Monday, March 31, 2025

खालीपन

नये पहाड़ चढ़ते हैं
सपाट पगडंडियों से 
जो थक चुके हैं
नये व्यंजन पकाते है वे
जो पुरानों से पक चुके हैं
***

जो खुश हैं यथास्थिति से
उन्हें कुछ कमी नहीं
वे कभी उकताते नहीं
नया कुछ बनाते नहीं
ज़रूरत ही पाते नहीं।
***

खालीपन, बंजारापन
अकुलाहट,  आवारापन
शैतान का घर नहीं
सरस्वती का वास है
नवनिर्माण की आस है।
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बोरियत उदासी नहीं
चयन का अभाव नहीं
उनसे उकताहट है
वर्तमान विकल्पों से कहीं आगे
एक नये क्षितिज की चाहत है।
***

5 comments:

  1. वाक़ई कुछ न कुछ नया करते रहने से मन-मस्तिष्क तरो-ताजा बने रहते हैं और नव निर्माण भी हो जाता है, जैसे प्रकृति नित नया सृजन करती ही जाती है

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  2. बहुत सुंदर

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 05 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  4. अतीव सुंदर जीवन सतत नवसंकल्पों की चाहत है । एक विस्तृत अनन्त क्षितिज की चिर अभिलाषी .. बढ़ते रहना ...

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