[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा
Photos by Anurag Sharma]
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1970 की हिन्दी फिल्म का पोस्टर |
अपडेट: परशुराम जी से सम्बन्धित वाल्मीकि रामायण के तीन श्लोक=================================
(सुन्दर हिन्दी अनुवाद के लिये आनन्द पाण्डेय जी का कोटिशः आभार)
वधम् अप्रतिरूपं तु पितु: श्रुत्वा सुदारुणम्
क्षत्रम् उत्सादयं रोषात् जातं जातम् अनेकश: ।।१-७५-२४॥
अन्वय: पितु: अप्रतिरूपं सुदारुणं वधं श्रुत्वा तु रोषात् जातं जातं क्षत्रम् अनेकश: उत्सादम्।।
अर्थ: पिता के अत्यन्त भयानक वध को, जो कि उनके योग्य नहीं था, सुनकर मैने बारंबार उत्पन्न हुए क्षत्रियों का अनेक बार रोषपूर्वक संहार किया।।
पृथिवीम् च अखिलां प्राप्य कश्यपाय महात्मने
यज्ञस्य अन्ते अददं राम दक्षिणां पुण्यकर्मणे ॥१-७५-२५॥
अन्वय: राम अखिलां पृथिवीं प्राप्य च यज्ञस्यान्ते पुण्यकर्मणे महात्मने कश्यपाय दक्षिणाम् अददम् ।
अर्थ: हे राम । फिर सम्पूर्ण पृथिवी को जीतकर मैने (एक यज्ञ किया) यज्ञ की समाप्ति पर पुण्यकर्मा महात्मा कश्यप को दक्षिणारूप में सारी पृथिवी का दान कर दिया ।
दत्वा महेन्द्रनिलय: तप: बलसमन्वित:
श्रुत्वा तु धनुष: भेदं तत: अहं द्रुतम् आगत: ।।१-७५-२5॥
अन्वय: दत्वा महेन्द्रनिलय: तपोबलसमन्वित: अहं तु धनुष: भेदं श्रुत्वा तत: द्रुतम् आगत: ।।
अर्थ: (पृथ्वी को) देकर मैने महेन्द्रपर्वत को निवासस्थान बनाया, वहाँ (तपस्या करके) तपबल से युक्त हुआ। धनुष को टूटा हुआ सुनकर वहाँ से मैं अतिशीघ्रता से आया हूँ ।।
भगवान् परशुराम श्रीराम चन्द्र को लक्ष्य करके उपर्युक्त बातें कहते हैं। इसके तुरंत बाद ही उन्हें विष्णु के धनुष पर प्रत्यंचा चढा कर संदेह निवारण का आग्रह करते हैं। शंका समाधान हो जाने पर विष्णु का धनुष राम को सौंप कर तपस्या हेतु चले जाते हैं ।।
मर्त्या हवा अग्ने देवा आसु:
ॐ भूर्भुवः स्वः वरुण! इहागच्छ, इह तिष्ठ वरुणाय नमः, वरुणमावाहयामि, स्थापयामि।
त्वम॑ग्ने रु॒द्रो असु॑रो म॒हो दि॒वस्त्वं शर्धो॒ मारु॑तं पृ॒क्ष ई॑शिषे।पीछे एक कड़ी में हमने असुर का संधि विच्छेद असु+र के रूप में देखा था.
त्वं वातै॑ररु॒णैर्या॑सि शंग॒यस्त्वं पू॒षा वि॑ध॒तः पा॑सि॒ नु त्मना॑॥
खैर अपना-अपना ख्याल है - हमें क्या? मगर इस बीच हम देव शब्द की परिभाषा तो देख ही लें - अगली कड़ी में.
- असुं राति लाति ददाति इति असुरः
- असुषु रमन्ते इति असुरः
- असु क्षेपणे, असून प्राणान राति ददाति इति असुरः
- सायण के अनुसार: असुर = बलवान, प्राणवान
- निघंटु के अनुसार: असुर = जीवन से भरपूर, प्राणवान
तम उ षटुहि यः सविषुः सुधन्वापिछली कड़ी में हमने जिन वरुण देव को ऋग्वैदिक ऋषियों द्वारा असुर कहे जाते सुना था वे मौलिक देवों यानी अदिति के पुत्रों में से एक हैं. अदिति सती की बहन और दक्ष प्रजापति की पुत्री हैं. कश्यप ऋषि और अदिति से हुए ये देव आदित्य भी कहलाते रहे हैं जबकि इनमें से कई माननीय असुर कहे गए हैं. भारत में कोई संकल्प लेते समय अपना और अपने गोत्र का नाम लेने की परम्परा रही है. जिन्हें भी अपना गोत्र न मालूम हो उन्हें कश्यप गोत्रीय कहने की परम्परा है क्योंकि सभी देव, दानव, मानव, यहाँ तक कि अप्सराएं भी कुल मिलाकर कश्यप के ही परिवार का सदस्य हैं. कश्मीर प्रदेश का और कैस्पियन सागर का नाम उन्हीं के नाम पर बना है. भगवान् परशुराम ने भी कार्तवीर्य और अन्य अत्याचारी शासकों का वध करने के बाद सम्पूर्ण धरती कश्यप ऋषि को ही दान में लौटाई थी और मारे गए राजाओं के स्त्री बच्चों के पालन,पोषण, शिक्षण की ज़िम्मेदारी विभिन्न ऋषियों को दे दी गयी थी. क्या सम्पूर्ण धरती का कश्यप को दिया जाना और दैत्य, दानव और देवों का भी उन्हीं की संतति होना उनके द्वारा किसी सामाजिक, राजनैतिक परिवर्तन का सूचक है? मुझे ठीक से पता नहीं. मगर यह ज़रूर है कि प्राचीन ग्रंथों में असुर और सुर शब्दों का प्रयोग जाति या वंश के रूप में नहीं है.
यो विश्वस्य कषयित भेषस्य
यक्ष्वा महे सौमनसाय रुद्रं
नमोभिर देवमसुरं दुवस्य
इस साल की शुरूआत होते-होते डॉ. अरविन्द मिश्रा ने जब सुर असुर का झमेला शुरू किया तब हमें खबर नहीं थी कि हम भी इसके लपेटे में आ जायेंगे. लेकिन हम भी क्या करें, दूर देश के झमेलों में टंगड़ी उड़ाने की आदत अभी गयी नहीं है पूरी तरह से. उस पर तुर्रा ये कि डॉ. साहब ने एक पोस्ट और लिखी थी जिसका हिसाब करना बहुत ज़रूरी था. इस आलेख का शीर्षक था - असुर हैं वे जो सुरापान नहीं करते!
अहिंसा परमो धर्मः सर्वप्राणभृतां वरः (महाभारत - आदिपर्व ११।१३)कई बरस पहले की बात है. मेरी नन्ही सी बच्ची भारत वापस बसने की बात पर सहम सी जाती थी. मैंने कई तरह से यह जानने की कोशिश की कि आख़िर भारत में ऐसा क्या है जिसने एक छोटे से बच्चे के मन पर इतना विपरीत असर किया है. बहुत कुरेदने पर पता लगा कि भारत में उसने बहुत बार सड़क पर लोगों को बच्चों पर और ग़रीबों पर, खासकर ग़रीब चाय वाले लड़के या रिक्शा वाले के साथ मारपीट करते हुए देखा. उसको हिंसा का यह आम प्रदर्शन अच्छा नहीं लगा. यह बात सुनने पर मुझे याद आया कि बरसों के अमेरिका प्रवास में मैंने एक बार भी किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर हिंसा करते हुए नहीं देखा. अगर देखा भी तो बस एकाध भारतीय माता-पिता को ही अपने मासूमों के गाल पर थप्पड़ लगाते देखा.
परम धरम श्रुति विदित अहिंसा। पर निंदा सम अध न गरीसा।।सभी जानते हैं कि अमेरिका में बन्दूक खरीदने के लिए सरकार से किसी लायसेंस की ज़रूरत नहीं होती है. यहाँ के लोग बन्दूक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जोड़कर देखते है. निजी हाथों में दुनिया की सबसे ज्यादा बंदूकें शायद अमेरिका में ही होंगी. मगर हत्याओं के मामले में वे अव्वल नंबर नहीं पा सके. २००७-०८ में अमेरिका में हुए १६,६९२ खून के मुकाबले शान्ति एवं अहिंसा के देश भारत में ३२,७१९ मामले दर्ज हुए. इस संख्या ने भारत को क़त्ल में विश्व में पहला स्थान दिलाया. हम सब जानते हैं कि हिन्दुस्तान में एक अपराध दर्ज होता है तो कितने बिना लिखे ही दफ़न हो जाते हैं.