Saturday, October 15, 2011
Thursday, October 13, 2011
क्या आपको कुछ पता है?
छः जून की उनके ब्लॉग की पोस्ट में उंगलियों में दर्द की चिंता व्यक्त की गयी थी। उन्हें यद्यपि ज्योतिष के सहारे का विश्वास भी था। फिर भी, जिन्हें विश्वास हो उनके लिये भी ज्योतिष चिकित्सा का स्थान तो नहीं ले सकता है। उन्होंने लिखा था:
इसके बाद उनकी दो प्रविष्टियाँ और आयीं और अब दो मास से अधिक बीत जाने पर भी कोई अपडेट नहीं है। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ, खुशमिजाज़ ब्लॉगर, कवयित्री, कथाकार श्रीमती निर्मला कपिला की| आशा है कि वे ठीक होंगी, फिर भी चिंता है।
जिस प्रकार निर्मला जी के बारे में चिंतित हूँ, लगभग उसी प्रकार भावों से भरपूर कविता रचने वाली सन्ध्या गुप्ता जी की पिछली (दो महीने पुरानी) पोस्ट में भी उनकी गम्भीर बीमारी के बारे में चिंतातुर करने वाला निम्न सन्देश था:
मैं जानता हूँ कि हम भारतीय लोग बहुत भावुक होते हैं और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना निभाते हुए तुरंत हिल मिल जाते हैं। रेल का सफ़र हो या बस का, मंज़िल आने तक सम्पर्क सूत्रों का आदान-प्रदान हो ही जाता है। हिन्दी ब्लॉग जगत में भी भाई बहन से लेकर सास-ननद तक बहुत से रिश्ते जोड़े गये हैं, बहुत अच्छी बात है। आभासी रिश्ते जोड़ें न जोड़ें, परंतु यदि हम एक दूसरे की हारी-बीमारी में हाल पता कर सकें और आवश्यकता पड़ने पर किसी काम आ सकें तो मेहरबानी होगी। मेरे पास इन दोनों ही का सम्पर्क नम्बर नहीं है, बस ईमेल पता है सो किया मगर उसका कोई उत्तर नहीं मिला। यदि आप में से किसी को इन दोनों की खैरियत के बारे में जानकारी हो तो कृपया अवश्य दें। यदि आपके पास उनका या किसी परिवारजन का फ़ोन नम्बर हो तो बात करने का प्रयास कीजिये, यदि कोई निकट रहता हो तो मिल ही लीजिये। बस यही मेरा निवेदन है।
धन्यवाद व शुभकामनायें!
[दोनों चित्र रिस्पेक्टिव ब्लॉग प्रोफ़ाइल्स से]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* वीरबहूटी - निर्मला जी का ब्लॉग
* फिर मिलेंगे - सन्ध्या जी की पोस्ट
* श्रद्धांजलि - नहीं रही डॉ.संध्या गुप्ता
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उनके आश्वासन से मै फिर से डाक्तर के पास जाने से रुक गयी और एक देसी इलाज शुरू किया, डरी इस लिये भी थी कि पहले एक अंगूठे मे इसी प्राब्लम के चलते उसका टेंडर कटवाना पडा था।उस देसी दवा से ही ठीक हुयी हूँ लेकिन कुछ दिन स्प्लिन्ट जरूर बान्धना पडा। बेशक ज्योतिश आपकी समस्या हल नही कर देता लेकिन कई बार ऐसे आश्वासन से आशा सी बन जाती है और आशा ही जीवन है। इतने दिनो पढा सब को लेकिन कुछ कह नही पाई लिख नही पाई। अब भी अधिक देर लिखने से अँगुली दुखने लगती है लेकिन ये भी ठीक हो जायेगी कुछ दिन मे ।
निर्मला कपिला जी |
जिस प्रकार निर्मला जी के बारे में चिंतित हूँ, लगभग उसी प्रकार भावों से भरपूर कविता रचने वाली सन्ध्या गुप्ता जी की पिछली (दो महीने पुरानी) पोस्ट में भी उनकी गम्भीर बीमारी के बारे में चिंतातुर करने वाला निम्न सन्देश था:
मित्रों, एकाएक मेरा विलगाव आपलोगों को नागवार लग रहा है, किन्तु शायद आपको यह पता नहीं है की मैं पिछले कई महीनो से जीवन के लिए मृत्यु से जूझ रही हूँ । अचानक जीभ में गंभीर संक्रमण हो जाने के कारन यह स्थिति उत्पन्न हो गयी है। जीवन का चिराग जलता रहा तो फिर खिलने - मिलने का क्रम जारी रहेगा। बहरहाल, सबकी खुशियों के लिए प्रार्थना।
डॉ. सन्ध्या गुप्ता |
धन्यवाद व शुभकामनायें!
[दोनों चित्र रिस्पेक्टिव ब्लॉग प्रोफ़ाइल्स से]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* वीरबहूटी - निर्मला जी का ब्लॉग
* फिर मिलेंगे - सन्ध्या जी की पोस्ट
* श्रद्धांजलि - नहीं रही डॉ.संध्या गुप्ता
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Monday, October 10, 2011
एक नये संसार की खोज - इस्पात नगरी से 46
स्थानीय पत्र में कोलम्बस पर विमर्श |
12 अक्टूबर 1492 को क्रिस्टोफ़र कोलम्बस और उसके साथियों ने धरती के गोलाकार होने की नई वैज्ञानिक जानकारी का प्रयोग करते हुए पश्चिम दिशा से भारत का नया मार्ग ढूंढने का प्रयास किया। बेचारों को नहीं पता था कि यूरोप के पश्चिम में उत्तर से दक्षिण तक एक लम्बी दीवार के रूप में एक अति विशाल भूखण्ड भारत पहुँचने में बाधक बनने वाला है।
कोलम्बस का तैलचित्र |
अपने अभियान के लिये पुर्तगाल राज्य द्वारा सहायता नकारे जाने के बाद उसने स्पेन से वही अनुरोध किया और स्वीकृति मिलने पर नीना, पिंटा और सैंटा मारिया नामक तीन जलपोतों का दस्ता लेकर पैलोस बन्दरगाह से स्पेनी झंडे के साथ 3 अगस्त 1492 को पश्चिम दिशा में चल पड़ा।
कोलम्बस के अभियान के साथ ही आरम्भ हुआ अमेरिका के मूल स्थानीय नागरिकों और उनकी संस्कृति के विनाश की उस अंतहीन गाथा का जिसके कारण कुछ लोग आज कोलम्बस को एक खोजकर्ता कम और विनाशक अधिक मानते हैं। वैसे भी अमेरिगो वेस्पूशी जैसे नाविक पहले ही अमेरिका आ चुके थे और जिस महाद्वीप पर लोग पहले से ही रहते हों, उसकी "खोज" ही अपने आप में एक विवादित विषय है।
फिर भी संयुक्त राज्य अमेरिका में अक्टूबर मास का दूसरा सोमवार प्रतिवर्ष कोलम्बस डे के रूप में मनाया जाता है और एक राष्ट्रीय अवकाश है। क्षेत्र के अन्य कई राष्ट्र भी किसी न किसी रूप में इसे मान्यता देते हैं। वैसे अमेरिका की उपभोगवादी परम्परा में किसी भी पर्व का अर्थ अक्सर शॉपिंग, सेल, छूट, प्रमोशन आदि ही होता है। अमेरिका में बैठे एक भारतीय के लिये यह देखना रोचक है कि समय के साथ किस प्रकार विश्व के केन्द्र में रहने वाले राष्ट्र स्थानापन्न होते रहते हैं।
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
* कोलम्बस, कोलम्बस! छुट्टी है आयी
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