रात अपनी सुबह परायी हुई
धुल के स्याही भी रोशनाई हुई
उनके आगे नहीं खुले ये लब
रात-दिन बात थी दोहराई हुई
आज भी बात उनसे हो न सकी
चिट्ठी भेजी हैं, पाती आई हुई
कवि होना सरल नहीं समझो
कहा दोहा, सुना चौपाई हुई
खुद न होते न तुमसे मिलते हम
ऐसी हमसे न आशनाई हुई॥