्या आप बता पाएंगे की ये कौन सा पेड़ है.
ReplyDeleteबुद्धम् शरणम् गच्छामि!
ReplyDeleteचित्रों से सजी हुई बहुत सुन्दर पोस्ट लगाई है आपने!
ReplyDelete@VICHAAR SHOONYA said... सुज्ञ जी के कथन से पूरी तरह सहमत. प्रथम चित्र में मंदिर के सामने लगा वृक्ष तो अनोखा ही दीखता है. क्या आप बता पाएंगे की ये कौन सा पेड़ है.
ReplyDeleteजहाँ तक मैं समझता हूँ, यह एक प्रकार के चीड़(पाइन, pine) का वृक्ष है। वृक्षों की सुन्दर छंटाई की कला जापान में चहुँ ओर दिखाई देती है।
सुन्दर चित्र सुन्दर वृत्तान्त !
ReplyDeleteअपनापन लिए जगह है. मनोरम.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी के लिए कोटिश धन्यवाद....
ReplyDelete@ यहाँ यह बताता चलूं कि जापान में मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि मैं परदेस में था। लगातार ऐसा प्रतीत होता था जैसे कि मैं भारत के एक ऐसे प्रदेश में हूँ जहाँ की भाषा मुझे अभी भी सीखनी बाकी है।
ReplyDeleteउदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्
बैठे हुये बुद्ध चिन्तित मुद्रा में दिख रहे हैं। पूरा वातावरण किसी भारतीय नगर सा लगता है। बड़ा सुन्दर यात्रा वृत्तान्त।
ReplyDeleteअन्तिम चित्र में दिखाई दे रहे बुध्द मानो करुणा-वर्षा करते अनुभव हो रहे हैं।
ReplyDeleteमन खुश हो गया ...सुन्दर चित्रों के साथ अति सुन्दर जानकारी !!
ReplyDeleteआपकी आँखों और लेखनी से कमाकुरा को जानना अच्छा लगा ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी ! चित्र सुन्दर हैं !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा इस मंदिर के बारे में जानकर। गिरिजेश की टिप्पणी से सहमत!
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