(अनुराग शर्मा)
अनजानी राह में
जीवन प्रवाह में
बहते चले गये
आपके प्रताप से
दूर अपने आप से
रहते चले गये
आप पे था वक़्त कम
किस्से खुद ही से हम
कहते चले गये
सहर की रही उम्मीद
बनते रहे शहीद
सहते चले गये
माया है यह संसार
न कोई सहारा यार
ढहते चले गये ...