अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥सोने की ख़रीदारी ज़ोरों पर है और शादियों की तैयारी भी। क्यों न हो, साल का सबसे शुभ मुहूर्त जो है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि चिरंजीवी भगवान परशुराम का जन्मदिन है। माना जाता है कि भगवान विष्णु के नर-नारायण और हयग्रीव रूपों का अवतरण भी इसी दिन हुआ था। ऐसी मान्यता है कि आज किए गए कार्य स्थायित्व को प्राप्त होते हैं। दया, दान और अन्य सत्कार्यों को विशेष महत्व देने वाली हमारी संस्कृति में आज का दिन व्रत, तप, पूजन और दान के लिए विशिष्ट है क्योंकि वह अनंतगुणा फल देने वाला समझा जाता है। स्थायित्व और वृद्धि की कामना से आज के दिन पुण्यकार्य किए जाते हैं। प्राचीन राज्यों में शासक किसानों को नई फसल की बुवाई के लिए बीजदान करते थे। उत्तर-पश्चिम के कई क्षेत्रों में किसान इस दिन घर से खेत तक जाकर मार्ग के पशु-पक्षियों को देखकर अपनी फसलों के लिए वर्षा के शकुन पहचानते हैं। कुछ समुदायों में आज सामूहिक विवाह सम्पन्न कराने की रीति है। अनेक गाँवों में बच्चे इस दिन अपने गुड्डे-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। और जो ये सब नहीं भी करते हैं, उनके लिए शादी का सबसे बड़ा मुहूर्त तो है ही दावतें खाने के लिए।
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥
(मदनरत्न)
संसार में जितने बड़े आदमी हैं, उनमें से अधिकतर ब्रह्मचर्य-व्रत के प्रताप से बड़े बने और सैंकड़ों-हजारों वर्ष बाद भी उनका यशगान करके मनुष्य अपने आपको कृतार्थ करते हैं। ब्रह्मचर्य की महिमा यदि जानना हो तो परशुराम, राम, लक्ष्मण, कृष्ण, भीष्म, ईसा, मेजिनी, बंदा, रामकृष्ण, दयानन्द तथा राममूर्ति की जीवनियों का अध्ययन करो। ~ अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिलजम्बूद्वीप में अक्षय तृतीया को ग्रीष्मऋतु का आधिकारिक उदघाटन भी माना जा सकता है। बद्रीनारायण धाम के कपाट अक्षय तृतीया के आगमन पर खुलते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया को किये गये पितृतर्पण, पिन्डदान सहित किसी भी प्रकार का दान अक्षय फलदायी होता है। श्वेत पुष्प का दान किया जा सकता है। कुछ स्थानों में 9 कुछ में 7 और कुछ में 3 प्रकार के धान्य के दान का रिवाज है। भगवान ऋषभदेव ने 400 दिन के निराहार तप के बाद ‘अक्षय तृतीया’ के दिन ही हस्तिनापुर के राजकुमार के हाथों इक्षु (ईख = गन्ना) के रस का पारायण किया था। उसी परंपरा में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ वर्षीतप का उपवास ‘अक्षय तृतीया’ को सम्पन्न होता है। तपस्वियों के सम्मान में भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है और उपहार "प्रभावना" दिये जाते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे राष्ट्र का नाम भारतवर्ष पड़ा। यहाँ यह दृष्टव्य है कि भगवान राम का वंश भी ईक्ष्वाकु ही कहलाता है और गन्ने और शर्करा के उत्पादन का रहस्य आज भले ही संसार भर को ज्ञात हो परंतु हजारों साल तक यह रहस्य भारत के बाहर पूर्ण अज्ञात था। (कुछ परम्पराओं में भारतवर्ष के नामकरण का श्रेय दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत को भी जाता है।)
ऋषभो मरुदेव्याश्च ऋषभात भरतो भवेत्। भरताद भारतं वर्षं, भरतात सुमतिस्त्वभूत्एक अक्षय तृतीया के दिन भक्त सुदामा अपने बाल सखा कृष्ण से मिलने पहुँचे थे और अपने सेवाकार्यों के लिए सम्मानित हुए थे। कथा यह भी है कि इसी दिन जब शंकराचार्य जी भिक्षा के लिए एक निर्धन दंपति के पास पहुँचे तो उस भूखे परिवार ने कई दिन बाद अपने भोजन के लिए मिले एक फल को उन्हें समर्पित कर दिया। उनकी दान प्रवृत्ति के सम्मान में आदि शंकर ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की। यह दिन युगादि भी है और कुछ परम्पराओं में महाभारत के युद्ध का अंत और फिर कलयुग का आरंभ भी इसी दिन से माना जाता है।
ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषुगीयते। भरताय यत: पित्रा दत्तं प्रतिष्ठिता वनम
(विष्णु पुराण)
राम जामदग्नेय - अमर चित्र कथा |
हिमाचल, परशुराम क्षेत्र (गोआ से केरल तक) तथा दक्षिण भारत में तो परशुराम जयंती का विशेष महत्व रहा ही है, आजकल उत्तर भारत में भगवान परशुराम की जानकारी का प्रसार हो रहा है। परशुराम जी से जुड़े मंदिरों और तीर्थस्थलों में पूजा करने का विशेष महात्म्य है। भार्गव परशुराम ने जिस प्रकार अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से एक शक्तिशाली परंतु अन्यायी साम्राज्य के घुटने टिकाकर एक नई सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी जिसमें शस्त्र और शास्त्र एक विशिष्ट वर्ग की गुप्त शक्ति न रहकर उनका वितरण और प्रसार नवनिर्माण के लिए हुआ वह अद्वितीय क्रान्ति थी। यदुवंशी सहस्रबाहु के अहंकार का पूर्णनाश करने वाले परशुराम यदुवंशी श्रीकृष्ण को दिव्यास्त्र प्रदान कर विजयी बनाते हैं। अजेय पश्चिमी घाट के घने जंगलों को परशु के प्रयोग से मानव निवास योग्य बनाकर बस्तियाँ बसाने की बात हो या पूर्वोत्तर में अटल हिमालय की चट्टानें काटकर ब्रह्मपुत्र की दिशा बदलने की बात हो, भगवान परशुराम जनसेवा के लिए जीवन समर्पण करने का ज्वलंत उदाहरण हैं।
पृथिवीम् च अखिलां प्राप्य कश्यपाय महात्मने। यज्ञस्य अन्ते अददं राम दक्षिणां पुण्यकर्मणे ॥जिस प्रकार हिमालय काटकर गंगा को भारत की ओर मोड़ने का श्रेय भागीरथ को जाता है उसी प्रकार पहले ब्रह्मकुन्ड से, और फिर लौहकुन्ड पर हिमालय को काटकर ब्रह्मपुत्र जैसे उग्र महानद को भारत की ओर मोड़ने का श्रेय परशुराम जी को जाता है। यह भी मान्यता है कि गंगा की सहयोगी नदी रामगंगा को वे अपने पिता जमदग्नि की आज्ञा से धरा पर लाये थे। ऋषभदेव का निर्वाण स्थल कैलाश पर्वत है जो कि भगवान् परशुराम की तपस्थली है। अफसोस कि भारतीयों के तिब्बत स्थित प्राचीन तीर्थस्थल तक हमारी पहुँच अब चीनियों के वीसा पर निर्भर है। भगवान परशुराम से संबन्धित बहुत से तीर्थ हिमालय क्षेत्र में हैं। विश्व की पहली समर कला के प्रणेता, निरंकुश शासकों, अत्याचारी आतंकियों, और आसुरी शक्तियों के विरोधी परम यशस्वी भगवान् परशुराम के जन्म दिन यानी अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर आइये तेजस्वी बनकर सदाचरण और सद्गुणों से अक्षय सत्कर्म और परोपकार करने की कामना करें।
दत्वा महेन्द्रनिलय: तप: बलसमन्वित:। श्रुत्वा तु धनुष: भेदं तत: अहं द्रुतम् आगत:।। (रामायण)
हे राम! सम्पूर्ण पृथिवी को जीतकर मैने एक यज्ञ किया, जिसकी समाप्ति पर पुण्यकर्मा महात्मा कश्यप को दक्षिणारूप में सारी पृथिवी का दान देकर मै महेंद्रपर्वत पर रहने गया। वहाँ तपस्या करके तपबल से युक्त हुआ मैं धनुष को टूटा हुआ सुनकर वहाँ से अतिशीघ्र आया हूँ।
धिग्बलं क्षत्रियबलं ब्रह्मतेजो बलं बलं। एकेन ब्रह्मदण्डेन सर्वास्त्राणि हतानि मे॥ (रामायण)
ज्ञानबल के सामने बाहुबल बेकार है। एक ज्ञानदंड के सामने सभी अस्त्र नष्ट हो जाते हैं।
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सम्बंधित कड़ियाँ
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* परशुराम स्तवन
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* बुद्ध पूर्णिमा पर परशुराम पूजा