Wednesday, August 30, 2017

घोंसले - कविता

(अनुराग शर्मा)

बच्चे सारे कहीं खो गये
देखो कितने बड़े हो गये

घुटनों के बल चले थे कभी 
पैरों पर खुद खड़े हो गये

मेहमाँ जैसे ही आते हैं अब
छोड़ के जबसे घर वो गये 

प्यारे माली जो थे बाग में
उनमें से अब कई सो गये

याद से मन खिला जिनकी
यादों में ही नयन रो गये॥


گھوںسلا


بچچے سارے کہیں کھو گئے

دیکھو کتنے بعد_ا ہو گئے

گھٹنوں کے بل چلے تھے کبھی
پیروں پر خود کھڈے ہو گئے

مہمان جیسے ہی آتے ہیں اب
چھوڈ کے جب سے گھر وو گئے

پیارے ملے جو تھے باگ میں
انمیں سے اب کے سو گئے

یاد سے من کھلا جنکی
یاد میں ہی نہیں رو گئے