Saturday, November 22, 2008

ज़माने की बातें - कविता

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जो करते थे सारे
ज़माने की बातें

वो करते हैं अब
दिल दुखाने की बातें

मेरे साथ होते जो
थकते नहीं थे

वो करते कभी अब
न आने की बातें

है सब कुछ हमारा
था जिनका यह दावा

वो करते हैं सब कुछ
छिपाने की बातें

ग़मे दिल को अपने
मना लूंगा आख़िर

मैं कैसे भुलाऊँ
ज़माने की बातें।

Thursday, November 20, 2008

लिखने को बहुत कुछ है

कभी-कभी यूँ भी होता है कि कहने को बहुत कुछ होता है मगर इतनी सारी बातों में यह समझ नहीं आता कि क्या कह दिया जाए और क्या रह दिया जाए. कुछ ऐसा ही आजकल मेरे आसपास हो रहा है. मौसम तेज़ी से बदल रहा है. कल तक तरह-तरह के रंगों से सुशोभित पेड़ ठूँठ से नज़र आने लगे हैं. सुबह घर से जल्दी निकलो तो बर्फ की चादर से ढँकी घास का रंग सफ़ेद दिखता है. आज रात में तीन इंच बर्फ जमने की संभावना है.

पिछले हफ्ते की बेरोजगारी की दर पिछले सोलह साल में सर्वाधिक थी. लोग मंदी की मार के मारे हुए हैं. शेयर बाज़ार तो कलाबाजियां खाता जा रहा है. सिटीबैंक का शेयर आज पाँच डॉलर से नीचे चला गया. बहुत पैसा डूब गया. मगर ऐसा भी नहीं कि सब कुछ ख़राब ही हो रहा हो. हर स्टोर में सेल लगी हुई है. सेल तो वैसे हर साल ही लगती है मगर इस साल तो हर कोई किसी तरह करके भी अपना माल बेचने का भरसक प्रयत्न कर रहा है. और उसके लिए वे ग्राहक को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. बहुत सी दुकानों को डर है कि अगर इस सीज़न में पैसा नहीं बना सके तो शायद अगले सीज़न तक धंधे से बाहर ही न हों. पेट्रोल की कीमतों में गिरावट भी जारी है. कुछ स्थानों में प्रति-गैलन पेट्रोल भी दो डॉलर से कम आ गया.

दफ्तर के बाहर के बड़े से सजावटी फव्वारे को जब लकडी के फट्टों से ढंका जाने लगा तो यही सोचा कि शायद बर्फ से बचने के लिए ऐसा किया जा रहा हो. मगर जब उस पर बाकायदा सेट तैयार होने लगा तो ध्यान आया कि यहाँ भी त्योहारों का मौसम आ चुका है. बाज़ार में सड़क-किनारे लगे पेड़ों को बिजली की झालरों से सजाया जाने लगा है. जगह-जगह ईसा मसीह के जन्म के दृश्य की झाँकियाँ बननी शुरू हो गयी हैं. दफ्तर के बाहर के फव्वारे के ऊपर हर साल एक बहुत बड़ी झांकी लगती है.शुक्रवार को शहर की सालाना "लाईट अप नाईट" है जो कि आधिकारिक रूप से त्यौहार के मौसम का आरम्भ मानी जा सकती है.

ऐसा भी नहीं है कि सब लोग त्यौहार की खुशी में शरीक ही हों. कुछ लोग तो गिरती बर्फ में शून्य से नीचे के तापक्रम में खड़े होकर काम मांगते दिख जाते हैं ताकि अपने बच्चों के लिए क्रिसमस के उपहार खरीद सकें. मगर कुछ लोग अकारण भी नाखुश रहने की कला जानते हैं. पिछली बार कुछ दलों ने इस बात पर हल्ला मचाया था कि कुछ दुकानों ने "शुभ क्रिसमस" के चिह्न क्यों लगाए थे. यह दल चाहते थे कि दुकानें सिर्फ़ एक "सीजंस ग्रीटिंग" जैसा धर्म-निरपेक्ष नारा ही लिखें.

समाज सेवी संस्थायें भी काम पर निकल पडी हैं ताकि बालगृह और अनाथालय आदि में रह रहे बच्चों तक उपहार और बेघरबार लोगों तक ऊनी कपड़े आदि पहुँचाए जा सकें. कुल मिलाकर यह समय विरोधाभास का भी है और संतुष्टि का भी. कोई उपहार पाकर संतुष्ट है और कोई उपहार देकर!

चित्र सौजन्य: अनुराग शर्मा
ओमनी विलियम पेन होटल में लाईट अप नाईट का दृश्य

चित्र सौजन्य: अनुराग शर्मा
मेरे कार्यालय के बाहर यीशु के जन्म का दृश्य

दोनों चित्र: अनुराग शर्मा द्वारा ::  Photos by Anurag Sharma
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Sunday, November 16, 2008

सबसे पुरानी जीवित जीप - युद्ध की विरासत

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना ने एक ऐसे विश्वसनीय मोटर वाहन की ज़रूरत महसूस की जो कि उस समय उपलब्ध वाहनों से अधिक शक्तिशाली हो और साथ ही आल-वील ड्राइव भी हो. वाहन का चलता-फिरता प्रारूप प्रस्तुत करने के लिए ४९ दिन का समय बहुत कम था और अधिकाँश बड़ी कंपनियां इतने कम समय में ऐसा क्रांतिकारी डिजाइन सामने लाने लायक नहीं थीं. ऐसे समय पर सन १९४० में पिट्सबर्ग के बाहर बटलर में स्थित एक छोटी सी कंपनी अमेरिकन बैंटम ने एक ऐसा वाहन बनाया जो कि बाद में पौराणिक (legendary के लिए यदि आपके पास कोई बेहतर हिन्दी/उर्दू शब्द है तो कृपया मुझे ज़रूर बताएं) हो गया और आज सारी दुनिया में जीप के नाम से जाना जाता है . चूंकि अमेरिकन बैंटम एक छोटी सी कंपनी थी और सेना को डर था कि वह उनकी मांग को पूरा नहीं कर सकेगी इसलिए उन्होंने क्रम से दो और कम्पनियों को बैंटम वाहन का प्रारूप दिखाया और उन्हें भी वही वाहन समान संख्या में बनाने को कहा. इस तरह दुनिया की पहली जीप को विल्लीज़ और फोर्ड ने भी बनाया.

आज सारी दुनिया में जीप नाम एक तरह से स्पोर्ट्स यूटिलिटी वाहनों (SUVs) का पर्याय सा बन गया है. कई कंपनियों को स्थानांतरित होकर जीप ब्रांड नेम अंततः क्राइसलर की अमानत है. अमेरिकी वाहन उद्योग की पतली हालत के बारे में तो आप सुन ही रहे होंगे. फोर्ड और जनरल मोटर्स के साथ-साथ क्राइसलर पर भी अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है इसलिए यह कहना सम्भव नहीं है कि जीप का ऐतिहासिक नाम और कितने दिन अपने अस्तित्व को बचा सकेगा.

चित्र सौजन्य: अनुराग शर्माचित्र सौजन्य: अनुराग शर्मा

सबसे पहली सत्तर कारों के लॉट में से सिर्फ़ एक जीप जीवित बची है. बैंटम ००७ के नाम से जानी गयी यह जीप विश्व की सबसे पुरानी जीवित जीप है. आज वह जीप पिट्सबर्ग के हाइन्ज़ इतिहास केन्द्र में अपने मूल रूप में रखी हुई है. ऊपर के चित्र उसी जीप के हैं जो मैंने अपने सेलफोन से लिए हैं. प्रकाश कम होने की वजह से चित्र कम प्रकाशित हैं मगर जीप फिर भी भली-भांति दृष्टव्य है.