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पिट्सबर्ग पर यह नई कड़ी मेरे वर्तमान निवास स्थल से आपका परिचय कराने का एक प्रयास है। संवेदनशील लोगों के लिए यहाँ रहने का अनुभव भारत के विभिन्न अंचलों में बिताये हुए क्षणों से एकदम अलग हो सकता है। कोशिश करूंगा कि समानताओं और विभिन्नताओं को उनके सही परिप्रेक्ष्य में ईमानदारी से प्रस्तुत कर सकूं। आपके प्रश्नों के उत्तर देते रहने का हर-सम्भव प्रयत्न करूंगा, यदि कहीं कुछ छूट जाए तो कृपया बेधड़क याद दिला दें, धन्यवाद! अब तक की कड़ियाँ यहाँ उपलब्ध हैं: खंड १; खंड २
इसी शृंखला में एक पिछली पोस्ट में दिनेशराय द्विवेदी जी ने नदी के फोटो पर एक प्रश्न किया था कि क्या नगर के बीच से नदी गुज़र रही है, यदि हाँ तो क्या वह प्रदूषित नहीं होती है। आइये एक नज़र पिट्सबर्ग की नदी व्यवस्था पर डालें। मगर उससे पहले एक बात और। जब मैं भारत में था, गरमी के मौसम में हर साल राज्यों के बीच होने वाली पानी की लड़ाई के बारे में सुनता था। क्योंकि एक तो बाँध रखने वाले राज्य पड़ोसी राज्यों के लियी पानी छोड़ने में कोताही बरतते थे। दूसरे कभी-कभी पीछे से आने वाला जल इतना ज़्यादा प्रदूषित होता था कि संशोधन यंत्र उसे साफ़ करने में असमर्थ ही होता था। बाँध वाले राज्यों का तर्क होता था कि उनके बाँध में अपने राज्य की आपूर्ति के बाद सिर्फ़ कानूनी रूप से आरक्षित रखने लायक पानी ही बचता है और ऐसे में वे इस पानी को दूसरे राज्य को नहीं दे सकते। गर्मियों में पानी की ज़रूरी आपूर्ति भी न कर सकने वाले वही बाँध बरसात के मौसम में बिना चेतावनी के लाखों क्यूसेक पानी छोड़कर अगणित जिंदगियां और संसाधनों का विनाश कर देते हैं। याद है कोसी की हालिया बाढ़?
उथली नदियों को देखकर शायद आपके मन में भी विचार आता होगा कि सैकडों गाँवों को डुबाकर उनकी जगह पर ऐसे मंहगे, अक्षम और विनाशकारी बाँध बनाने के बजाय क्यों न नदियों को ही गहरा करके सदानीरा बनाया जाए। गहरी नदियाँ हमारी तंग सड़कों से यातायात का बोझ भी कम कर सकेंगी और जलापूर्ति में भी सहायक होंगी। हिमनदों के सूखते जाने के साथ यह विकल्प भविष्य के लिए और भी ज़रूरी सिद्ध होगा। मैं तो यह कहता हूँ कि देश के जल संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण एक नए सार्वजनिक उपक्रम को दिया जाए जिसके विशेषज्ञ इनके वैज्ञानिक दोहन और आपूर्ति के लिए जिम्मेदार हों। हर राज्य को ज़रूरत भर का पानी मिलने की गारंटी हो और उसके बदले में वह अनुपात रूप से राशि इस उपक्रम को दे।
यहाँ पिट्सबर्ग में अमेरिका के अन्य नगरों की तरह ही चोबीसों घंटे जल-विद्युत् की आपूर्ति है। पिट्सबर्ग तीन नदियों का नगर है। यह नदियाँ शहर के बीच से गुज़रती हैं और इसलिए यह नगर पुलों और सुरंगों से घिरा हुआ है। दो नदियाँ मोनोंगाहेला (Monongahela) व अलेघनी (Allegheny) मिलकर ओहियो नदी बनाती हैं। इस संगम को यहाँ पॉइंट कहते हैं। अब आपको एक राज़ की बात बताऊँ जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। इन दोनों नदियों के अलावा हमारी सरस्वती की ही तरह यहाँ पर एक ज़मींदोज़ नदी भी है जिसका नाम है विस्कोंसिन हिमसंहति प्रवाह (Wisconsin Glacial Flow)। यह ज़मीन के अन्दर एक से डेढ़ मील नीचे बनी एक प्राकृतिक सुरंग में बहती है और इसकी चौडाई १५ से ३५ फ़ुट तक है। ऐसी नदियों के लिए अंग्रेजी शब्द है अक्विफर (aquifer)।
तीनों नदियाँ इतनी गहरी और चौड़ी हैं कि उनमें नियमित यातायात चलता है। जिसमें छोटी नावों, पर्यटन जहाजों से लेकर कोयला और लोहा ले जाने वाले बड़े बजरे भी शामिल हैं। यहाँ तक कि स्थानीय विज्ञान केन्द्र के बाहर नदी के तट पर एक सेवानिवृत्त पनडुब्बी भी खड़ी रहती है।
प्रशासन के लिए नदियों की साफ़-सफाई और सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। पानी की गुणवत्ता, उसके स्तर और जलचरों का अध्ययन पूरे साल चलता रहता है। नदी में नाव चलाने या मछली पकड़ने के लिए नगर से परमिट लेना आवश्यक है। नदी की अपनी पुलिस है जो कि मोटर-चालित नावों और जल-स्कूटरों में घूमती रहती है। नदी में मिलने वाले जल को स्वच्छ रखना नगर निगम और उद्योगों की जिम्मेदारी है। जल-स्रोतों को विषैला या प्रदूषित करने वालों के प्रति कड़ी कार्रवाई की जाती है। सबसे बड़ी बात है कि यहाँ के नियम पारदर्शी और सबके लिए एक समान हैं। जल-स्तर के साथ-साथ बारिश का आंकडा भी रखा जाता है और बारिश के स्तर की घाट-बढ़ के आधार पर नदी में जल होते हुए भी नगर-पालिकाएं कड़े निर्देश जारी कर देती हैं जैसे कि लान में घास पर पानी डालने पर अस्थायी प्रतिबन्ध। बारिश होने की वजह से आंकडों में परिवर्तन होते ही वह प्रतिबन्ध हटा लिया जाता है।
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* संता क्लाज़ की हकीकत
* इस्पात नगरी से - शृंखला
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पिट्सबर्ग पर यह नई कड़ी मेरे वर्तमान निवास स्थल से आपका परिचय कराने का एक प्रयास है। संवेदनशील लोगों के लिए यहाँ रहने का अनुभव भारत के विभिन्न अंचलों में बिताये हुए क्षणों से एकदम अलग हो सकता है। कोशिश करूंगा कि समानताओं और विभिन्नताओं को उनके सही परिप्रेक्ष्य में ईमानदारी से प्रस्तुत कर सकूं। आपके प्रश्नों के उत्तर देते रहने का हर-सम्भव प्रयत्न करूंगा, यदि कहीं कुछ छूट जाए तो कृपया बेधड़क याद दिला दें, धन्यवाद! अब तक की कड़ियाँ यहाँ उपलब्ध हैं: खंड १; खंड २
इसी शृंखला में एक पिछली पोस्ट में दिनेशराय द्विवेदी जी ने नदी के फोटो पर एक प्रश्न किया था कि क्या नगर के बीच से नदी गुज़र रही है, यदि हाँ तो क्या वह प्रदूषित नहीं होती है। आइये एक नज़र पिट्सबर्ग की नदी व्यवस्था पर डालें। मगर उससे पहले एक बात और। जब मैं भारत में था, गरमी के मौसम में हर साल राज्यों के बीच होने वाली पानी की लड़ाई के बारे में सुनता था। क्योंकि एक तो बाँध रखने वाले राज्य पड़ोसी राज्यों के लियी पानी छोड़ने में कोताही बरतते थे। दूसरे कभी-कभी पीछे से आने वाला जल इतना ज़्यादा प्रदूषित होता था कि संशोधन यंत्र उसे साफ़ करने में असमर्थ ही होता था। बाँध वाले राज्यों का तर्क होता था कि उनके बाँध में अपने राज्य की आपूर्ति के बाद सिर्फ़ कानूनी रूप से आरक्षित रखने लायक पानी ही बचता है और ऐसे में वे इस पानी को दूसरे राज्य को नहीं दे सकते। गर्मियों में पानी की ज़रूरी आपूर्ति भी न कर सकने वाले वही बाँध बरसात के मौसम में बिना चेतावनी के लाखों क्यूसेक पानी छोड़कर अगणित जिंदगियां और संसाधनों का विनाश कर देते हैं। याद है कोसी की हालिया बाढ़?
उथली नदियों को देखकर शायद आपके मन में भी विचार आता होगा कि सैकडों गाँवों को डुबाकर उनकी जगह पर ऐसे मंहगे, अक्षम और विनाशकारी बाँध बनाने के बजाय क्यों न नदियों को ही गहरा करके सदानीरा बनाया जाए। गहरी नदियाँ हमारी तंग सड़कों से यातायात का बोझ भी कम कर सकेंगी और जलापूर्ति में भी सहायक होंगी। हिमनदों के सूखते जाने के साथ यह विकल्प भविष्य के लिए और भी ज़रूरी सिद्ध होगा। मैं तो यह कहता हूँ कि देश के जल संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण एक नए सार्वजनिक उपक्रम को दिया जाए जिसके विशेषज्ञ इनके वैज्ञानिक दोहन और आपूर्ति के लिए जिम्मेदार हों। हर राज्य को ज़रूरत भर का पानी मिलने की गारंटी हो और उसके बदले में वह अनुपात रूप से राशि इस उपक्रम को दे।
यहाँ पिट्सबर्ग में अमेरिका के अन्य नगरों की तरह ही चोबीसों घंटे जल-विद्युत् की आपूर्ति है। पिट्सबर्ग तीन नदियों का नगर है। यह नदियाँ शहर के बीच से गुज़रती हैं और इसलिए यह नगर पुलों और सुरंगों से घिरा हुआ है। दो नदियाँ मोनोंगाहेला (Monongahela) व अलेघनी (Allegheny) मिलकर ओहियो नदी बनाती हैं। इस संगम को यहाँ पॉइंट कहते हैं। अब आपको एक राज़ की बात बताऊँ जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। इन दोनों नदियों के अलावा हमारी सरस्वती की ही तरह यहाँ पर एक ज़मींदोज़ नदी भी है जिसका नाम है विस्कोंसिन हिमसंहति प्रवाह (Wisconsin Glacial Flow)। यह ज़मीन के अन्दर एक से डेढ़ मील नीचे बनी एक प्राकृतिक सुरंग में बहती है और इसकी चौडाई १५ से ३५ फ़ुट तक है। ऐसी नदियों के लिए अंग्रेजी शब्द है अक्विफर (aquifer)।
तीनों नदियाँ इतनी गहरी और चौड़ी हैं कि उनमें नियमित यातायात चलता है। जिसमें छोटी नावों, पर्यटन जहाजों से लेकर कोयला और लोहा ले जाने वाले बड़े बजरे भी शामिल हैं। यहाँ तक कि स्थानीय विज्ञान केन्द्र के बाहर नदी के तट पर एक सेवानिवृत्त पनडुब्बी भी खड़ी रहती है।
पिता-पुत्री पनडुब्बी के गर्भगृह में |
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* संता क्लाज़ की हकीकत
* इस्पात नगरी से - शृंखला
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