Saturday, September 21, 2013

भविष्यवाणी - कहानी [भाग 3]

कहानी भविष्यवाणी में अब तक आपने पढ़ा कि पड़ोस में रहने वाली रूखे स्वभाव की डॉ रूपम गुप्ता उर्फ रूबी को घर खाली करने का नोटिस मिल चुका था। उनका प्रवास भी कानूनी नहीं कहा जा सकता था। समस्या यह थी कि परदेस में एक भारतीय को कानूनी अडचन से कैसे निकाला जाय। रूबी की व्यंग्योक्तियाँ और क्रूर कटाक्ष किसी को पसंद नहीं थे, फिर भी हमने प्रयास करने की सोची। रूबी ने कहा कि हमारे उसके घर आने के बारे में उसे शंख चक्र गदा पद्मधारी भगवान् ने इत्तला दी थी।
भाग १
भाग २
अब आगे की कथा:
"और क्या क्या बताया था आपके शंख चक्र गदा पद्मधारी भगवान् ने?" मैंने पूछा

"अपने को हुशियार समझते, आयेंगे समझाने लोग ..." उसने तुनककर कहा

"आप स्थिति की गंभीरता को नहीं समझ रही हैं। यदि व्यवस्था को पता लगा कि आपका कार्य-वीसा वैलिड नहीं रहा है, तो आपको वापस भेज देंगे।"

"मेरे साथ यह नहीं होने वाला. कार्य दूर, मेरा तो वीसा ही छः महीने पहले ख़त्म हो गया था। होना होता तो अब तक जेल भी हो सकती थी।"

"हाँ, यह तो गनीमत है आप अमेरिका में हैं। और कोई देश होता तो वीसा के बिना अब तक न जाने क्या दुर्दशा हुई होती। लेकिन गैरकानूनी होना तो कहीं भी सही नहीं है। आपके लिए भारत वापस जाना ही सही है। आप परेशान न हों, हम आपके टिकट की व्यवस्था कर देंगे।"

"मैंने आपका क्या बिगाड़ा है? आप मुझसे परेशान हैं? मुझे मारना चाहते हैं?

"नहीं, आपके पास वापसी का टिकट नहीं है, हम घर वापस जाने में आपकी मदद करना चाहते हैं। बस इतनी सी बात है।" समझाने की कमान इस बार श्रीमती जी ने संभाली।

"टिकट दिलाने में मरने-मारने की बात कहाँ से आ गयी?" पूछे बिना रहा नहीं गया मुझसे।

उसने मेरी और ऐसे देखा जैसे संसार में मुझसे बड़ा नादान कोई और न हो। फिर कुछ सोचकर मेरे पास आई और बोली, "इतना समझ लो कि मैं बस उतने दिन ही ज़िंदा हूँ, जितने दिन यहाँ हूँ। आइएसटी (IST भारतीय समय) मेरा काल है और ईएसटी (EST पूर्वोत्तर अमेरिका का स्थानीय समय) मेरा जीवनकाल. मुझे भारत भेजने की बात करने वाला मेरा हत्यारा ही होगा।"

"मुझे कुछ समझ नहीं आया, ठीक से समझायेंगी?"

"जिम में तो आप देखते थे न मुझे? स्विमिंग पूल में भी देखती थी मैं आपको ..."

मुझे याद आया कि अकस्मात नज़र मिलने पर मुस्कान का जवाब तो दूर, मुँह चिढाकर नज़र फेर लेती थी वह।

" ... मेरी नौकरी ऐसे ही नहीं ख़त्म हुई है, वह सब एक षड्यंत्र था मेरे खिलाफ। दुर्घटना हुई थी, फिजियोथेरेपी भी कराती थी मैं और स्विमिंग, योगा, सब तरह के व्यायाम भी करती थी।"

"तो?"

"तो, यह दर्द ठीक होने वाला नहीं। अब मैं नौकरी नहीं कर सकती। भगवान् ने बताया कि इंडिया जाते ही मर जाऊंगी।"

"अच्छा, कैसे बताया भगवान् ने?" मुझे रास्ता सूझने लगा था। अब आगे की योजना ज़्यादा कठिन नहीं लगी, "... भगवान् कान में बोले थे कि चिट्ठी भेजी थी?"

[क्रमशः]
 

20 comments:

  1. कहानी में रहस्य की परत दर परत वृद्धि होती ही जा रही है और साथ ही उत्सुकता की भी. पूरी टिप्पणी लगता है कहानी ख़त्म होने के बाद ही लिख पाऊँगा.

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  2. काफी रोचक होती जा रही है कहानी !

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  3. यहां तो पेंच और ज्यादा उलझ गया लगता है. कुल मिलाकर रहस्य बढता ही जा रहा है. देखते हैं आगे क्या होता है?

    रामराम.

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  4. serials to frequent aate hain, aap bahut der se kahani post karte hain aur jaldi khatm kar dete hain aur pathak ke liye ek surag bhi nahi.agli kadi ka intzaar rahega.

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  5. यह कहानी एक सपने की तरह बढ़ रही है। कब क्या हो कुछ पता नहीं। ये मेडम भी एक स्वप्न में दीखते किरदार जैसे बिहेव कर रही हैं।

    आगे क्या होगा जान्ने की उत्सुकता। सपना हुआ तो आधी रह जायेगी कहानी।

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  6. अगली कड़ी में संभवतः कुछ समझ आये .... रोचकता ब

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  7. वाह ! बहुत रोचक कहानी..भगवान पर भरोसा किया है तो सब ठीक ही होगा..

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  8. कहानी में ब्रेक खूब दे रहे हो और विज्ञापन गायब हैं :) , अगले खंड का इंतज़ार है !

    "अपने को हुशियार समझते, आयेंगे समझाने लोग" यह पंक्तियाँ पसंद आयीं , अगर यह किसी की रचना नहीं है तो इनको आगे बढ़ाया जाए ??

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  9. मैं सुबह से यह पंक्तियाँ ढूंढ रहा हूँ और यह भूल गया कि भी इन्हीं लाइनों पर लिख रखा है , यह संयोंग कैसे संभव हुआ ? जबकि मैंने यह दोनों कभी नहीं पढ़ीं . . .
    http://satish-saxena.blogspot.in/2013/09/blog-post_19.html

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    1. होता है बड़े भाई, बड़े-बड़े शायर अक्सर एक जैसी लय में सोचते हैं.

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  10. कहानी का सस्पेंस बरकरार है !
    अगली किश्त जल्दी लिखें , वीर सिंह जी की तरह अटकायें नहीं :)

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  11. रोचक है, एक समय क्षेत्र से दूसरे में जाने का भय।

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    1. कहानी भी हिलेगी अवश्य. अभी तो बहुत कुछ ठहरा हुआ है. पितृपक्ष है - पितर आये हुए हैं.

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